कहानी : ख्याब

कहानी : ख्वाब
जया मोहन प्रयागराज
सपने जींवन की वो अनमोल चीज है जो हर कोई बेदाम देख सकता है।इसमें अमीर गरीब का भेद भाव नही होता कोई सीमा निर्धारित नही होती।अंतर्मन की छुपी कामना भले ही कुछ समय का सुकू दे पर शयन के उन पलों को रंगीन कर जाती है।कहते है बार बार उसी ख्वाब को देखने पर ईश्वर भी देने को मजबूर हो जाता है।अनाथ रामू किताबो की दुकान पर काम करता था। वहाँ शिक्षा से संबंधित किताबें बिकती थी।उसे पढ़ने की लगन थी।खाली समय मे वह उन्हें पढ़ता सोचता क्या कभी मैं भी कुछ बन पाऊँगा।यह काम मालिक की नज़र बचा करता।एक दिन सेठ जी अचानक आ गए ।रामू हड़बड़ा कर किताब छुपाते हुए खड़ा हुआ।क्या हुआ रामू क्या छिपा रहे हो।जी जी कुछ नही।दिखाओ तो सही।डरते हुए रामू ने किताब दिखा दी।तुम पढ़ना चाहते हो।जी।मैं कल ही तुम्हारे पढ़ने की व्यवस्था करता हूँ।सच मे।हाँ हाँ।रामू तो खुशी से झूम उठा।प्रभु आप कितने दयालु हो मेरे सपने को पूरा कर रहे हो।रामू पढ़ने लगा ।उसकी बुद्धि के कायल शिक्षक भी हो गए ।सेठ जी की मदद व रामू की मेहनत रंग लाई।रामू पी सी एस अधिकारी में चयनित हुआ।सेठ जी के चरण छूते हुए बोला आप ने मदद न कि होती तो मेरा ख्वाब अधूरा रहता।हँसते हुए सेठ जी बोले आधार तो लक्ष्य का तुमने बनाया मैंने तो केवल रंग भर दिया।तुम मिसाल हो उन लोगो के लिए जो समर्थ हो कर भी खुद की दिशा निर्धारित करने वाले सपने नही देखते।किस्मत के भरोसे रहते है।