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आजाद भारत में समतामूलक समाज की स्थापना धन्ना सेठों के भरोसे: डॉ धर्मेंद्र कुमार

लेखक: डॉ धर्मेंद्र कुमार
भारतीय चतुरवर्गीय समाज आजादी से पूर्व तथा संवैधानिक युग के बाद भी ज्यों का त्यों बना हुआ हैl समानता की दुहाई देते देते उसमें असमानता की खाई बढ़ती चली गई ,अब बात गरीबों के कल्याण पर आकर अटक गई है। राजनीतिक दलों तथा सामाजिक संगठनों की लंबी फेहरिस्त दो दलों में बटी नजर आ रही है एक यथास्थित वादी विचारधारा दूसरी समतामूलक समाजवादी विचारधारा l
समतामूलक विचारधारा का अलख जगाने वाले दल व संगठन कहते हैं कि आर एस एस धनवानो शासकों तथा बुर्जुआ साधन संपन्ननो की पार्टी है जो किसी भी तरह किसान मजदूर बेरोजगारों का भला नहीं कर सकती है और समतामूलक जन सामान्य की भावनाओं को अपने पक्ष में करने में कामयाब होते रहे हैं, किंतु समतामूलक समाजवादी बहुजन दलों का भी ठीक से जायजा लें जो गरीब मजदूर किसान महिला बेरोजगार की बात करते हैं गरीब आंदोलन करता है, चंदा देता है, लड़ाई लड़ता है ,इनके पक्ष में माहौल तैयार करता है जब चुनाव आता है तो सबसे ज्यादा वोट भी देता है किंतु वह जिसे वोट देता है वह धन्ना सेठ ,शराब माफिया, माफिया, ठेकेदार या बड़ा व्यापारी ही होता है ना कि संसाधन विहीन साइकिल वाला सामान्य नागरिक l जब टिकट का समय आता है तो करोड़पति, अरबपति रसूखदार व्यक्ति जिसका गरीब, किसान, मजदूर, बेरोजगार से कोई लेना देना नहीं होता l ग्राम प्रधान, ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य/ अध्यक्ष, विधायक, सांसद, विधान परिषद सदस्य ,राज्यसभा सदस्य ,आयोग का सदस्य तथा चेयरमैन बनता है l उस पद प्राप्ति के बाद गरीब किसान मजदूर पदआसीन व्यक्ति के आसपास भी दिखाई नहीं देते वहां सिर्फ और सिर्फ कुछ चापलूस दिखाई देते हैं और पूरे कार्यकाल में गोलमोल योजनाएं चापलूसओं के साथ बंदरबांट कर लेते हैं l
यह कटु सत्य है कि बहुजन समतामूलक यह समाजवादी दल अपनी पूरी टिकटों में एक भी टिकट गरीब ईमानदार योग्य व्यक्ति को नहीं देते बस कल्याण की बातें करते हैं l उनका कार्य आर एस एस बीजेपी से अलग नहीं बल्कि बिल्कुल समान है उनका सपना है कि हम आरएसएस बीजेपी की तरह मालामाल हो जाएं जहां कोई हमारे बराबर का ना हो l कोई हमारा विरोध करने की हैसियत में नहीं हो l इनकी नजर में खुद तथा अपनों को धन्ना सेठ बनाना ही गरीब कल्याण है lगरीब उत्थान है l किसान, मजदूर, बेरोजगार को अब समझ लेना चाहिए कि क्या इन धन्ना सेठ व्यवस्था से आप का कल्याण संभव है ? क्या आपको इनके द्वारा प्रत्यारोपित उम्मीदवारों को वोट देना है या नहीं? या प्रश्न करना है कि आपके दलों में कितने गरीबों को टिकट दिए गए?