देशराजनीतिसम्पादकीय

कांग्रेस द्वारा लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया के विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव

 

सुनील पांडे : वरिष्ठ पत्रकार

भारत वर्तमान समय में कोरोना जैसी वैश्विक महामारी केे संक्रमण से जूझ रहा है जिसकी सराहना विश्व के अन्य देशों के साथ- साथ विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी की है। ऐसी विषम स्थिति में देश की एक प्रतिष्ठित एवं जिम्मेदार पार्टी के अध्यक्ष का गैर जिम्मेदाराना सुझाव हास्यास्पद सा लगता है। केंद्रीय सत्ता से बेदखल हुए अभी कुछ ही वर्ष हुए हैं लेकिन उनके शीर्ष राजनेताओं की कुत्सित

मानसिकता अपने निम्नतम स्तर पर दिखाई दे रही है। गौरतलब है कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए भारत सरकार ने कई कठोर एवं अलोकप्रिय कदम उठाए हैं ,उनमें से एक सांसदों के वेतन से 30% तक कटौती तथा सांसद निधि को अगले 2 वर्ष के लिए स्थगित किए जाने से कांग्रेस तिलमिला गई है उसे यह सूझ नहीं रहा है कि वह किस तरह अपनी भड़ास निकालें।

कांग्रेस की वर्तमान अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर जो सुझाव दिया है वो किसी भी जनसामान्य वर्ग को उचित नहीं प्रतीत होगा। श्रीमती गांधी ने अपने सुझाव में कहा है कि इस परिस्थिति में प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तथा ऑनलाइन मीडिया पर सभी तरह के सरकारी विज्ञापन पर अगले कुछ वर्षो तक रोक लगा देनी चाहिए। देश की एक पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का यह सुझाव क्या उचित है ।इस आपदा की घड़ी में सरकार और प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाला लोकतंत्र का चौथा स्तंभ समाचार पत्र, टेलीविजन एवं ऑनलाइन मीडिया अपनी जिम्मेदारियों का गंभीरतापूर्वक निर्वहन कर रहा है ।अपनी जान की परवाह न करते हुए आम लोगों को जरूरी सूचना एवं कोरोना संक्रमण के खिलाफ जन जागरूकता फैलाने में तनिक भी कोताही नहीं बरत रहा है। हमारे समाचार पत्र ,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं ऑनलाइन मीडिया के रिपोर्टर, संपादक एवं अन्य कर्मचारी पूरी शिद्दत के साथ मेहनत एवं ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का पूर्ण निर्वहन कर रहे हैं उनके साथ क्या ऐसा करना उचित होगा। विगत कुछ वर्षों से प्रिंट मीडिया के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है यह बात किसी से छुपी नहीं है।सरकारी विज्ञापनों एवं अन्य स्रोतों से प्राप्त विज्ञापनों के आय से किसी तरह अपनी प्रतिष्ठा बचाए हुए है।यदि सरकार द्वारा वर्तमान समय में उनके खिलाफ इस तरह के कोई कदम उठाए जाते हैं तो उनके द्वारा इस विषम परिस्थिति में किए गए कार्यों का क्या यही उचित पुरस्कार होगा ।भारत सरकार तथा अन्य राजनीतिक पार्टियों को इस मुद्दे पर इमानदारी पूर्वक सोचना चाहिए की प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ क्या यह सौतेला व्यवहार नहीं होगा।यह बात वर्तमान परिवेश में बौद्धिक वर्ग को सोचने को विवश करता है कि इस मुद्दे पर सभी को गंभीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है ।

जनवाद टाइम्स

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