Etawah News: रिमझिम मानसूनी बरसात किसानों की फसलों के लिए खुशी का वरदान

संवाददाता: मनोज कुमार
जसवंतनगर/इटावा: पिछले दो दिन से रुक रुक कर और कभी तेजी से होने वाली बरसात से आम जनजीवन को गर्मी से जहां राहत मिली है वहीं खेती किसानी से जुड़े लोगों खासकर किसानों के लिये यह वरदान और खुशी भरा पैगाम भी लायी है।
पिछले 36 घण्टों से मानसून की सक्रियता ने लोगों के दिल से यह बात निकाल दी है कि आषाढ़ का महीना सूखा गया तो सावन भी कहीं सूखा न जाये! इस बार मानसूनी वर्षा नियत तिथि 22 जून से सवा महीने लेट शुरू हुई। हालांकि बीच बीच मे एक दो बार पानी बरसा, मगर उसके तुरन्त बाद सूर्यदेवता इतनी प्रचंडता से निकले कि लोग गर्मी और उमस से उबल गए। मानसून की देरी ने धान उत्पादकों को ही संशयग्रस्त कर दिया था कि इस बार मानसून दगा न दे जाए। किसानों ने पौध पैदा कर ली थी। परंतु खेतों में पानी से न भरने की वजह रोपाई कार्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया था। बाजरा की बुबाई के बाद गर्मी और अवर्षा के चलते उसकी बढ़त रुक गयी थी, जहां बाजरा की बालें निकलनी शुरू हुई थीं, वह सूख रही थीं अथवा कण्डवा रोग की शिकार होने लगी थीं। हरी सब्जियां करने वाले किसानों, जिन पर नहर, ट्यूबबेल या पानी की व्यवस्था के अन्य साधन नही है वह भी परेशान थे क्योंकि लौकी तोरई आदि में आ रहे फूल, फल में तब्दील होने की बजाय मुरझा रहे थे।
यहां के यमुना के बीहड़ी इलाकों खासतौर बलरई, जाखन, नगला तौर, घुरहा आदि में किसान अवर्षा के चलते हाथ पर हाथ धरे आसमान की ओर मानसून के लिए ताक रहे थे। गर्मी से जमीन फट रहीं थीं और केवल बरसात पर ही आस टिकी थी। बीहड़ी इलाके में फसलें बर्षा पर ही ज्यादातर टिकी होती है। ट्यूबबेल भी बिजली की अनियमित कटौती से किसानों के सहारे नहीं बन पाते हैं जो किसान सरसब्ज हैं वह भले ही डीजल से पम्प सेट चलाकर कुछ हद तक सिंचाई की पूर्ति कर लेते हैं। इन हालातों के चलते मानसूनी वर्षा ही सहारा बनती है।
अम्बेडकर कृषि इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटी इटावा के प्रोफेसर और पी एल फार्म जसवंतनगर के मालिक सुबोध यादव ने कहा है मानसून लेट अवश्य हुआ है मगर खेती किसानी के लिए बरस रहा पानी अमृत समान है इससे धान की रोपाई हो सकेगी। मक्का बाजरा की फसलों में पैदाबार बढ़ाएगी। सबसे बड़ी बात उन्होंने जो बताई वह ये है कि मानसूनी वर्षा से मिट्टी की उर्वरा शक्ति जबरदस्त ढंग से बढ़ेगी। क्योंकि नाइट्रोजन और जीवाश्म मिट्टी के लिए उर्वरकों की मांग कम कर देंगे। दीमक जैसे फसल नाशक अप्रभावी होने लगेंगे। गन्ना जो अभी हाल में किसानों ने बोया है वह पूरी क्षमता से बढ़ने लगेगा।