सुनील पांडेय : कार्यकारी संपादक
भारत एक आशावादी देश है वह सुख और दुःख दोनों में संयम बनाए रखने में समर्थवान है। प्रायः यह कहा जाता है कभी-कभी महामारियां किसी विशेष देश के लिए अवसर लेकर आती हैं। वर्तमान परिवेश की बात करें तो भारत के लिए यह वैश्विक महामारी अवसर लेकर आई है। भारत को इस अवसर का भरपूर लाभ उठाना चाहिए। आज हम यदि अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बात करें तो एशिया के देशों में भारत एवं चीन के मध्य कटुता 1950 के बाद कमोवेश सदैव विद्यमान रही है। चीन को जब -जब मौका मिला भारत की सीमाओं का अतिक्रमण ही किया है।
चीन एवं भारत के मध्य 3500 किलोमीटर लंबी नियंत्रण रेखा है। अभी हाल ही में लद्दाख और सिक्किम में वास्तविक नियंत्रण रेखा के नजदीक चीन ने भारतीय सीमा में अतिक्रमण करने का प्रयास किया। इसके पूर्व वर्ष 2017 में डोकलाम मैं भी चीन ने इसी तरह का दुस्साहस किया था।
कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी के चलते आज चीन से अमेरिका पूरी तरह खफा है। अमेरिका चीन को सबक भी सिखाना चाहता है उसके लिए वह विश्व बिरादरी को अपने साथ लेकर कोई इस तरह का कठोर कदम उठाना चाहता है जिससे चीन को उसके किए की सजा दी जा सके। चीन को कोरोना वायरस के प्रसार का अमेरिका पूर्णतया दोषी मानता है। इसके लिए वह चीन के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करना चाहता है। यह कार्रवाई चीन पर आर्थिक प्रतिबंध के साथ उसके सामानों पर शुल्क वृद्धि जैसी हो सकती है। उसका मानना है कि कोरोना वायरस से विश्व के जो देश संक्रमित हुए हैं उसमें कहीं ना कहीं चीन की लापरवाही रही है। यदि समय रहते चीन ने विश्व समुदाय को सचेत कर दिया होता तो आज इतनी भयावह स्थित ना होती। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का मानना है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन के बुहान शहर के एक वायरोलॉजी लैब से हुई है। पूरी दुनिया में इस वायरस से अब तक 58 लाख से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं और 3 लाख 59 हजार से अधिक लोग इस महामारी में मौत के शिकार हुए हैं। वैश्विक दृष्टि से देखे तो देखें तो यह अपने आप में एक भयावह आंकड़ा है ।यदि चीन सचमुच इस महामारी के प्रसार के लिए जिम्मेदार है तो वैश्विक बिरादरी द्वारा चीन पर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। चीन के साथ यदि इस समय कोई ढील बरती गई तो विश्व के अन्य देशों का भी इस तरह से दुस्साहस करने का मनोबल बढ़ेगा और वे देश भी चीन की भांति जैविक हथियारों को अपने लाभ के लिए उपयोग कर सकते हैं। क्योंकि उन देशों को भी इस बात का कोई भय नहीं रहेगा उनके खिलाफ कोई कठोर कार्यवाही विश्व बिरादरी द्वारा हो सकती है। इन सब परिस्थितियों को देखते हुए से चीन को सबक सिखाना बहुत जरूरी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन के साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ)को भी कोरोना वायरस के संदर्भ में विश्व समुदाय को गुमराह करने का जिम्मेदार मानते हैं। इतना ही नहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन के साथ- साथ डब्ल्यूएचओ की मिलीभगत होने की बात कह रहे हैं। उनका यह भी कहना है कि चीन केंद्रित होने के कारण डब्ल्यूएचओ ने सही समय पर इस वायरस के संदर्भ में विश्व बिरादरी को सही जानकारी नहीं दी। डब्ल्यूएचओ को सबक सिखाने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने देश से उसको मिलने वाले आर्थिक फंड पर रोक लगा दी हैं ।
चीन के बुहान शहर में सर्वप्रथम फैले कोरोना वायरस के चलते विश्व की कई देशों की कंपनियां अपना व्यवसाय समेटकर ऐसे देशों में अपना कल -कारखाना लगाना चाहती हैं जहां उन्हें व्यापार करने की पर्याप्त सहूलियत मिल सके। भारत को अपने यहां ऐसी कंपनियों को व्यापारिक प्रतिष्ठान लगाने के लिए आमंत्रित करना चाहिए। भारत सरकार इस दिशा में प्रयास भी कर रही है। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने इस तरह की पहल भी की है और यहां पर कई कंपनियां अपना व्यवसायिक प्रतिष्ठान खोलने को राजी भी हो चुकी हैं। व्यापार क्षेत्र में चीन को कड़ी प्रतिस्पर्धा देने के लिए इस समय भारत को खुले मन से आगे आना चाहिए। अभी तो इसका प्रत्यक्ष लाभ हमें नहीं दिखाई दे रहा है लेकिन भविष्य में इसका
अत्यन्त सकारात्मक परिणाम मिलने की उम्मीद है। चीन भारत को स्वयं या उसके पड़ोसी देश पाकिस्तान एवं नेपाल के माध्यम से अस्थिरता फैलाने का कमोवेश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समय-समय पर प्रयास करता ही रहता है। महामारी के इस विषम परिस्थिति में चीन को अमेरिका सहित विश्व के अन्य देशों के साथ घेरने का यह सबसे उपयुक्त समय है। भारत को एक चतुर कूटनीतिक देश की भांति इस अवसर का भरपूर फायदा उठाना चाहिए। इससे चीन की हेकड़ी तो निकलेगी साथ ही साथ चीन के बढ़ते दुस्प्रभाव पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।