अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : भारत की आधी आबादी का सच
डॉक्टर महेंद्र कुमार निगम :अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर यदि हम भारत की आधी आबादी अर्थात भारत में महिलाओं की आजादी और स्थिति की समीक्षा करें तो इस बात से हमें इंकार नहीं कर सकते कि आज भारत में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर कार्य कर रही हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय विदेश सेवा जैसे आम पदों पर भारत की महिलाएं सत्य निष्ठा से कार्य कर रही हैं। डॉक्टर, इंजीनियर , प्रोफेसर, रेलवे और सेना में भी भारतीय महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रही हैं।
लेकिन यदि हम भारतीय समाज में महिलाओं के आधी आबादी का समीक्षात्मक अध्ययन करें तो , हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते हैं कि आज भी भारत में महिलाएं, समाज की मुख्यधारा से अलग अनेक ऐसी कार्य करने को मजबूर हैं, जिसकी कल्पना करना मुश्किल है । आज भी भारत में महिलाओं को पेट की आग बुझाने के लिए बच्चों को
पीठ पर बांधकर, कार्य करते हुए देखा जा सकता। महिलाओं को प्लेटफार्म पर कुली का कार्य करते हुए,
रिक्शा खींचते हुए , सर पर ईट ढोते हुए होते हुए हम आसानी से देखा जा सकता है।
आज भी राजस्थान में महिलाओं को मिलो दूर से सर पर 20 लीटर पानी की गैलरी को आसानी से होते हुए देखा जा सकता है। आज भी बीमारू राज्यों में
महिलाओं को बद से बदतर जिंदगी को जीते हुए, हम हम देख सकते हैं। आज की समाचार पत्रों के माध्यम से भूख के कारण भात- भात कहते हुए मरने की सूचना मिलती है क्यों ? भारत के संविधान के द्वारा महिलाओं को सामाजिक समानता का अधिकार प्राप्त है , फिर भी आज भारत में कहीं न कहीं पितृसत्ता का असली स्वरूप देखने को मिलता। बलात्कार, हिंसा, उत्पीड़न की घटना भारत में आम घटना हो गई है।
भारत में यदि आधी आबादी के हक और अधिकार की बात करते हैं तो पुरुषों अपने नजरिए को बदलना होगा। जब तक पुरुष के पितृसत्तात्मक सोच में परिवर्तन नहीं लाएगा तब तक , स्त्री को सामाजिक समानता के लिए एक पिलर के रूप में स्वीकार नहीं करेगा तब तक महिलाओं हर क्षेत्र में भागीदारी की बात करना नाइंसाफी होगी।