फादर्स डे पर विशेष : पिता का गरिमामई अस्तित्व

सुनील पांडेय : कार्यकारी संपादक
भारत सहित दुनिया के विभिन्न देशों में जून के तीसरे रविवार को पित्र दिवस यानी फादर्स डे के रूप में मनाया जाता है। आज 21 जून ,2020 का तीसरा रविवार है ।आज के दिन हम फादर्स डे के रूप में मना रहे हैं। वैसे तो फादर्स डे पाश्चात्य सभ्यता की देन है लेकिन भारत सहित दुनिया के कई देश आज इसे मनाते हैं ।
इस दिन हम अपने पिता को ढेर सारा उपहार एवं उनके चिरंजीवी होने की ईश्वर से कामना करते हैं। पिता वाह वट वृक्ष है जिसके नीचे संतान को चाहे वह गर्मी हो, चाहे वह जाड़ा हो ,चाहे वह बरसात हो, या कोई और मौसम ,हर मौसम में सुकून ही सुकून मिलता है। हम कितने भाग्यवान हैं की हमारे सर पर पिता का साया है और मां का आशीर्वाद है। दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके सर पर ना पिता का साया है और ना मां का आशीर्वाद है। ऐसे लोग आज के दिन अपनने पिता को याद करके भावुक हो जाते हैं। हम ऐसे लोगों को लिए ईश्वर से कामना करते हैं उन्हें अपने माता-पिता की याद को संजोए रखने का हौसला दे। बचपन में पिता की उंगली उस सहारे के समान है जिसको पकड़कर हम चलना सीखते हैं और बड़े होने पर उसी अंगुली से पिता हमें सही और गलत की नसीहत देता है।समय-समय के अनुसार उंगली की भूमिका बदल जाती है लेकिन आजीवन वह हमारे काम आती है। बचपन में जब हमें ठोकर लगती थी तो पिता के उंगली का सहारा मिलता था और आज जब हमें कोई तकलीफ होती है तो हमारे कंधे पर पिता के हाथों का सहारा होता है ।वह हमें सांत्वना और हौसला दोनों देता है कि बेटे हिम्मत न हार आगे चलता चल एक न एक दिन तुझे तेरी मंजिल जरूर मिलेगी। उसके इसी हौसले के साथ हम आगे बढ़ जाते हैं और हमें जो सुकून मिलता है वह दुनिया की किसी नसीहत से नहीं मिलता। पिता ही वह शिक्षक होता है जो हमारे बचपन से बड़े होने तक और बड़े होने से बूढ़े होने तक बस एक ही पाठ पढ़ाता है की हमेशा सच्चाई के रास्ते पर चलो, सभी से सद्भाव एवं प्रेम रखो, जीत तुम्हारे कदम चूमेगी इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। पिता के बारे में और क्या लिखूं मेरे पास शब्द ही नहीं है मैं निशब्द हूं। जिस पिता ने हमें उंगली पकड़कर चलना सिखाया और लिखना सिखाया आज मैं उस पिता के बारे में या उसके संघर्षों के बारे में यदि मैं लिखना शुरू करूँ तो लेखनी की स्याही खत्म हो जाएगी लेकिन उस पिता के गुणों का बखान खत्म नहीं होगा। ईश्वर को तो हमने नहीं देखा है पर एक पिता के रूप में ऐसे ईश्वर का साक्षात्कार अवश्य किया जो प्रशंसा के योग्य नहीं वरन् पूजा के योग्य है। वही हमारे लिए मंदिर है ,मस्जिद है , गिरजाघर है, गुरुद्वारा है और पूजा का वह स्थल है जहां हम अदब से सर झुकाते हैं। उसका आशीष रूपी प्रसाद आजीवन हमें मिलता है कभी मिश्री -मेवा एवं चॉकलेट के रूप में तो कभी फल -फूल एवं मिठाई के रूप में तो कभी आशीर्वाद रूपी प्रसाद के रूप में । मेरी राय में हर पिता संघर्षों से जूझ कर अपनी संतान को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, साथ ही साथ उसे ऐसा बनाना चाहता है कि वह स्वयं ही नहीं बल्कि सारी दुनिया उस पर गर्व करे। पित्र दिवस पर ऐसी पिता के चरणों में कोटि कोटि वंदन। किसी ने ठीक ही कहा है -पिता गर्म धूप भी है और पिता ठंड छांव भी है।