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मेरठ न्यूज: स्टेट ऑफ़ द क्लाइमेट इन एशिया 2020 के अनुसार क्लाइमेट चेंज से अकेले भारत को ही पिछले वर्ष 87 बिलियन US डॉलर का नुकसान हुआ।

संवाददाता: मनीष गुप्ता

विश्व मौसम विज्ञान की एक ताज़ा रिपोर्ट स्टेट ऑफ़ द क्लाइमेट इन एशिया 2020 के अनुसार क्लाइमेट चेंज से अकेले भारत को ही पिछले वर्ष 87 बिलियन US डॉलर का नुकसान हुआ है .साथ ही ये ख़बरें भी आयी कि श्रीलंका ,अफगानिस्तान में भयानक खाद्यान्न संकट है.आप इससे अंदाजा लगाइये कि नार्थ कोरिया ने 2025 तक अपने नागरिकों से कम खाना खाने की अपील की है ताकि खाद्यान्न संकट से निपटा जा सके। इन दोनों घटनाओं को आपस में जोड़कर देखे जाने की जरुरत है।अब ये निश्चित हो गया है कि सूखा ,बाढ़,बिना मौसम बरसात,बादल फटना या साइक्लोन जैसी घटनाए आने वाले समय की सामान्य प्राकृतिक आपदाएं होने जा रही हैं। भारत को अधिकांश कृषि खाद्य सुरक्षा,अर्द्ध शुष्क क्लाइमेट क्षेत्रों जैसे पंजाब ,हरयाणा ,पश्चिमी उत्तरप्रदेश ,मध्य प्रदेश से मिलती है। क्लाइमेट चेंज का सबसे बुरा प्रभाव इन्हीं अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों पर पड़ना है। वायु मंडल का तापमान बढ़ने से जमीन में कृषि के लिए आवश्यक कार्बन/ह्यूमस का तेज़ी से वाष्पीकरण होगा जो उपजाऊ जमीन की उर्वरा शक्ति को कम कर देगा। अधिक या कम वर्षा मिटटी के कटाव को तेज कर देगी .आने वाले वर्षों में खेती की जमीन में कमी आएगी। विश्व के कुल मेगा शहरों में से आधों का विकास एशिया में पहले ही हो चुका है। हालाँकि यूरोप की 75 % आबादी की तुलना में एशिया की अभी भी केवल 51 % आबादी का ही शहरीकरण हुआ है लेकिन पिछले 2 दशकों में इसकी वृद्धि विश्व के अन्य किसी भी महाद्वीप से ज्यादा रही है।अकेले चीन का अरबेनाइजेशन 2000 के 30% की तुलना में 2020 में बढ़कर 64 % हो गया है। लेकिन अब जिस तरह से covid -19 ,बदलते क्लाइमेट और असतत और असमावेशी विकास ने नकारात्मक प्रभाव दिखाने शुरू किये हैं उससे लगता है कि 2030 के बाद अर्बनाइजेशन की रफ्तार थम जाएगी। संभवतः अरबेनाइजेशन उल्टी दिशा में चल पड़ेगा ,लोग शहरों को छोड़कर गावों की और पलायन करने लगेंगे Covid के दौर में हमनें इसे महसूस भी किया है। क्लाइमेट चेंज की भयावह तस्वीरें इस ओर प्रत्यक्ष ईशारा कर रही हैं कि,खेती की जमीन पर संकट के बादल घने होने वाले हैं। क्लाइमेट चेंज की मजबूरी और सतत कृषि की आवश्यकता उपजाऊ जमीन की बढ़ती जरुरतों को रेखांकित कर रही है। भारत में मानव सभ्यता के “शहरीकरण के इतिहास”का चौथा चरण अब अपने अंतिम पड़ाव पर आ गया है। मानव को फिर एक बार समझना होगा कि “जीवन”को गाँव पैदा करते हैं।वही असली उत्पादक,जीवन रक्षक और रासायनिक चक्रीकरण के वाहक होते हैं। दूसरी ओर,”शहर शोषण के प्रतीक” होते हैं,जिनका समय-समय पर पतन होना होता है।

जनवाद टाइम्स इटावा

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