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अम्बेडकर नगर न्यूजः सियासत की आंच में झुलसते शिक्षक-कर्मचारी संघ

संवाददाता पंंकज कुमार

अम्बेडकर नगर जिले
सियासत जहाँ येनकेन सत्ताप्राप्ति औरकि अवसरवादिता को भुनाने की एक हृदयहीन प्रणाली है वहीं शिक्षक और कर्मचारी संघों की राजनीति मूल्यपरक संघनिष्ठ और लोककल्याण से ओतप्रोत बलदानों की श्रेष्ठ परम्परा की द्योतक है।किंतु कभी जिन शिक्षक संघों और कर्मचारी संगठनों की एक आवाज पर सत्ताएं थर्रा जाती थीं,जेलों में जगह नहीं बचती थी,आज वही संघ सरकारों की ड्योढ़ी पर मुलाकातों हेतु समय मांगते हुए देखे जाते हैं।कहना अनुचित नहीं होगा कि त्याग और समर्पण की भावना के सहारे कर्मचारियों की बदौलत उच्च पदों पर आसीन कर्मचारी नेताओं द्वारा स्वयम को सियासी रंग में रंगते हुए आंदोलनों को तिलांजलि देने से आज जहाँ स्वयम उनका अस्तित्व संकट में पड़ता दिख रहा है वहीं सियासत कदम दर कदम उनको मसलते हुए उनकी उपलब्धियों पर डाका डालती जा रही है,जिससे लोककल्याण की भावनाओं का कोई पुरसाहाल नहीं है।

 

वस्तुतः लोकतंत्र के भटकाव की स्थिति में शिक्षकों व कर्मचारियों के शोषण के विरुद्ध समय समय पर अनेक शिक्षक व कर्मचारी संघ गठित किये गए।जो शुरू शुरू में दलनिरपेक्ष रहते हुए अपने आंदोलनों को महज लोगों तथा कर्मचारियों की समस्याओं व राष्ट्रहित तक ही सीमित रखते थे।लिहाजा विभिन्न राजनैतिक दलों जे समर्थक होने के बावजूद शिक्षक व कर्मचारी अपने आंदोलनों में बढ़ चढ़कर भाग लिया करते थे।यही कारण है कि सत्ता चाहे जिस दल की रही हो किन्तु शिक्षकों व कर्मचारियों ने किसी भी सरकार को अपने हक हुक़ूक़ के लिए बख्शा नहीं औरकि हिलाकर रख दिया।इस दिशा में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के कभी प्रांतीय महामंत्री और कांग्रेस विधायक रहे स्व पंचानन राय का नाम सर्वोपरि है।उत्तर प्रदेश की विधानसभा में शिक्षकों व कर्मचारियों के लगातार होते निलंबन के खिलाफ स्वयम कांग्रेस के विधायक होते हुए भी पंचानन राय ने विधान सभा में धरना दे दिया था।परिणाम स्वरूप तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा को रात 12 बजे अध्यादेश जारी करना पड़ा।आज शिक्षकों व कर्मचारियों का निलंबन महज 60 दिनों में अनुमोदित न होने से स्वत्:समाप्त हो जाता है।यह महत्त्वपूर्ण राज्यादेश उसी का प्रतिफल है।
प्रश्न जहाँ तक राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि होते हुए भी अपने को शिक्षक या कर्मचारी समझते हुए संगठनों का साथ देने का है तो वर्तमान रक्षामंत्री व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह व मुलायम सिंह यादव का नाम सर्वोपरि है।मुलायम सिंह यादव ने जहाँ शिक्षकों की रिटायरमेंट उम्र 62 वर्ष और पेंशन कोषागार से की वहीं राजनाथ सिंह ने आंदोलनरत शिक्षकों व कर्मचारियों को सीमित संसाधनों के बावजूद पंचम वेतनमान प्रदान किया था।गौरतलब है कि राजनाथ सिंह जहाँ महाविद्यालय में शिक्षक थे तो वहीं मुलायम सिंह यादव इंटर कॉलेज में शिक्षक होने के साथ ही साथ इटावा जनपद के संघ के पूर्व जिलामन्त्री भी हैं।

 

अम्बेडकर नगर न्यूजः सियासत की आंच में झुलसते शिक्षक-कर्मचारी संघ

इन राजनेताओं ने कभी भी स्वयम को सियासत में नहीं रंगा अलबत्ता राजनीति के शीर्ष पदों पर पदस्थ अवश्य रहे।
वर्तमान में शिक्षक संघों व कर्मचारी संगठनों की दुर्दशा क्यों हो रही है?इस प्रश्न के उत्तर में संघर्षों के प्रतीक रहे अवकाशप्राप्त शिक्षक आचार्य हरिहर नाथ बताते हैं कि पहले हमलोग संघ का पत्रक पाते ही आंदोलन को सफल बनाने हेतु जीजान से लग जाते थे।सभी शिक्षक व कर्मचारी कभी भी सियासी पार्टियों के नेताओं की बात नहीं सुनते थे।यही हमारी एकता ही सङ्घ की सफलता की मूल वजह थी।उनके अनुसार माध्यमिक शिक्षकों के लिए 1971 से 1974 तक का समय बहुत मुश्किल था किंतु हम लोग सतुआ और चबेना लेकर साइकिल से 100-100 किमी जाते थे और गिरफ्तारियां देते थे।श्री मिश्र के अनुसार आर एन ठकुराई,मांधाता सिंह,ओम प्रकाश शर्मा और पंचानन राय जैसे नेताओं से सरकारें हिल जाती थीं जबकि आज ऐसी बात नहीं है।सत्य तो यही है कि आज टिकट और जीत के चक्कर में शीर्ष नेताओं ने ही संघों को खण्ड-खण्ड कर दिया है।जिलों से लेकर प्रान्त तक युवाओं को दरकिनार करने तथा रिटायर होकर भी हर बार चुनाव लड़ने से नए शिक्षक नहीं जुड़ पा रहे हैं।
शिक्षक और कर्मचारी संघों की घटती प्रासंगिकता और घटती सुविधाओं की एक और बड़ी वजह संघों में आपसी सामंजस्य का अभाव होना भी है।एकतरफ जहाँ कोई सङ्गठन आंदोलन का ऐलान करता है तो दूसरी ओर अन्य संगठन सरकारों से मिलकर आंदोलन को असफल करवाने में अपनी जीत समझने लगते हैं।कदाचित सभी संघों का यही चरित्र आज उनके दुर्दिन का मूल कारणहै।इतना ही नहीं जाति और धर्म के आधार पर होने वाले
चुनाव तथा येनकेन पद पाने की लोलुपता अब त्याग और समर्पण को पीछे छोड़ चुकी है।जिसका लाभ सियासी दल उठाते हुए कर्मचारी संघों को आपस मे लड़ाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं।आज पुरानी पेंशन का खात्मा इसकी ही परिणति है।
-उदयराज मिश्र
नेशनल अवार्डी शिक्षक।

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