Etawah News: प्रसपा नेताओं को रास नहीं शिवपाल का समर्पण, शिवपाल सिंह का भी छलका दर्द

ब्यूरो संवाददाता
इटावा: समाजवादी पार्टी (सपा) से गठबंधन कर मात्र एक सीट की हिस्सेदारी पर संतोष करने वाले शिवपाल सिंह यादव का समर्पित रवैया उनके ही दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के नेताओं और पदाधिकारियों को रास नहीं आ रहा है। यही नहीं पिछले दिनों जसवंतनगर में अपने समर्थकों के बीच एक अहम बैठक में शिवपाल सिंह का भी दर्द छलक पड़ा। इसमें उन्होंने कहा कि पूरी पार्टी गंवा दी उन्हें क्या मिला। शिवपाल के इस बयान से जुड़ा एक वीडियो भी वायरल हो गया है।
विधानसभा चुनाव में सपा गठबंधन का हिस्सा बनने के बाद प्रसपा के सैकड़ों कार्यकर्ता और शिवपाल समर्थक पार्टी छोड़ कर अलग अलग दलों में शामिल हो चुके हैं। माना जाता है कि शिवपाल अपने किसी भी समर्थक को सपा से गठबंधन के जरिए टिकट नहीं दिला पाए हैं। इसी कारण उनके ज्यादातर समर्थकों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सदस्यता ग्रहण कर ली हैं। कुछ समर्थक ऐसे भी हैं जिन्होंने कांग्रेसी और निर्दलीय बन कर किस्मत आजमाना मुनासिब समझा है। खुद प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव केवल एक सीट पर चुनाव मैदान में हैं। जसवंतनगर से शिवपाल सपा के चुनाव चिन्ह साइकिल के साथ मैदान में है।
सपा और प्रसपा को नजदीक से जानने वाले राजनीतिक विश्लेषक की भी समझ में नहीं आ रहा है कि चुनाव से पहले 100 से अधिक सीटों की मांग करने वाले शिवपाल आखिरकार केवल एक सीट पर कैसे मान गए हैं, सिर्फ इतना ही नहीं खुद शिवपाल की पार्टी पीएसपीएल के नेता और कार्यकर्ता भी सकते में हैं लेकिन कोई भी कुछ खुल कर बोल पाने की स्थिति में नहीं है। खुद पीएसपीएल प्रमुख शिवपाल भी अपने भतीजे सपा प्रमुख अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनाने की बात कहते हुए दिखाई दे रहे हैं। केवल इतना ही नहीं उन्होंने अपने बड़े भाई और सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के मुकाबले अखिलेश यादव को अब सपा का नया नेता भी मान लिया है। शिवपाल साफ़ तौर पर कई दफा यह बात भी कह चुके हैं कि अब सपा के नए नेता उनके भतीजे अखिलेश यादव हैं और उनका अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाना एक मात्र लक्ष्य है।
श्री शिवपाल पहले भी कई बार कह चुके थे कि 2022 विधानसभा चुनाव में सरकार किसी भी दल की बने लेकिन वह सरकार का हिस्सा हर हाल में होंगे। यह कुछ ऐसे सवाल थे जिनको लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा होना लाजमी थी ही, कोई यह नहीं समझ पा रहा था कि शिवपाल के इन बयानों का आखिरकार क्या अर्थ है। शिवपाल अपने बयानों में इस बात को भी प्रभावी ढंग से रखते हुए दिखाई देते थे कि वह जब भी चाहते हैं तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीधे बात कर लेते हैं जबकि उनके भतीजे सपा प्रमुख अखिलेश यादव से उनकी बात नहीं हो पाती है। इससे एक बात साफ कही जा सकती है कि शिवपाल के रिश्ते सरकार मे बैठे राजनेताओ के अलावा मुख्यमंत्री से बहुत ही बेहतर है लेकिन इसके विपरीत मुख्य विपक्षी दल ओर उनके भतीजे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से अनबन है।
राजनीतिक हलकों में अब यह भी चर्चा है कि शिवपाल का अब दल केवल कहने भर को ही रह गया है, वास्तविकता में उन्होने सपा में अपने दल का विलय कर लिया है लेकिन इसकी कोई घोषणा अभी आधिकारिक तौर पर नहीं की गई है लेकिन उम्मीद यह जताई जा रही कि आने वाले दिनों में सपा में विलय की प्रक्रिया हर हाल में अपना ली जाएगी। शिवपाल ने तो अपने राजनीतिक गठबंधन से पहले ही कई सीटों पर प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाने की न सिर्फ हामी भरी थी बल्कि उनका टिकट तक फाइनल कर दिया था लेकिन जब समझौता सपा से हुआ तो शिवपाल की पार्टी से टिकट की चाह रखने वाले नेताओं को टिकट नही दिया गया है जिससे उनका राजनीतिक भविष्य अंधकार में हो गया है
शिवपाल ने इटावा सदर सीट से पीएसपीएल उपाध्यक्ष रघुराज सिंह शाक्य का टिकट घोषित किया था बावजूद इसके अखिलेश यादव ने सपा से रघुराज सिंह शाक्य मुकाबले सर्वेश शाक्य को टिकट देना मुनासिब समझा। अभी हाल ही में पीएसपीएल के उपाध्यक्ष रघुराज सिंह शाक्य ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर यादव बेल्ट मे भगवा झंडे को मजबूत करने का वादा किया है। भले ही अपने समर्थको को टिकट ना मिलने पर शिवपाल को खामोश हो लेकिन भीतरी तौर पर आक्रोश बड़े स्तर पर अहसास करा रहा है जो कही ना कही कुछेक सीटे पर नुकसान की ओर इशारा कर रहा है ।