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Agra News: पर्यूषण पर्व के दशवें दिन मनाया गया उत्तम ब्रह्मचर्य

संवाद जनवाद टाइम्स न्यूज

जैतपुर: भाद्रपद मास में आने वाले दश लक्षण पर्व को जैन धर्म के लोगों द्वारा बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह दश लक्षण पर्व दस दिनों तक चलता है जिसमें दस धर्मों का उल्लेख किया गया है। इन दश दिनों में श्रावक अपनी क्षमता अनुसार व्रत उपवास आदि करते हैं और ज्यादा से ज्यादा समय भगवान की पूजा अर्चना में व्यतीत करते हैं। रविवार को कस्बा के नेमिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में समुदाय के लोगों द्वारा अनंत चतुर्दशी के दिन उत्तम ब्रह्मचर्य पर्व मनाया गया जिसमें आर्यका विप्रा श्री माता के सानिध्य में बारह किलो का लड्डू भगवान वासपूज्य को अर्पित किया गया।

 

आर्यका विप्रा श्री माता ने ब्रह्मचर्य के बारे में प्रवचन देते हुए कहा ” उत्तम ब्रह्मचर्य मन लावे,नरसुर सहित मुक्ति फल पावें”।उन्होंने अपने प्रवचनों में कहा कि ब्रह्मचर्य का अर्थ उन परिग्रहों का त्याग करना है जो भौतिक संसार से जुड़े हुए हैं। प्राणी को जमीन पर सोना चाहिए,जरूरत से ज्यादा किसी वस्तु का उपयोग न करना, जरूरत से ज्यादा व्यय न करना, मोह और वासना से दूर रहते हुए सादगी से जीवन व्यतीत करना ही ब्रम्हचर्य है। कोई भी प्राणी इसका पालन तभी कर सकता है जब वह अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर ले।  ब्रह्मा का मतलब है आत्मा और चर्या का मतलब है रखना अर्थात आत्मा में रहना ही ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से प्राणी को संपूर्ण ब्रह्मांड का ज्ञान प्राप्त होता है।

 

Agra News: पर्यूषण पर्व के दशवें दिन मनाया गया उत्तम ब्रह्मचर्यब्रह्मचर्य को सभी धर्मों ने प्रथम स्थान दिया है लेकिन जैन धर्म ने इसे अंतिम पायदान पर रखा है जबकि क्षमा को पहले स्थान पर रखा है क्षमा करना सरल है।जैन अनुयायी पूरे साल में किए गए पाप और कटु वचन से किसी के दिल को जाने अनजाने जो ठेस पहुंची हो तो एक दूसरे से क्षमा याचना करते हैं। हाथ जोड़कर गले मिलकर मिच्छामी दूक्कड़म करते हैं। पर्यूषण पर्व को मनाने का मूल उद्देश्य आत्मा को शुद्ध बनाने के लिए आवश्यक उपकरणों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। आत्मा को पर्यावरण के प्रति तटस्थ या वीतराग बनाए बिना शुद्ध स्वरूप प्रदान करना संभव नहीं है।संत मुनि और विद्वानों के सानिध्य में स्वाध्याय किया जाता है, पूजा, अर्चना,आरती समागम, त्याग, तपस्या, उपवास में अधिक से अधिक समय व्यतीत किया जाता है। क्षमा देने से आप समस्त जीवो को अभयदान देते हैं और उनकी रक्षा करने का संकल्प लेते हैं तब आप संयम और विवेक का अनुसरण करते हैं आत्मिक शांति का अनुभव करते हैं और सभी जीवो पदार्थों के प्रति मैथिली भाव रखेंगे तभी आत्मा शुद्ध रह सकती है। जब वह बाहरी तत्वों से विचलित ना हो क्षमा भाव इसका मूल मंत्र है।

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