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आगरा न्यूज: आगरा पब्लिक स्कूल सभागार विजय नगर कॉलोनी में हुआ काव्य संग्रह लोकार्पण समारोह

संवाददाता। कपिल चौरसिया

आगरा। वरिष्ठ अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक विज का प्रथम काव्य संग्रह रूह के रंगलोकार्पित विद्वान समीक्षकों की मिली सराहना आगरा राइटर्स एसोसिएशन एवं स्वरांजलि ने आगरा पब्लिक स्कूल सभागार में सजाई साहित्य की महफिल जुटे जाने-माने साहित्यकार ।

स्वांत: सुखाय रचना करके भी तुलसी की ऊँचाई का स्पर्श कर सकने का उदाहरण हैं डॉ. अशोक विज डॉ. सुषमा सिंह ।

डॉ. अशोक विज चिकित्सक के साथ बहुआयामी संवेदनशील साहित्यकार के रूप में भी निभा रहे सामाजिक दायित्व डॉ. पुनीता पांडेय पचौरी ।

देश के जाने-माने पत्रकार और संपादक शशि शेखर ने लिखी है रूह के रंगकी भूमिका ।

आगरा रायटर्स एसोसिएशन और स्वरांजलि संस्था के संयुक्त तत्वावधान में शनिवार को विजय नगर कॉलोनी स्थित आगरा पब्लिक स्कूल सभागार में हिंदुस्तान के नामचीन प्रकाशक हिंद युग्म द्वारा प्रकाशित ताज नगरी के वरिष्ठ अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक विज के प्रथम कविता संग्रह “रूह के रंग” का लोकार्पण जाने-माने कवि-साहित्यकारों द्वारा किया गया।

उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के पूर्व कार्यकारी उपाध्यक्ष और विख्यात कवि प्रो. सोम ठाकुर ने समारोह की अध्यक्षता की। केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. रामवीर सिंह मुख्य अतिथि रहे। आगरा पब्लिक स्कूल के चेयरमैन महेश शर्मा मशहूर ग़ज़लकार अशोक रावत वरिष्ठ साहित्यकार शांति नागर और डॉ. त्रिमोहन तरल विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे।

आरबीएस कॉलेज की पूर्व प्राचार्य और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुषमा सिंह और स्वरांजलि की अध्यक्ष डॉ. पुनीता पांडेय पचौरी ने लोकार्पित कृति की समीक्षा की।

आगरा राइटर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट डॉ. अनिल उपाध्याय ने समारोह का संचालन किया। श्रीमती सुनीता विज ने कार्यक्रम का संयोजन किया।

कवि भरत दीप माथुर, पूनम जाकिर और रीता शर्मा ने रूह के रंग संग्रह में से चुनिंदा कविताओं का पाठ करके सबको भावविभोर कर दिया। शुरू में श्रीमती रमा वर्मा श्याम ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।

चिकित्सकीय कुशलता की झलक

रूह के रंग की समीक्षा करते हुए आरबीएस कॉलेज की पूर्व प्राचार्य और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुषमा सिंह ने कहा कि स्वांत: सुखाय रचना करके भी तुलसी की ऊँचाई का स्पर्श किया जा सकता है और अशोक विज भी इसका एक उदाहरण हैं। इनकी कविताओं से यह संदेश मिलता है कि अपने को समझ लेना ही पूर्ण हो जाना है और अपने को जान लेना ही सारी बेड़ियों से मुक्त हो जाना है।

केंद्रीय हिंदी संस्थान की पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पुनीता पांडेय पचौरी ने समीक्षा करते हुए कहा कि डॉ. अशोक विज अपने सामाजिक दायित्व को सिर्फ एक चिकित्सक के रूप में ही नहीं बल्कि अन्य कई रूपों में भी निभा रहे हैं। उन अनेक रूपों में से एक रूप एक बहुआयामी संवेदनशील साहित्यकार का भी है। विशिष्ट अतिथि और वरिष्ठ साहित्यकार शांति नागर ने अपने उद्बोधन में कहा कि डॉ. अशोक विज के काव्य लेखन में एक चिकित्सक की कुशलता झलकती है। शब्द चयन भाव गांभीर्य और समाज को दर्पण दिखाने वाली उनकी रचनाएँ पठनीय और माननीय हैं।

विशिष्ट अतिथि डॉ. त्रिमोहन तरल ने कहा कि लोकार्पित संग्रह की कविता शब्दों की आवाज़ के माध्यम से बहरे आसमानों तक पहुँचने की यात्रा है जिसमें प्रेम के उदात्त समर्पण से लेकर आध्यात्मिक अनुभूतियों के दर्शन होते हैं। डॉ. अनिल उपाध्याय ने रूह के रंग को कुछ इस तरह रेखांकित किया कि सब वाह-वाह कर उठे- “रूह से ये रूह तक की यात्रा है।

मौन से ये शब्द तक की यात्रा है।

भाव को अभिव्यक्ति देती दर‌ असल में। एक सर्जन की सृजन तक यात्रा है।

हर हाल में सकारात्मक रहें

समारोह में लोकार्पित कृति के रचनाकार डॉ. अशोक विज ने कहा कि जीवन में खोने-पाने का खेल चलता रहता है। हमें हमेशा हर हाल में सकारात्मक रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैश्विक महामारी ने हमें यही सिखाया है कि हम अपने लिए भी जरूर जियें।

 

शशि शेखर ने लिखी है भूमिका

देश के जाने-माने पत्रकार और संपादक शशि शेखर ने पुस्तक की भूमिका में लिखा है कि रूह के रंग की कविताओं में हिमालय जैसी शीतल स्थितप्रज्ञता और हिंद महासागर जैसी प्रगल्भता एक साथ देखने को मिलती है। डॉ. अशोक विज के शब्दों में ही रचना अपने रचयिता को/ परिपूर्ण करती है संपूर्ण करती हैलोकार्पण में ये भी रहे। शामिल लोकार्पण समारोह में मंच पर विराजमान अतिथियों के अलावा वरिष्ठ कवि रमेश पंडित डॉ मधु भारद्वाज, राजकुमारी चौहान डॉ आरएस तिवारी शिखरेश डॉ ज्ञान प्रकाश गुप्ता अरुण डंग पवन आगरी हृदेश चौधरी साधना भार्गव संजीव गौतम मानसिंह मनहर नवीन वशिष्ठ डॉक्टर अरुण उपाध्याय सुरेंद्र वर्मा सजग हरविंदर पाल सिंह सुधांशु साहिल सहित अनेक गणमान्य साहित्यकार शामिल रहे। कवि कुमार ललित मीडिया समन्वयक रहे।

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