Bihar news नगर निगम में जोड़े गए पंचायतों को लेकर स्थानीय लोग कर रहें हैं विरोध प्रदर्शन

संवाददाता मोहन सिंह बेतिया
ग्रामीण क्षेत्रों के अविकसित पंचायतों को निगम में शामिल किए जाने को लेकर स्थानीय लोगों में आक्रोश है। जिसको लेकर ग्रामीण अपना विरोध प्रर्दशन जिले से लेकर राजधानी तक पहुंच कर कर रहे हैं। इसी को लेकर बुधवार की सुबह पीपरा चौक पर 7 पंचायतों के जनता के द्वारा अपना विरोध प्रर्दशन कर सांसद, विधायक और निवर्तमान सभापति को घेरने का कार्य किया। जिसमें शामिल लोगों ने सीधे तौर पर इन तीनों जनप्रतिनिधियों को ग्रामीण पंचायतों को जोड़ने का साजिशकर्ता बनाकर आरोप लगाया।
पश्चिम चम्पारण के बेतिया नगर परिषद से नगर निगम की घोषणा के पश्चात ग्रामीण क्षेत्रों के पंचायतों को मिलाकर नगर निगम के 46 वार्ड तैयार किए गए जिसमें बेतिया प्रखंड के सभी पंचायतों के साथ नौतन प्रखंड के एक पंचायत शामिल हैं। हालांकि घोषणा के बाद सभी भावी प्रत्याशियों ने अपनी तैयारी और जन सम्पर्क शुरू भी कर दिया था कि इसी बीच कई तरह की अटकलें आनी शुरू हो गई कि मेयर और उपमेयर सीट महिला सामान्य हो रहा है जिसके बाद कईयों के चेहरे की रौनक खत्म हो गई। वहीं वार्ड में भी महिला, आरक्षण इत्यादि की अटकलों से भी प्रत्याशियों की चुनावी रण में आने की हिम्मत को पस्त कर दिया। इस बीच भाजपा जदयू गठबंधन की सरकार से जदयू राजद महागठबंधन की सरकार बन गई। और राजनीतिक रोटी सेंकने वालों को राजनीति करने का मौका मिल गया, वो भी वैसे समय में जब नगर निकाय की तैयारी अंतिम चरण में है और संभावित कुछ एक दिनों में आचार संहिता लगने वाली है। ऐसे में पंचायतों को निगम से आजाद कराने की योजना सफल हो सकेगा या नहीं यह आने वाले समय में ही दिख सकता है। क्योंकि सूत्र यह भी बता रहे हैं कि बिहार सरकार हर हाल में अक्टूबर में नगर निकाय चुनाव करा सकती है। ऐसे में अंतिम समय में नगर निगम के परिसिमन को लेकर विरोध प्रदर्शन करने वालों की आवाज कहां तक किसके पास जाएगी यह संशय बना हुआ है।
वहीं राजनीतिक सूत्रों की मानें तो यह विरोध प्रर्दशन कहीं ना कहीं उन प्रत्याशियों के हताशा का भी कारण है जो कि इस चुनाव में अपना जोर आजमाइश करना चाहते थे पर किन्हीं कारणों से वो वंचित हो रहे हैं अथवा इस चुनावी रण में अपने आपको सक्षम नहीं समझ पा रहे । साथ ही स्थानीय सूत्र यह भी बता रहे हैं कि कई भावी प्रत्याशियों ने पूर्व जनप्रतिनिधियों के सहारे राजनीतिक अखाड़ा बनाने के लिए पंचायत के ग्रामीण इलाकों की जनता को मिथ्या अफवाहों के जरिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
हालांकि निगम से जुड़े वो सभी 7 पंचायतों की आर्थिक, प्राकृतिक और अन्य संरचनाओं को देखा जाए तो इन क्षेत्रों में ज्यादातर जमीनें खेती, बगीचों और चेवढ़ों से भरी पड़ी है। जहाँ कि आबादियों में पक्के घरों से ज्यादा झोपड़ियों के घर भी हैं। ऐसे में जहाँ विकास की राह जोहता पंचायत निगम के अतिरिक्त कर के बोझ से दबने की आशंका से जनता में भय भी है। वो इस बात से भी चिंतित हैं कि अच्छे प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित नहीं हुई तो विकास की उल्टी गंगा भी बह सकती है जिसका खामियाजा सभी को निगमवासियों को उठाना पड़ेगा।
वहीं विरोध प्रर्दशन कर रहे लोगों ने इन पंचायतों को जोड़ने के पीछे कुछ जनप्रतिनिधियों की अपनी निजी महत्वाकांक्षाओं को कारण बताया जिनकी आकूत जमीन इन पंचायतों में होने को लेकर इनकी कीमतों को ऊंचाई पर पहुंचाने की गंदी सोच के कारण पंचायत की जनता को निगम के भटठी में झोंकने का कार्य किया है।
इनसब से इतर जब इसकी सच्चाई जानने की कोशिश की गई तो यह पता चला कि नगर निगम बनने के बाद बेतिया प्रखंड का कार्य निगम अंतर्गत आ जाता है और प्रखंड का अस्तित्व खत्म हो जाता है जिसके कारण बेतिया प्रखंड के सभी पंचायतों को निगम के परीसीमन में जोड़ दिया गया। इस सभी को जोड़ने के बावजूद परीसीमन घटने के बाद एक पंचायत नौतन प्रखंड से लेना पड़ा तब जाकर 46 वार्ड निगम का गठन किया जा सका। यदि यह सच्चाई होती तो ऐसे में राजनीति करना भी निराधार हो सकता है।