Etawah News: जलवायु अनुकूल न होते हुए बीहड़ी क्षेत्र में केसर की फ़सल ऊगा कर कमा रहे मुनाफ़ा

आशीष कुमार
इटावा/जसवन्तनगर: कश्मीर और हिमाचल की ठंडी वादियों में उगने वाली केसर की फसल यहां बलरई क्षेत्र के बीहड़ी गांव के दो युवाओं ने तैयार कर अपनी किस्मत बदलने का फैसला किया है।
नगला तौर गांव के युवा किसान गोविन्द मिश्रा व गोपाल मिश्रा ने बताया कि हिमाचल प्रदेश व जम्मू कश्मीर से एक लाख रुपए किलो मिलने वाला केसर का यह बीज एक एकड़़ में सिर्फ 600 ग्राम ही डाला जाता है और एक एकड़ में 30-35 किलो केसर की पैदावार हो जाती है जो करीब 60 हजार से एक लाख रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है। दोनों भाइयों ने अपने पिता के सहयोग से मिलकर लगभग एक बीघा जमीन में फसल की है। वो बताते हैं कि जंगली जानवरों से रखवाली की बड़ी समस्या है। रात में रखवाली करते हैं और दिन में मुरझाए हुए तैयार फूलों को पेड़ों से चुन चुन कर एक एक तोड़ते हैं।
बिना किसी तकनीकी प्रशिक्षण के इन युवाओं ने केसर की खेती कर क्षेत्रीय किसानों को हैरत में डाल दिया है। हालांकि केन्द्र सरकार ने केसर की पैदावार अगले कुछ सालों में बढ़ाकर दोगुना करने का लक्ष्य रखा है और कृषि वैज्ञानिकों की माने तो एक हेक्टेयर में केसर की खेती से किसान साल में लगभग 25 लाख रुपये तक कमा सकते हैं।
भारत में केसर की खेती सिर्फ जम्मू-कश्मीर में होती है जिसको लेकर प्रदेश की दुनिया में खास पहचान है। इंग्लैंड, अमेरिका, मध्य-पूर्व के देशों सहित पूरी दुनिया में भारत केसर का निर्यात करता है और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत देसी करेंसी के रूप में देखें तो करीब पांच लाख रुपये प्रति किलोग्राम है जबकि देसी बाजार में तीन लाख रुपये प्रति किलोग्राम है किंतु इन युवाओं को यह कीमत हासिल होना मुनासिब नहीं है।
इस समय केसर की पैदावार दो किलोग्राम से लेकर 4.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है लेकिन एकीकृत खेती के जरिए इसे बढ़ावा देने से इसकी पैदावार बढ़ाकर आठ-नौ किलोग्राम प्रति हेक्टेयर किया जा सकता है। केसर की खेती जम्मू-कश्मीर के चार जिलों पुलवामा, बड़गाम, श्रीनगर और किश्तवाड़ में होती है। बताया गया है कि इस खेती के लिए ठीकठाक धूप की भी जरूरत होती है। ठंडे और गीले मौसम में इसकी खेती नहीं की जा सकती है। गर्म मौसम वाली जगहों के लिए ये खेती बेस्ट है।
आमतौर पर केसर की बुवाई अक्टूबर महीने में और तुड़ाई मार्च-अप्रैल में होती है। पौधे से पौधे की दूरी एक से डेढ़ फुट रखते हैं। बुआई मेढ़ बनाकर दोनों किनारों पर करते हैं। तैयार कैसर की टेस्टिंग दिल्ली व जयपुर में होती है। परीक्षण में कीट रसायन व उर्वरक की मात्रा की जांच होती है। जिसके लिए पांच हजार रुपए का भुगतान करना पड़ता है। सेंपल पास होने के बाद केसर बिक्री के लिए तैयार होती है। अब उत्पादन परिवहन व टेस्टिंग खर्च के लिए सरकार से अनुदान सहायता की आवश्यकता है।
जिले के हॉर्टिकल्चर अधिकारी राजेंद्र कुमार का कहना है कि यहां की जलवायु के हिसाब से केसर की खेती को प्रायोगिक तौर पर देखा जा सकता है यदि बेहतर आर्थिक लाभ प्राप्त होता है तो इस हेतु कार्य योजना बनाकर अनुदान सहायता के लिए प्रस्ताव भेजा जाएगा।