सरदार पटेल जयंती विशेष: संस्कारों की महत्ता में सरदार पटेल का ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’
सह संपादक: मनोज कुमार राजौरिया
31 अक्टूबर को भारत के पहले उप प्रधान मंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती है. हर साल इस दिन को नेशनल यूनिटी डे या राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है. दरअसल, सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 560 रियासतों को भारत संघ में एकीकृत करने में अहम भूमिका निभाई थी. राष्ट्र को एकजुट करने के लिए सरदार पटेल के किए प्रयासों को स्वीकार करने के लिए राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है.
कैसे एक साधारण मनुष्य लोह पुरुष बना इसका जवाब इस आर्टिकल में आपको जरुर मिलेगा. सरदार वल्लभभाई पटेल एक ऐसा नाम जो जब भी किसी बुजुर्ग जिसने स्वतंत्रता आन्दोलन को प्रत्यक्ष रूप से देखा था, के ज़हन में आता हैं उनका शरीर नव उर्जा से भर जाता हैं, लेकिन मन में एक आत्म ग्लानि सी उमड़ पड़ती हैं, क्यूंकि उस वक्त का हर एक युवा वल्लभभाई को ही प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता था, लेकिन अंग्रेजो की नीति, महात्मा गांधीजी के निर्णय एवम जवाहरलाल नेहरु जी के हठ के कारण यह सपना सच न हो सका.
एक सभा में उन्होंने एलान किया,
‘मैं आजादी चाहता हूं और मैं जानता हूं कि मैं इसे प्राप्त करने जा रहा हूं। ऐसे दस इंग्लैंड भारत को आजादी पाने से रोक नहीं सकते। किसी भी देश को हमेशा के लिए गुलाम बनाकर नहीं रखा जा सकता’।
वल्लभभाई पटेल एक कृषक परिवार से थे, जिसमे चार बेटे थे. एक साधारण मनुष्य की तरह इनके जीवन के भी कुछ लक्ष्य थे. यह पढ़ना चाहते थे, कुछ कमाना चाहते थे और उस कमाई का कुछ हिस्सा जमा करके इंग्लैंड जाकर अपनी पढाई पूरी करना चाहते थे. इन सबमे इन्हें कई परिशानियों का सामना करना पड़ा. पैसे की कमी, घर की जिम्मेदारी इन सभी के बीच वे धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहे. शुरुवाती दिनों में इन्हें घर के लोग नाकारा समझते थे. उन्हें लगता था ये कुछ नहीं कर सकते. इन्होने 22 वर्ष की उम्र में मेट्रिक की पढाई पूरी की और कई सालों तक घरवालो से दूर रहकर अपनी वकालत की पढाई की, जिसके लिए उन्हें उधार किताबे लेनी पड़ती थी. इस दौरान इन्होने नौकरी भी की और परिवार का पालन भी किया. एक साधारण मनुष्य की तरह ही यह जिन्दगी से लड़ते- लड़ते आगे बढ़ते रहे, इस बात से बेखबर कि ये देश के लोह पुरुष कहलाने वाले हैं.
उन्होंने एक भाषण में कहा-
दुखी सरदार पटेल ने इस विभाजन के बाद अपने को भारत के लिए नए सपने के साथ समर्पित कर दिया। वे पाकिस्तान में हिंदुओं, सिखों और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे जुल्मों से गुस्से में थे। उन्होंने वहां की लियाकत अली खान सरकार को इस बात के लिए फटकार लगाई थी। वे एक साथ अनेक मोर्चों पर अकेले योद्धा की तरह लड़ रहे थे।
सरदार बल्लभ भाई पटेल के जीवन की एक विशेष घटना से इनके कर्तव्यनिष्ठा का अनुमान लगाया जा सकता है, यह घटना जबकि थी जब इनकी पत्नी बम्बई के हॉस्पिटल में एडमिट थी. कैंसर से पीढित इनकी पत्नी का देहांत हो गया, जिसके बाद इन्होने दुसरे विवाह के लिए इनकार कर दिया और अपने बच्चो को सुखद भविष्य देने हेतु मेहनत में लग गए.
कैसे मिला सरदार पटेल नाम (बारडोली सत्याग्रह)
इस बुलंद आवाज नेता वल्लभभाई ने बारडोली में सत्याग्रह का नेतृत्व किया. यह सत्याग्रह 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ किया गया था. इसमें सरकार द्वारा बढ़ाये गए कर का विरोध किया गया और किसान भाइयों को एक देख ब्रिटिश वायसराय को झुकना पड़ा. इस बारडोली सत्याग्रह के कारण पुरे देश में वल्लभभाई पटेल का नाम प्रसिद्द हुआ और लोगो में उत्साह की लहर दौड़ पड़ी. इस आन्दोलन की सफलता के कारण वल्लभ भाई पटेल को बारडोली के लोग सरदार कहने लगे जिसके बाद इन्हें सरदार पटेल के नाम से ख्याति मिलने लगी.
स्थानीय लड़ाई से देश व्यापी आन्दोलन
गाँधी जी की अहिंसा की निति ने इन्हें बहुत ज्यादा प्रभावित किया था और इनके कार्यों ने गाँधी जी पर अमिट छाप थी. इसलिए स्वतंत्रता के लिए किये गए सभी आंदोलन जैसे असहयोग आन्दोलन, स्वराज आन्दोलन, दांडी यात्रा, भारत छोडो आन्दोलन इन सभी में सरदार पटेल की भूमिका अहम् थी. अंग्रेजो की आँखों में खटने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे सरदार पटेल.
सरदार ने 11 अगस्त 1947 को कहा-
‘यह सत्य है कि विभाजन के लिए हमने सहमति दी। हम लोगों ने यह जिम्मेदारी अच्छी तरह सोचने समझने के बाद ली है, न कि किसी भय या दबाव के कारण। मैं भारत के विभाजन का प्रबल विरोधी था, किंतु जब मैं केंद्र सरकार में बैठा तो मैंने देखा कि एक चपरासी से लेकर बड़े अधिकारियों तक सभी सांप्रदायिक घृणा से ग्रस्त हैं। इन स्थितियों में लड़ने और तीसरी पार्टी के हस्तक्षेप को बर्दाश्त करने से बेहतर है कि देश की एकता बनाए रखने के लिए बंटवारा हो ही जाए। देश में शांति रहनी चाहिए। केवल शांति ही हमें बचा सकती है। आज हमारे पास लाहौर और पूर्वी बंगाल के कुछ हिस्सों को छोड़ कर हजार वर्षों के बाद संपूर्ण भारत को संयुक्त करने का सुनहरा अवसर है’।
1923 में जब गाँधी जी जेल में थे. तब इन्होने नागपुर मेंसत्याग्रह आंदोलनका नेतृत्व किया.इन्होने अंग्रेजी सरकार द्वारा राष्ट्रीय ध्वज को बंद करने के खिलाफ आवाज उठाई, जिसके लिए अलग- अलग प्रान्तों से लोगो को इकट्ठा कर मोर्चा निकाला गया. इस मोर्चे के कारण अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा और उन्होंने कई कैदियों को जेल से रिहा किया.
उन्होंने एक भाषण में कहा-
‘मैं छोटे और बड़े राजाओं से कहता हूं कि जब समय आएगा तो उन्हें 15 तारीख तक भारतीय संघ में शामिल होना होगा। उसके बाद उनके साथ दूसरी तरह से व्यवहार किया जाएगा। जो रियायतें उन्हें आज दी जा रही हैं, उस तिथि के बाद नहीं दी जाएंगी। इसलिए वे यदि शासन करना चाहते हैं तो उन्हें संविलियन पर हस्ताक्षर करना होगा। आज संसार में अकेले रहना मुश्किल है। जब आंधी आती है अकेला पेड़ जमीन पर गिर जाता है, किंतु कतार में खड़े पेड़ बच जाते हैं। वे रामचंद्र और अशोक के वंशज हैं, फिर भी उन्हें आज मामूली से मामूली अंग्रेज नौकर को सलाम करना पड़ता है। वे अभी मानने को तैयार नहीं हैं कि 15 अगस्त को अंग्रेज चले जाएंगे, परंतु जब चले जाएंगे और आप स्वाधीनता की बयार का अनुभव करेंगे, तब आपके दिलों के द्वार खुल जाएंगे।’
इनकी वाक् शक्ति ही इनकी सबसे बड़ी ताकत थी, जिस कारण उन्होंने देश के लोगो को संगठित किया. इनके प्रभाव के कारण ही एक आवाज पर आवाम इनके साथ हो चलती थी.
पटेल एवं नेहरु के बीच अंतर
पटेल एवं नेहरु दोनों गाँधी विचार धारा से प्रेरित थे, इसलिए ही शायद एक कमान में थे. वरना तो इन दोनों की सोच में जमीन आसमान का अंतर था. जहाँ पटेल भूमि पर थे, मिट्टी में रचे बसे साधारण व्यक्तित्व के तेजस्वी व्यक्ति थे. वही नेहरु जी अमीर घरानों के नवाब थे, जमीनी हकीकत से दूर, एक ऐसे व्यक्ति जो बस सोचते थे और वही कार्य पटेल करके दिखा देते थे. शैक्षणिक योग्यता हो या व्यवहारिक सोच हो इन सभी में पटेल नेहरु जी से काफी आगे थे. कांग्रेस में नेहरु जी के लिए पटेल एक बहुत बड़ा रोड़ा थे.
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