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देश काल और परिस्थिति : मजहब से ऊपर है इंसानियत और दोस्ती

 

मनोज कुमार राजौरिया

लॉकडाउन के दौरान पूरे माहौल को साम्प्रदायिक करने में लगे नेताओं और मीडिया की तमाम कोशिश के बावजूद कहीं ना कहीं से ऐसी खबर देखने को मिल रही है, जिससे लगने लगा है कि हिंदू मुस्लिम भाईचारा अभी भी बना हुआ है।

कुछ ऐसी ही तस्वीर देखने को मिली गुजरात से अपने गांव वापस जा रहे दो नौजवान मजदूरों की। जिसमें एक मुस्लिम युवक अपने हिंदू दोस्त के मृत शरीर को गोद में लिए बैठा है, जिसने रास्ते में दम तोड़ दिया है।
चारों ओर नफरत भरी खबरों बीच आई है मित्रता और आपसी भाईचारे को बयां करती दो नौजवानों की कहानी।

ये दोनों मजदूर सूरत (गुजरात) की एक कपड़ा मिल में काम करते थे। लॉकडाउन में मिल बंद हो गई। बेरोजगारी में लाचार भूखे प्यास ये ट्रक में लद कर अपने गांव लौट रहे थे। रास्ते में थकावट, डिहाइड्रेशन और भूख से एक की हालत खराब हो गई, उसे बुखार होने लगा, चक्कर आने लगे और उल्टी महसूस होने लगी। अफवाह के आतंक में ट्रक में बैठे दूसरे मजदूरों ने कोरोना-कोरोना कहकर उसे जबरदस्ती उतरवा दिया। साथ में चल रहा उसका दोस्त उसे अकेला नहीं छोड़ा, वह भी उतर गया।
रास्ते में आती गाड़ियों से रो-रो कर उसनें मदद मांगी, एक दरियादिल आदमी ने उसे हास्पिटल पहुंचाया। लेकिन तबियत इतनी खराब हो चुकी थी कि हास्पिटल में भी उसे बचाया नहीं जा सका। मरने वाला मजदूर हिन्दू था और अंतिम दम तक उसका साथ देने वाला मजदूर मुस्लिम है। यही भाई चारा है और यही मानवता है, जिसे व्यवस्था खत्म कर नफ़रत बोए जा रही है।

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