सम्पादकीय

धर्मनगरी हरिद्वार में अधर्म संसद: डॉ धर्मेंद्र कुमार

लेखक: डॉ धर्मेंद्र कुमार

हरिद्वार धर्म संसद का शीर्षक – “इस्लामिक भारत में सनातन का भविष्य -समस्या और समाधान” भारतीय संसदीय लोकतंत्र पर धर्मांधता का करारा प्रहार है, जो संसदीय लोकतंत्र के साथ लोकतांत्रिक, समाजवादी पंथ निरपेक्ष मूल्यों को समाप्त करने का संकेत देता है ।

Haridwar mein aadhram sansad

हरिद्वार धर्म संसद में धर्म विशेष (मुस्लिम) धर्म को टारगेट कर जमकर भड़काऊ बयानों का खुल्लम-खुल्ला उद्घोष किया गया । जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरि ने मुस्लिमों के विरुद्ध तलवार के साथ आधुनिक हथियार उठाने का युवाओं से/ राष्ट्र से आवाहन किया । हिंदू महासभा की जनरल सेक्रेटरी मां अन्नपूर्णा ने मुस्लिमों के कत्ल करने तक की बात कहने से गुरेज नहीं किया, तो यति नरसिंह आनंद ने हिंदुओं को ज्यादा से ज्यादा बच्चा पैदा करने के आह्वान के साथ तलवार तथा आधुनिक शस्त्र उठाने की बातें कह उद्घोषक नारे लगवाए जिसमें सत्यमेव जयते के स्थान पर शस्त्रमेव जयते जैसे अनर्गल शब्दों का प्रयोग किया गया ।

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देवनागरी लिपि में लिखित सत्यमेव जयते को खंडित करने का दुस्साहस किया । किंतु प्रशासन मौन रहा, सरकार चुप रही ,गृहमंत्री ने धार्मिक उन्माद फैलाने वाले इन धर्मांधहो को जो भारतीयत्व मैं हिंदुत्व का जहर घोलकर इस्लाम को टारगेट करने वालों के खिलाफ संज्ञान नहीं लिया । पुलिस ने 3 दिन बाद हरिद्वार कोतवाली में आईपीसी की धारा 153a के तहत कुछ लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया किंतु गिरफ्तारी करने के लिए पुलिस में साहस नहीं है ।

उधर रायपुर धर्म संसद में संत कालीचरण ने महात्मा गांधी की लंगोटी उतारकर नाथूराम गोडसे को अपने लफ्जों में सम्मान के सिंहासन पर बिठाया l संत कालीचरण को यह बोलने का कोई अफसोस नहीं है l उन्होंने कहा मैं गांधी को न महात्मा मानता हूं और ना राष्ट्रपिता l गोडसे ने अच्छा किया जो महात्मा गांधी में गोली मार दी

उपरोक्त ससदों का हवाला देना आवश्यक इसलिए भी था कि हरिद्वार धर्म संसद के विषय “इस्लामिक भारत में सनातन का भविष्य समस्या और समाधान” जैसे विषय पर अस्थाई संसद आहूत करने का परमिशन किसने प्रदान किया? क्या यह इस्लाम और सनातन अंतर्द्वंद को स्थापित नहीं करता ? क्या भारत इस्लामिक राष्ट्र है? क्या वाकई सनातन खतरे में है ? यदि खतरे में नहीं -तो शस्त्र मेव जयते तथा तलवार या अत्याधुनिक शस्त्र उठाने का आव्हान करने वाले ठेकेदारों पर उचित कार्रवाई क्यों नहीं की गई ? क्या यह कार्यक्रम सरकार द्वारा प्रायोजित है ? जब सरकार चुप है ? प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है ?

सनातन धर्मावलंबियों मैं याद दिला दूं कि संसद फ्रेंच भाषा के “पारलिया” शब्द की व्युत्पत्ति है । जिसका आशय होता है गप-शप की दुकान। ग्रेट ब्रिटेन में संसद का बीजारोपण नॉर्मन एनजीवन काल में हुआ । इसके अंश विटनेजामूट और ग्रेट काउंसिल में मिलते हैं। 12 जून 1215 में जॉन ने ‘मैग्नाकार्टा‘  पर हस्ताक्षर किए किंतु राजा और जनता के बीच संघर्ष का अंत नहीं हुआ । 1265 में साइमन डी मोंटफोर्ट ने प्रथम बार संसद का अधिवेशन आहूत किया । 1295 में एडवर्ड प्रथम ने आदर्श संसद को आहूत किया। 1688 में रक्तहीन क्रांति के बाद वहां वास्तविक संसद की स्थापना हुई ।

संसद जैसी महत्वपूर्ण संस्था का विकास शनै शनै ब्रिटेन में हुआ, जब राजा के अधिकारों को छीन कर संसद में तथा जनता को प्रदान कर दिए गए । इसलिए ग्रेट ब्रिटेन को “ससदों की जननी” कहा जाता है । दूसरे अर्थों में संसद वह प्रतिनिधिआत्मक संस्था है जहां सभी धर्मावलंबियों / मतावलंबियों के प्रतिनिधि स्वतंत्र रूप से अपने वर्गों का ही नहीं संपूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं । जहां एक ही धर्म के लोग इकट्ठे हो उसे संसद बिल्कुल नहीं कहा जा सकता । वह तो सेमिनार, संगोष्ठी या चर्चा मंडली की श्रेणी में आता है । संगीति शब्द का प्रयोग पूर्व काल में हुई बौद्ध संगीतियां /सम्मेलनों को प्रति ध्वनि करता रहा जिसमें बौद्ध रीति-रिवाजों कार्यक्रमों में संशोधन स्वीकार कर नवीन नियमों को संहिताबद्ध लिपिबद्ध कर लागू करना होता था ।

1893 शिकागो धर्म संसद में भारत का प्रतिनिधित्व संत विवेकानंद ने किया ,जहां अनेक देशों के प्रतिनिधि तथा अनेक धर्मों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया जहां स्वामी विवेकानंद का परिधान विदेशी संस्कृतियों के अनुकूल न होने पर भी बिना पक्षपात किए उन्हें संबोधन का अवसर मिला ,क्योंकि संसद शब्द जाति ,लिंग ,स्थान ,धर्म के नाम पर भेद न कर प्रत्येक प्रतिनिधि को उचित अवसर प्रदान करने हेतु वचनबद्ध होती है किंतु हरिद्वार धर्म संसद में एक भी विशेषता स्पष्ट परिलक्षित नहीं होती है । फिर भी धर्म संसद कह देना संसद शब्द का अपमान है ।

सनातनी व्यवस्था सदैव खतरे से गुजरी है। जब भी शूद्र पढ़ लिख कर आगे आए तो सनातन खतरे में ,आरक्षण दो तो सनातन खतरे में ,बी पी सिंह के समय पिछड़ी जाति के लिए आरक्षण लागू किया गया तब सनातनी व्यवस्था ने विरोध कर नारा दिया था कि “आरक्षण होगा वर्गों में ,तो खून बहेगा सड़कों पर”, नारी हक मांगे तो सनातन खतरे में ,समानता की बात हो तो सनातन ख़तरे में, इस्लाम से सनातन खतरे में , ईसाई से सनातन खतरे में ,बौद्ध से सनातन खतरे में , किंतु- जातियों में बांटने पर , छुआछूत फैलाने पर, नारी के अपमान करने पर ,नारी के अशिक्षित रहने पर , शूद्र के अशिक्षित रहने पर , आरक्षण खत्म करने पर, दूसरे धर्मों को बौद्ध /ईसाई/ मुस्लिम /सिख का पूर्ण कत्लेआम या उन्मूलन करने पर, सनातन या हिंदुत्व खतरे में नहीं होता है । गैर बराबरी व्यवस्था को यथा स्थित बने रहने पर सनातन खतरे में नहीं होता । इन्हें डॉक्टर अंबेडकर के द्वारा निर्मित संविधान स्वीकार नहीं, तिरंगा स्वीकार नहीं, यही तो सनातनी अर्थात “तनातनी” व्यवस्था है । जो धार्मिक संसद में संसद शब्द का प्रयोग कर रही है यह सनातनी न होकर फ्रेंच भाषा के “पारलिया” शब्द की व्युत्पत्ति है ।

हरिद्वार धर्म संसद के ठेकेदारों भारत विविधता में एकता रखने वाला राज्य है। जहां हिंदुओं से ज्यादा मुस्लिम कुर्बानियां/ सहादत इतिहास के पन्नों में अंकित हैं। बहादुर शाह जफर, अशफाक उल्ला खां आज भी हमारे आदर्श इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने भारत को आजाद होने के लिए स्वयं को मौत के हवाले करने में हिचक महसूस नहीं की । आज भी गंगा -जमुनी तहजीब हमारा आभूषण है। आज भी हमारी पहचान लाल किला है, आज भी राजस्व अभिलेख तथा कानूनी दस्तावेज बिना उर्दू अरबी के पूर्ण नहीं हो सकते । आज भी नहरे, ग्रांड ट्रंक रोड हमारे जीवन के आधार हैं।
अमन में विष घोलने वाली धर्म संसद तो हथियार उठाकर सिर्फ अशांति पैदा कर रही है जो “सर्वे भवंतु सुखना” तथा “वसुधैव कुटुंबकम “ के आदर्शों को मिटाने का काम कर रही है । जो हमारी भारतीय संस्कृति के विशिष्ट आभूषण है । तुम गांधी को मानो या न मानो, डॉक्टर अंबेडकर के संविधान को मानो ना मानो कोई फर्क नहीं पड़ता किंतु यदि उनका विरोध किया तो उनके नुमाइंदे तुम्हें मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है ।

याद रखो –

न तेरा है न मेरा है, यह हिंदुस्तान सबका है l
नहीं समझे अगर इसको तो फिर नुकसान सबका है l l

सरकार से अनुरोध है कि इस धर्म संसद के उद्घोषको/ आयोजकों की तत्काल जांच कर दंडित करें, ताकि इस तरह विषैले माहौल को पैदा करने वालों से देश में अमन व शांति बहाल रह सके तथा लोकतांत्रिक मूल्यों को जीवित रखा जा सके । भविष्य में इस तरीके की संसद आहूत करने वालों को सोचने पर विवश होना पड़े कि यह भारतीय एकता और अखंडता के खिलाफ है, इस एकता और अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हमें ऐसी धर्म ससदों का विरोध करना होग।

जनवाद टाइम्स इटावा

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