
यस, नो, वेरी गुड (लघु कथा)
कथाकार -जया मोहन (प्रयागराज )
सेठ अमीर दास के यहां बहुत दिनों बाद बेटे ने जन्म लिया था ।नाम तो अमीर दास था पर वह एक साधारण कृषक थे । वह चाहते थे कि उनका बेटा खूब पढ़े लाड प्यार से ज्यादा खिला-खिला कर बेटे को मोटा कर दिया था ।वह तन से ही नहीं मन से भी मोटा था । 5 बार में भी आठवीं कक्षा पास ना कर सका । एक रिश्ता आया लड़की वाले चाहते थे कि उनका दामाद अंग्रेजी जानता हो। अमीर दास बेटे के अध्यापक के पास जाकर बोले गुरु जी आप इसे इतनी अंग्रेजी सिखा दीजिए कि इसकी शादी तय हो जाए । गुरुजी ने प्रयास किया पर सिखाने के बाद भी चेला कुछ भी ना सीख पाया। गुरु जी ने झल्लाकर कहा तुम केवल तीन शब्दो का रट्टा लगा लो ।जो बात तुम्हें अच्छी लगे तो कहना यस जो बात बुरी लगे तो कहना नो और जो बात बहुत अच्छी तो कहना वेरी गुड।लड़की वाले आए वे अपने साथ जिसे सबसे योग्य समझते थे लाए ।उसने पूछा भैया आप दारु पीते हो लड़के ने हंसकर कहा यस सबने कहा कुछ बोला बोला अंग्रेजी बोला । भैया तुम मंदिर जाते हो नो उसने अकड़ कर बोला।भैया क्या तुम जुआ खेलते हो वेरी गुड उनमें से किसी को भी जरा भी अंग्रेजी का ज्ञान नहीं था यह सुनकर सब बड़े खुश हो गए । अरे देखो लड़का तीतर की तरह अंग्रेजी बोल रहा है और हम लोग हंस रहे थे कि वह भी इसी स्तर के हैं ।जो लड़के को देखने आए थे ।शादी हो गई लड़के का नाम था भोला है आज भी लड़का ठेला लगाकर चाट बेच रहा है।
उसको देख कर हमे वो पुराना वाकया याद आने से होठों पर हसीं वा हमे देख उसे झेप आने लगती है।