बिहार में वन्यजीव को लेकर वन विभाग बेखबर

संवाददाता मोहन सिंह बेतिया
बिहार का टूरिज्म और एकलौता व्याघ्र परियोजना के अंतर्गत आने वाले वाल्मिकीनगर विश्व पटल पर किसी पहचान की मोहताज नहीं है। कारण कि बेतिया पश्चिम चम्पारण अंतर्गत आने वाला यह वाल्मिकीनगर का जंगल भारत व नेपाल से सटे वन्य जीव जंतुओं के आशियानों के लिए बहुत ही अनुकूल वातावरण के साथ यह जंगली क्षेत्र है जो कि आधुनिक समय में पर्यटन की अपार संभावनाएं लिए हुए एक बिहार प्रदेश का रमणीय प्राकृतिक क्षेत्र है।
साथ ही यह एकलौता बाघों का अनुकूल आशियाना युक्त जंगल है जहाँ बाघ अच्छे से वास व प्रजनन करते हैं। साथ ही यह वाल्मिकीनगर का जंगल महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि और लव कुश की जन्मभूमि भी है। यहाँ वन्य जीव जन्तु उन्मुक्त और निर्भय होकर विचरण करते हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि इसे वाल्मिकी व्याघ्र परियोजना के अंतर्गत इसकी व्यापक तरीके से सुरक्षा व देख रेख भी केन्द्रीय व राज्य स्तर पर की जाती है। जिससे यह अतिसंवेदनशील व अति सुरक्षित जगहों में शुमार है। यहाँ तक की इसके आस पास आने वाले क्षेत्र भी इको सेंसेटिव जोन माना जाता है जहाँ से किसी भी प्रकार की प्राकृतिक संरचना को नष्ट या बदल नहीं सकते हैं।
साथ ही इन क्षेत्रों से किसी प्रकार के वन्य संपदा व वन्य जीवों को नहीं लाया जा सकता है। पर जिला मुख्यालय बेतिया के सड़कों पर इन दिनों खुलेआम देखकर वन विभाग की व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह उठ रहा है।
पश्चिम चम्पारण के मुख्यालय बेतिया नगर निगम क्षेत्र में वन्य पक्षियों के श्रेणी में आने वाले पक्षियों की विक्री लगातार देखने को मिल रही है। घरों व दुकानों को कौन कहें भीड़ भाड़ वाले बाजारों व मुख्य चौराहों पर अवैध रूप से असंख्य तोता को पिंजरा में बंद कर बेखौफ बहेलियों के द्वारा सड़कों पर घुमा घुमा कर बेचा जा रहा है।
पर कमाल की बात है कि जिस जिला मुख्यालय में सीएफ, डीएफओ, फारेस्टर व रेंजर रहते हैं उन्हें कानों कान इन तोतों के बेचने की खबर तक नहीं होती है। उनकी बेखबरता का परिणाम है कि तोता खुलेआम जंगलों से पकड़ कर घर घर पहुंच जा रहे हैं।
जनवरी माह से तोतों की बिक्री बढ़ जाती है कारण कि फरवरी माह से तोतों के द्वारा अंडों से बच्चों को जन्म देना शुरू कर दिया जाता है। वहीं इन जंगलों से पकड़ कर लाए गए तोतों की आरम्भिक मूल्य 500 रूपयों से शुरू होती है। हालांकि पर्यावरण विदों के अनुसार जिन 122 प्रजातियों के पक्षियों को प्रोटेक्टेड श्रेणी में रखा गया है उसमें तोता भी आता है।
सरकार लाखों करोड़ों की बजट वन और वन सम्पदा की सुरक्षा में लगाती हैं ताकि वनों के साथ वन्य जीव जंतुओं को भी बचाया जा सकें। जिससे हमारा पारिस्थितिकी संतुलन बना रहें और प्रकृति की सुंदरता व सुरक्षा बनी रहें। इसके लिए पूरी वन विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को लगाया गया है। पर ऐसा कुछ भी होता नहीं दिखता है।
वहीं जंगली पशुओं में आने वाले बंदरों को पालना वर्जित व गैर कानूनी है पर जिला मुख्यालय के लाल गढ़ फार्म के पास एक बंदर को पाल कर वन जीव जन्तु अधिनियम का खुला उल्लंघन देखने को मिला। जहाँ वन विभाग के कर्मचारी आते जाते तो हैं पर उन्हें पेड़ से बंधा एक बंदर नहीं दिख रहा है।
वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत पक्षियों का बाजार और पक्षियों की बिक्री पर रोक है जिसमें तोता भी आता है। ऐसे में वन विभाग के इस बेखबर कार्य प्रणाली से जंगलों की सुरक्षा पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है। आखिर कैसे बहेलियां व शिकारी इन निरीह व प्रतिबंधित वन्य जीवों का शिकार कर लेते हैं। और वन्य जीवों के अनुरूप उन्हें संबंधित बाजारों में बेखौफ निर्भय होकर बेचते हैं।