कांग्रेस में परिवारवाद पूरी तरह हावी

सुनील पांडेय कार्यकारी संपादक
भारत की सबसे पुरानी राजनीति पार्टी कांग्रेस में परिवारवाद पूरी तरह से हावी है । कल यानी सोमवार को कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी )की बैठक में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला। जिसका अंदेशा पहले से ही लगाया जा रहा था।
करीब 6 घंटे तक चली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सर्वसम्मति सोनिया के त्यागपत्र की पेशकश को ठुकराते हुए उन्हीं अध्यक्ष पद पर बने रहने की मुहर लगी । इस कार्यसमिति की बैठक में सभी वरिष्ठ नेताओं ने बारी-बारी से अपनी बात रखी, लेकिन इस बैठक में 23 वरिष्ठ नेताओं ने बदलाव की मांग को लेकर लिखे पत्र पर कोई बातचीत नहीं हो सकी । इसका फैसला सोनिया गांधी के स्वविवेक छोड़ दिया गया। कांग्रेस के नए अध्यक्ष का चुनाव अगले वर्ष संभवतः जनवरी माह में एआईसी यानी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में लिया जाएगा। कांग्रेस पार्टी में परिवारवाद इस तरह हावी है कि कोई नेता खुलकर अपनी बात भी नहीं कह सकता। ऐसा नजारा कल कार्यसमिति की बैठक में देखने को मिला । इस पार्टी का आगे भविष्य क्या होगा यह ऊपर वाला ही जाने। इतना ही नहीं इस र्कार्यसमिति समिति की बैठक में राहुल गांधी ने वरिष्ठ नेताओं पर आरोप भी लगाए कि यह नेता भाजपा से मिले हैं।जिसकी प्रतिक्रिया स्वरुप कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल जैसे अग्रणी पंक्ति के नेताओं त्वरित जवाब दिया। उनका कहना था यदि इस तरह के आरोप सही पाए गए तो वह पार्टी से त्यागपत्र देने को तैयार हैं। बाद में राहुल गांधी ने पलटी मारते हुए यह कहा कि उनका आरोप पार्टी के उन नेताओं पर है जो कांग्रेस के हितों की अनदेखी कर रहे हैं। कांग्रेस में परिवारवाद इस तरह हावी है कि मां बेटे के सिवा किसी और की नहीं चलती यह बात जगजाहिर है। बाकी सब नेता कठपुतली सदृश्य हैं यह दोनों जिस तरह चाहते हैं इनकी डोर हिलाते हैं उसी तरह से यह लोग अपना अभिनय करते हैं। जैसा कि पहले अंदेशा था कांग्रेस की पटकथा पहली लिखी जा चुकी थी बस उस पर केवल अभिनय करना बाकी था वह भी कल हो गया।
मेरा मानना है कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी का कायाकल्प तभी हो सकता है जब कांग्रेस कार्यसमिति में ऊर्जावान युवा राजनेताओं का प्रतिनिधित्व हो तथा साथ ही साथ कांग्रेस पार्टी की कमान किसी ऐसे व्यक्ति को दी जाए जो गांधी परिवार से ना आता हो। यह कहना तो सरल है लेकिन कांग्रेस के लिए करना सबसे कठिन है । कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव अगले वर्ष जनवरी तक टाल दिया गया है, लेकिन होगा वही जो सोनिया गांधी और राहुल गांधी चाहेंगे। भारतीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी अपना शाख दिन प्रतिदिन खोती जा रही है। ज्यादातर प्रदेशों से पार्टी का सूपरा पूरी तरह साफ हो चुका है और जहां सरकार है भी वहां भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं । यदि पार्टी को पुनर्जीवित करना है और उसे एक नई ऊर्जा देना है तो इस तरह से कठोर निर्णय तो लेना ही होगा। अब तक किए हुए घटनाक्रम को देखते हुए जो लगता है संभव नहीं है ।जिस पार्टी पर परिवार वाद वंशवाद की राजनीति पूरी तरह से हावी हो वह कभी इस तरह के कठोर निर्णय नहीं ले सकती ।ऐसा पूर्व में हुए हुए घटनाक्रम से समझा जा सकता है। फिर भी हमें पूरी तरह से आशावादी होना चाहिए भविष्य में क्या होगा यह बात हमें भविष्य पर छोड़ देना चाहिए।