Bihar News-माँ शारदे के प्रतिमा के अंतिम रूप देने में जुटे मूर्तिकार

संवाददाता-राजेन्द्र कुमार
सारण /सोनपुर । ,
सरकारी स्कूलों से विलुप्त हो रही मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की परंपरा , विद्यार्थियों में निराश
मिट्टी की प्रतिमा को ही शुभ माना जाता हैं। शुभ मुहूर्त में करना चाहिए पूजा अर्चना व विसर्जन –मौनी बाबा
सोनपुर । श्वेत वस्त्र, हाथों में कमल और वीणा, हंस ,कमल पर सवार मां सरस्वती आशीर्वाद देने 14 फरबरी ( बुधवार) को आ रही हैं। वसंत पंचमी में अब बस 2 दिन शेष हैं। मां सरस्वती की प्रतिमाएं शिक्षण संस्थानों में पहले ज्यादा हो रही थी लेकिन वर्तमान समय में सरकारी स्कूलों में तो धीरे-धीरे समाप्त की कगार पर है । जिससे विद्यार्थी वर्ग निराशा हो जाते है।
मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करने में शिक्षक भी दिलचस्पी नहीं लेते हैं क्योंकि उन्हें दो दिन घर में आराम से छुट्टी मनाने का समय मिल जाता है। जिस विद्या की देवी मंदिर में मां सरस्वती की पूजा ना हो उसमें शिक्षक से लेकर विद्यार्थी की कितनी बुद्धि बढ़ती है इसी से अनुमान लगाया जा सकता है। कहते हैं कि विद्या की दात्री मां सरस्वती है । तभी तो उनके हाथों में कलम ,दवात ,वीणा रहती है । सरकारी स्कूल में मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित नहीं होने से विद्यार्थी वर्ग और श्रद्धालु गण अपने घर के आसपास या चौक चौराहों पर मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कर उन्हें विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करते हुए मां से सुख ,शांति ,समृद्धि और उत्तम फल के साथ विद्या देने के लिए वरदान मांगते है । मां अपने भक्तों को हर मुरादे पूर्ण करती है। बुधवार को सोनपुर प्रखंड के नगर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों के जगह- जगह माता की अलग अलग डिजाइन की प्रतिमा स्थापित करने की तैयारी व सजावट चल रही है। वहीं माँ शारदे के प्रतिमा को अंतिम रूप देने में कलाकार दिन-रात एक किए हुए हैं। माता का भव्य रूप देने के लिए कारीगरों के ब्रश प्रतिमा में बारीकी से चल रही है।रंग बिरंगे कलर प्रतिमाओं में कलर चढ़ा रहे हैं । कलाकार प्रतिमा गढ़ने के साथ ही खुशहाली का वरदान भी मांग रहे हैं। प्रतिमाओं को सजाने-संवारने में घर की महिलाओं व बच्चे की अहम भूमिका है। वर्षों से प्रतिमा बना रहे करीगरों ने बताया कि प्रतिमाओं के लिए गंगा व खेत की मिट्टी का उपयोग करते हैं। प्रतिमाओं को आकर्षक रूप देने के लिए रंग बंगाल से मंगवाते हैं। वे बताते हैं, मां के हाथों में शंख, वीणा, वेदग्रंथ और कमल के फूल से उनकी खूबियों का व्याख्यान करते हैं। फिर गंगा की मिट्टी से उनके चेहरे के तीखे नैन नक्श को आकार देकर आखिरी में मुकुट धारण कराते हैं। अब तक उन्होंने 40 प्रतिमाएं तैयार की हैं।
मिट्टी की प्रतिमा ही शुभ : लोक सेवा आश्रम के व्यवस्थापक व संत मौनी बाबा ने रविवार को बताया कि किसी भी प्रतिमाएं स्थापित किया जाता है तो मिट्टी की प्रतिमा को ही शुभ माना जाता हैं। शुभ मुहूर्त में पूजा अर्चना व विसर्जन करना चाहिए । गंगा की मिट्टी धार्मिक परंपराओं में शुभ हैं। विधि-विधान से की गई पूजा इच्छित फल देती है। यह न केवल धार्मिक परंपराओं से जुड़ी हैं, बल्कि पर्यावरण को भी इससे नुकसान नहीं है।