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Holi Special:  रंग पर्व होली का खुमार एवं पंचायत चुनाव

सुनील पांडेय( कार्यकारी संपादक)

मित्रों होली का त्यौहार तो बीत चुका है लेकिन हमें उम्मीद है आप सब के तन मन में रंग पर्व होली का खुमार अभी खत्म नहीं हुआ होगा। गुझिया की मिठास और रंग बिरंगे चिप्स -पापड़ की सोंधी खुशबू अभी आपके अंतर मन को महका अवश्य रही होगी ।चारों तरफ होली का उल्लास और उस पर ये रंग-बिरंगे खूबसूरत फूल ।इन फूलों को देखकर मानों ऐसा लगता है जैसे अभी भी इन की रंगत में होली की मस्ती समाई हुई है ।तभी तो बिन बात के यह जरा सी हवा चलने पर झूम उठते हैं। इस प्रकृति के रंग-बिरंगे आवरण को देखकर आप लोगों का मन हर्षित प्रफुल्लित अवश्य हुआ होगा ।कहीं गुड़हल के फूल , कहीं गुलाब के फूल तो कहीं गेंदे के फूल और ना जाने तरह- तरह के कितने फूल इस होली की मस्ती में मदमस्त होकर झूम रहे हैं ।हमारी धरती भी कितनी न्यारी है जब भी कोई त्यौहार आता है तो वह उसी के रंग में रंग जाती है। होली बीतने के बाद भी जिधर देखो उधर एक नया रंग दिखाई दे रहा है ।कोई पंचायत चुनाव के रंग में मस्त है ,तो कोई देश की राजनीति में और तो कोई प्रदेश की राजनीति में मस्त है ।चारों तरफ मस्ती , हर्ष एवं उल्लास का वातावरण दिखाई दे रहा है ।

इस बार होली के साथ-साथ त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का भी रंग छाया हुआ है । प्रत्याशियों में अपना बनाने की जैसे होड़ सी लग गई हो। जिसको देखो वही आकर इस तरह आत्मीय होने का स्वांग रचता है जैसे उससे ज्यादा नजदीकी कोई हो ही नहीं ।चाहे वह पूर्व प्रधान हो या भावी प्रधान हो या किसी अन्य पद का प्रत्याशी हो।ये लोग ऐसे आलिंगन बद्ध कर लेते हैं जैसे लगता है बरसों बाद आज ही इस चुनावी बेला में ही मिले हों। इनसे ज्यादा हितैेषी और शुभचिंतक जैसे कोई मतदाता का है ही नहीं। हाथ जोड़ने एवं पैर छूने की परंपरा तो ऐसी दिखती है जैसे इनसे ज्यादा शिष्टाचार या आदर्शवादी कोई है ही नहीं। राजनीति का रंग बड़ा निराला होता है इसमें जो रंग गया उसे छोटे बड़े का कोई ख्याल नहीं रहता। जो मिल गया उसको प्रणाम किया ,पैर छुए ,अबीर गुलाल लगाया एवं माथे पर तिलक लगाया। जब तक सामने वाला कुछ समझ पाए तब तक यह गवईं नेता तपाक से बोल पड़ते हैं इस बार आपका आशीर्वाद चाहिए। मतदाता भी अब कम चालाक नहीं रहा ,जो भी आता है उसे कहता है आप ही को वोट देंगे और सभी इसे झांसे में रहते हैं कि फला का वोट हमें ही मिलेगा और हम जीत जाएंगे। जीतता वही है जिसको जनता का आशीर्वाद मिलता है।

मैं तो कहता हूं प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनना आसान है पर गांव का प्रधान बनना सबसे कठिन है। इसके लिए प्रत्याशी को एड़ी से चोटी तक जोर लगाना पड़ता है ।साम ,दाम, दंड, भेद चारों का सहारा लेना पड़ता है ।जो जिस तरह मानता है उसे उसी तरह मनाया जाता है ,कोई पैर छूने से मान जाता है ,कोई चढ़ावा चढ़ाने से मान जाता है, कोई दारू- मुर्गा से मान जाता है, तो कोई जलपान पार्टी से मान जाता है ।जिस प्रत्याशी में इतनी क्षमता होती है जीत का सेहरा आखिरकार उसी के सर पर सजता है। चुनाव काल में हम उसके स्वामी होते हैं वह हमारा सेवक होता है। चुनाव जीतने के बाद 5 वर्ष तक वह हमारा स्वामी होता है हम उसके सेवक होते हैं ।यही राजनीति है और यही सदियों से चली आ रही रीति भी है। प्रत्याशियों के रंग में भंग डालना हमारा उद्देश्य नहीं है ।हम तो बस केवल वही पुरानी राम कहानी सुना रहे हैं जो सदियों से चली आ रही है और आगे भी चलती रहेगी।

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