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होली का रंग

कवित्री जयमोहन

फागुन के महीने में चढ़ा होली का रंग
दो समझकर बाबूजी पी गए लोटा भर भंग
90 साल के बाबूजी अब वह गए हैं यंग
हो गए है यंग हाल न पूछो यारा
कड़वी बोली कि जगह अब बोलते प्यारा
धोती कुर्ता की जगह
पहनी है पतलून
यंग दिखने का सिर पर चढ़ा जुनून
बब्बू नाइ से वो बोले
दिखा दे अपना कमाल
स्याम रंग में रंग दे मेरी मूछें और बाल
चुनिया चाची से चुटकी ले बोले थाम ले मेरा हाथ
तू भी अकेली मैं भी अकेला
हो जा मेरे साथ
नही होश में तुम हो कक्का
क्यों करते ऐसी बात
सुन पाए जो बेटे हमारे बिगाड़ देगे तुम्हारी साख
घर जाओ और खाओ खटाई
उतरेगी जब भंग
तबही समझ आएगा कक्का
नही तुम अब यंग

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