मेरठ न्यूज: महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की जयंती पर पुष्पांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

संवाददाता: मनीष गुप्ता
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद मेरठ महानगर द्वारा महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की जयंती पर पुष्पांजलि कार्यक्रम चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के गेट पर रख गया। जिसमें मुख्य वक्ता मेरठ विभाग सह संयोजक डॉ राजकुमार जी रहे। राजकुमार जी ने कहा कि बिरसा महान आदिवासी नायक जंगल जमीन की लड़ाई अंग्रजो के खिलाफ संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत किया। संचालन महानगर मंत्री राहुल सिंह ने किया समापन महानगर अध्यक्ष डॉ अंशु शर्मा जी ने बिरसा जी पर विचार रख कर किया। इस मौके पर केयर क्लब के अध्यक्ष गोस्वामी जी भी मौजूद रहे हैं। बिरसा मुण्डा का जन्म 15 नवम्बर 1875 के दशक में छोटा किसान के गरीब परिवार में हुआ था। मुण्डा एक जनजातीय समूह था जो छोटा नागपुर पठार (झारखण्ड) निवासी था। बिरसा जी को 1900 में आदिवासी लोंगो को संगठित देखकर ब्रिटिश सरकार ने आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन्हें 2 साल का दण्ड दिया। 01 अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान (कर) माफी के लिये आन्दोलन किया।

मुंडा विद्रोह को उलगुलान नाम से भी जाना जाता है। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और जिससे उन्होंने अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग “धरती आबा” के नाम से पुकारा और पूजा करते थे। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी। 1897 से 1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त 1897 में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें पहले तो अंग्रेजी सेना हार गयी लेकिन बाद में इसके बदले उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं की गिरफ़्तारियाँ हुईं।
04 जनवरी 1900 डोम्बरी पहाड़ पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत सी औरतें व बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी 3 फरवरी 1900 को चक्रधरपुर के जमकोपाई जंगल से अंग्रेजों द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया। जेल में उन्हे हैंजा हो गया और 9 जून 1900 को रांची जेल में उनकी मृत्यु. हो गई। बिरसा ने अपनी अन्तिम साँसें राँची कारागार में लीं। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है। बिरसा के विचार अमर हो गए। बिरसा मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय विमान क्षेत्र भी है। बिरसा मुण्डा के सम्मान में झारखंड राज्य का गठन भारत सरकार के द्वारा 15 नवंबर 2000 को किया गया।




