Bihar news : अतिवृष्टि और बिमारी से बर्बाद गन्ना एवं धान की फ़सल का मुआवजा अविलंब दे सरकार- वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता

संवाददाता मोहन सिंह
बेतिया
आज पूरे बिहार और देश के किसानों की तरह अपने जिले के किसान मोदी शासन में संकट में है। इस साल हुई अतिवृष्टि और असमय आई बाढ़ ने किसानों की कमर तोड़ दी है। लेकिन सरकार ने अभी तक किसानों को किसी भी तरह का क्षतिपूर्ति राशि नहीं दिया जिसको लेकर 15 सितंबर को किसानों की एक बड़ी बैठक नरकटियागंज के श्रीराम होटल के सभागार में 12 बजे दिन में रखा गया है। जहां क्षतिपूर्ति के लिए आंदोलन की रूपरेखा तैयार होगी।
उक्त बाते गन्ना उत्पादक किसान महासभा के राज्य अध्यक्ष सह विधायक वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता, किसान महासभा के जिला अध्यक्ष सुनील कुमार राव और किसान महासभा के जिला सचिव इंद्रदेव कुशवाहा ने विज्ञप्ति जारी कर दिया। विधायक वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता ने बताया कि जिले के 50 से अधिक पंचायतों में बाढ़ से 50 से 100% तक की फसल की क्षति हुई है।जिले में 1.5 लाख हैक्टेयर (370500 एकड़) जमीन पर लगी गन्ना की फसल में से कृषि विभाग के अनुसार 59000 हेक्टेयर (14573 एकड़) जमीन पर लगी गन्ना की फसल नष्ट हो गई है। जबकि आपदा विभाग के आकलन के अनुसार मात्र 2900 हेक्टेयर(7163 एकड़) जमीन पर लगी गन्ना की फसल को नुकसान है। लेकिन इन दोनों से अलग वास्तविक स्थिति यह है कि जिले में कुल गन्ना की फसल 25% से अधिक अनुमानतः एक लाख एकड़ से अधिक गन्ना की फसल बाढ़ और लाल शरण रोग से नष्ट हो चुकी है। गन्ना की इस तरह की बर्बादी का कारण या चीनी मिलें और बिहार की भाजपा-जदयू की सरकार है। चीनी रिकवरी के लालच में चीनी मिलों और बिहार सरकार के नापाक गंठजोड़ ने किसानों को CO-0238 प्रभेद रोकने के लिए मजबूर किया है। बिहार के कृषि वैज्ञानिकों ने इस प्रवेश को बिहार की मिट्टी में रोकने की अनुशंसा के लिए प्रयोग का समय मांगा। लेकिन सरकार ने चीनी मिलों के दबाव में आनन-फानन में बिहार के किसानों को CO-0238 लगाने के लिए मजबूर कर दिया। आज गन्ना का यह प्रभेद वर्षा और बाढ़ को नहीं झेल पा रहा है।
परिणाम स्वरूप एक झटके में बिहार के कई लाख गन्ना किसान बर्बाद है। बिहार की भाजपा-जदयू की सरकार मैं कई वर्षों से चीनी उद्योग में काफी गिरावट है। इस साल तो चीनी उद्योग के साथ किसानों को भी नीतीश सरकार ने मार दिया है। चीनी मिलों के दबाव में बिहार सरकार अपने गन्ना रिसर्च स्थानों के बीजों को नष्ट कराने पर तुली हुई है। कारपोरेट के खेती में हस्तक्षेप का भयंकर प्रभाव का यह एक उदाहरण मात्र है। सोने की अंडा देने वाली मुर्गी (किसानों) की हत्या चीनी मिलों के द्वारा लालच में कर दी गई है। विधायक ने कहा कि तीन काला कृषि कानून वापसी समेत किसानों के गन्ना और धान फसल की मुआवजा को लेकर संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर गन्ना उत्पादक किसान महासभा और किसान महासभा पश्चिम चंपारण के सड़कों पर उतरेगा।
किसान महासभा के जिला अध्यक्ष सुनील कुमार राव ने कहा कि बाढ़ से तबाह गन्ना व धान के लाखों किसानों को सरकार ने अभी तक राहत देने शुरू भी नहीं किया है। सरकार ने अभी यह भी तय नहीं किया है कि धान व गन्ना की फसल के मुआवजा की राशि क्या होगी और अभी तक किसानों को अपनी बर्बादी की दावेदारी का आवेदन कहां देंगे उसका भी पोर्टल नहीं खोला गया है। यह भाजपा-जदयू की सरकार का घोर विरोधी रवैया है।
जो धान की फसल बची है वह भी यूरिया संकट झेल रही है। एक तो मोदी सरकार ने जून,जुलाई माह की तरह अगस्त में भी बिहार को एक लाख मैट्रिक टन कम यूरिया भेजा है। जब किसानों को सबसे ज्यादा धान की फसल के लिए यूरिया जरूरी होती है तभी ही बिहार को सरकार ने खाद कम दिया है। ऊपर से भाजपा-जदयू की नीतीश सरकार ने थोक विक्रेताओं के माध्यम से लूट का साम्राज्य कायम कर दिया है। यूरिया की कालाबाजारी चरम पर है। काशीनाथ इंटरप्राइजेज और कमल इंटरप्राइजेज जैसे थोक विक्रेताओं द्वारा कभी लाइसेंस धारियों को पंचायत सर पर हाथ देने के बदले चार-पांच पंचायतों के खाल को अपने खास खास डीलर को देकर कालाबाजारी करा रहे है। ऐसे थोक विक्रेताओं पर कार्रवाई के बदले राज्य के कृषि विभाग ने बड़े पदाधिकारी वसूली के लिए दौरा पर दौरा और भी.सी. पर भी.सी. रोज बारोज कर रही है।
किसान महासभा के जिला सचिव इंद्रदेव कुशवाहा ने कहा कि इस साल मोदी सरकार ने गन्ना की लागत मूल्य (FSP) मात्र ₹5 बढ़ाया है। जबकि प्रति लीटर डीजल का मूल्य ही किसी किसी महीने में ₹5 से ज्यादा बढ़ा है। जो हर महीने कुछ ना कुछ बढ़ते रहा है। मोदी सरकार ने कृषि लागत मूल्य आयोग में लगता है कारपोरेट टुकड़खोरो की जमात को ही बैठा दिया है । 5 सालों से गन्ना का मूल्य लगभग स्थिर बना हुआ है, जबकि महंगाई आसमान छू रही है। बिहार में गन्ना का मूल्य पंजाब की तरह कम से कम ₹360 प्रति क्विंटल करने की जरूरत है।