Bihar news आखिर क्या है भिखना ठोरी गांव की सच्चाई?क्यों नहीं मिला राजस्व गांव का दर्जा

संवाददाता मोहन सिंह बेतिया
भारत नेपाल के सीमावर्ती गांव भिखना ठोरी को एक शतक बाद भी नहीं मिल सका राजस्व गांव का दर्जा। यहां के ग्रामीण भारतीय क्षेत्र में बसे हुए हैं । भारत की नागरिकता भी प्राप्त है और उन्हें वोट देने का अधिकार भी प्राप्त है। ग्रामीणों का कहना है कि हमारा गांव ऐतिहासिक गांव है।
जिसे 1904 में रामनगर राजा के द्वारा इस गांव को बसाया गया था। यहां रेलवे का परिचालन किया जाता था ,भिखना ठोरी स्टेशन हुआ करता था। जहां से पश्चिम चंपारण के अलग-अलग इलाकों में कनेक्टिविटी थी ।लेकिन 2015 में इसे नेपाल के साथ अमान परिवर्तन समझौता के तहत बंद कर दिया गया। ग्रामीणों का दावा है कि उनके पूर्वज पिछले डेढ़ सौ सालो से यहां रहते आ रहे हैं। उनकी कई पीढ़ियां यहां अपना जीवन बिता चुकी है ,लेकिन आज तक भिखना ठोरी को राजस्व गांव का दर्जा नहीं मिल पाया है। जिसके कारण यहां के ग्रामीणों को अपना पक्का मकान बनाने का अधिकार नहीं है। बल्कि कभी भी उजाड़ दिए जाने का खतरा हमेशा बना रहता है ।वहीं दूसरी तरफ वन विभाग का कहना है कि यहां के ग्रामीण रेलवे और वन विभाग के जमीन पर अवैध कब्जा कर यहां रह रहे हैं। आखिर तीन तरफ जंगलों और एक तरफ नदी से घिरे इस गांव के सच्चाई क्या है, क्यों इन्हें यहां संघर्ष करना पड़ता है ।
गांव के लोगों ने बताया कि हमें वोट देने की अधिकार है। हमारे यहां सरकारी विद्यालय है ।उप स्वास्थ्य केंद्र है हमारा राशन कार्ड बना हुआ है ।हम हर चुनाव में वोट देते हैं। यहां बुथ बनता है लेकिन हमारे गांव को राजस्व गांव का दर्जा नहीं दिया जाता है। वहीं कुछ लोगों ने कहा कि वनाधिकार कानून लागू होने के बाद हमने 179 लोगों का दवा पत्र अनुमंडल पदाधिकारी और वीडियो के कार्यालय में जमा कराया ,लेकिन आज तक वनाधिकार कानून के तहत कोई लाभ नहीं मिला ।वह कहते हैं कि हमें अभी तक बासगीत का पर्चा नहीं मिल पाया है।