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टूटे सपने (कहानी)

कथाकार -जयामोहन (प्रयागराज )

बिहारी बाबू आज 35 वर्ष की सेवा पूरी कर कार्यमुक्त हुए थे। सरल स्वभाव मधुर वाणी कर्तव्यनिष्ठ होने के कारण वह कार्यलय के सभी सहयोगियों व अधिकारियों के प्रिय थे ।आज उन्हे विदाई देते समय सभी की आंखे नम थी । साथी उन्हें घर तक पहुंचाने आए थे। बिहारी बाबू की पत्नी रमा ने सभी की खूब आवभगत की थी सबको चाय नाश्ता कराया था ।

आज खाना खाते समय बिहारी बाबू ने कहा रमा अब हम स्वतंत्र हो गए बड़ी तमन्ना थी की रिटायरमेंट के बाद हम तीर्थ यात्रा करेंगे हां हां बात तो सही है पर आपको तो काम से ही फुर्सत नहीं थी। हंसते हुए बिहारी बाबू बोले अरे भागवान अब हमारे पास फुर्सत ही फुर्सत है मैंने परसों का हरिद्वार का रिजर्वेशन पहले ही करा लिया है ।अच्छा आपने मुझे बताया भी नहीं । हंसकर उन्होंने कहा यही तो तुम्हारे लिए एक सरप्राईज गिफ्ट था । तैयारी कर लो ।हम लोग परसों ही यहां से निकलेंगे। रमा तैयारी में जुट गई नियत समय पर वे हरिद्वार की गाड़ी पकड़ने के लिए स्टेशन पहुंचे ।रमा ने कहा सुनिए हम यहां से घूमने के बाद बद्रीनाथ भी चलेंगे ।हां हां क्यों नहीं बद्रीनाथ और केदारनाथ दोनों ही जगह चलेंगे ।हां हां जरूर हरिद्वार पहुंच कर उन्होंने गंगा नहा कर मनसा देवी चंडी देवी कनखल ऋषिकेश के दर्शन किए ।बिहारी बाबू ने बद्रीनाथ के लिए पहले से ही गाड़ी बुक कर ली दोनों खुशी-खुशी आगे की यात्रा में कल्पना करते हुए आगे बढ़े ।रमा बोली सुन रहे हैं हम लोग लौट कर सभी रिश्तेदारों प्रियजनों को बुलाकर धूमधाम से भंडारा करेंगे । यह तो बहुत अच्छा विचार है। बिहारी बाबू बोले बद्रीनाथ दर्शन के बाद वे केदारनाथ की यात्रा पर निकल पड़े । मौसम बदल रहा था हल्की हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई थी । केदारनाथ के दर्शन करके जैसे ही वह मंदिर से बाहर निकले बिजली चमकने लगी जोर-जोर गर्जन के साथ बारिश होने लगी लगी।लगा मानो बादल फट गए हैं । चारों ओर पानी ही पानी चीख-पुकार मच गई।भगदड़ मच गई। लोग बहने लगे रमा भगवान का नाम सुमिरन करने लगी लग रहा था जैसे प्रलय आ गया आकाश फट गया है । रमा कस कर बिहारी बाबू का हाथ पकड़ी थी तभी भीड़ का धक्का लगा रमा का हाथ उनके हाथ से छूट गया बिहारी बाबू के देखते ही देखते रमा पानी के तेज बहाव में बह काल कलवित हो गई बिहारी बाबू बेहोश हो गए उन्हें बचा लिया गया था। प्रभु ने उनके सारे सपनो को
पल मेंतोड़ दिया था । जीवनसंगिनी का साथ छूट गया ।अकेले रोते कलपते घर लौटे।सभी उन्हे धीरज बंधा रहे थे।

आज रामा की तेरहवीं थी । सभी इष्ट मित्र परिजन पड़ोसी आए थे बाहर भोज चल रहा था बिहारी बाबू व्यथित हृदय से मौन पत्नी का चित्र निहार रहे थे ।मन ही मन कह रहे थे प्रभु ऐसे भंडारे की कामना तो हमने नहीं की थी जिसमें हमारी पत्नी साथ ना हो । प्रभु क्यों इतना दारुण दुख मुझे जीवन भर के लिए दे दिया ।तभी किसी ने पुकारा उसकी आवाज कानों में पड़ी बिहारी बाबू पंडित जी बुला रहे हैं बिहारी बाबू अंगौछे से आंसू पौछते हुए बोझिल कदमों से पंडित जी के पास चल पड़े।

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जनवाद टाइम्स