Bihar news चारु मजुमदार की शहादत भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन की गौरवशाली विरासत है :भाकपा माले
संवाददाता मोहन सिंह बेतिया
कोलकाता के लालबाजार पुलिस लॉकअप में कामरेड चारु मजुमदार की मृत्यु के बाद पचास वर्ष बीत चुके हैं. उस समय, भारतीय राज्य ने राहत की बड़ी सांस जरूर ली होगी – यह सोचते हुए कि उनकी मौत से नक्सलबाड़ी के बाद पूरे भारत में फैल जाने वाली क्रांतिकारी लहर का अंत हो जाएगा. लेकिन पांच दशक के बाद, जब मोदी हुकूमत विरोध की हर आवाज को दबा देने का प्रयास कर रही है, तब उसे इस विरोध को दंडित करने के लिए ‘अरबन नक्सल’ शब्द को गढ़ना पड़ा है. स्पष्ट है कि नक्सलबाड़ी और चारु मजुमदार का हौवा उनकी मृत्यु के पांच दशक बाद भी भारतीय शासकों का पीछा नहीं छोड़ रहा है.
उक्त बातें भाकपा माले नेता सुनील कुमार राव ने भाकपा माले के संस्थापक महासचिव चारु मजूमदार के पचासवें शहादत दिवस पर बैरिया, तधवानंदपुर और बगहीं रतनपुर पंचायतों में आयोजित कार्यक्रमों में कहा. उन्होंने कहा कि आज जब आधुनिक भारत बदतरीन किस्म की राजनीतिक विपदा झेल रही है, तब आज के फासीवाद-विरोधी प्रतिरोध के संदर्भ में चारु मजुमदार की भावना, भविष्य-दृष्टि और बुद्धिमत्ता ने एक नई प्रासंगिकता ग्रहण कर ली है. माले नेता सुरेन्द्र चौधरी ने कहा कि इमरजेंसी के साथ जुड़ा लोकतंत्र का निलंबन और दमन आज इतना सर्वव्यापी और स्थायी हो गया है कि इमरर्जेंसी की औपचारिक घोषणा का कोई मतलब ही नहीं रह गया है. प्रभुत्वशाली मीडिया का चरित्र इतनी पूरी तरह से और नाटकीय तौर पर बदल दिया गया है कि मीडिया सेंसरशिप की भी कोई जरूरत नहीं रह गई है. कार्यपालिका आज गणतंत्र के तीन अन्य स्तंभों – न्यायपालिका, विधायिका और मीडिया – को सारतः नियंत्रित कर रही है; और कार्यपालिका के गिर्द सत्ता के केंद्रीकरण ने जो कुछ भी संघीय संतुलन हमें हासिल था, उसे पूरी तरह से उलट-पलट दिया है. माले नेता व मुखिया संघ के प्रवक्ता नवीन कुमार ने कहा कि सत्ता के बेलगाम केंद्रीकरण और संकेंद्रण के साथ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का अभूतपूर्व तीखापन तथा नफरत और झूठ का व्यापक फैलाव भी जुड़ गया है. भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक तानेबाने पर विभाजन के खौफनाक दिनों के बाद से इतना बड़ा हमला कभी नहीं हुआ था. और इस घातक फासिस्ट आक्रमण के साथ देश के मूल्यवान प्राकृतिक, अधिसंरचनात्मक और मानव विकास संसाधनों की निरंतर कॉरपोरेट लूट भी चल रही है. ठाकुर साह ने कहा कि स्वतंत्रता आन्दोलन की लंबी अवधि में और एक संवैधानिक गणतंत्र के बतौर भारत के अस्तित्व के 75 वर्षों के दौरान भारत ने जो भी उपलब्धियाँ हासिल की थीं और भारत की जनता ने जो भी अधिकार प्राप्त किए थे, वे सब आज दांव पर चढ़ गए हैं. कामरेड चारु मजुमदार से सीखते हुए, हमें एक बार फिर अपने संचित ऐतिहासिक संसाधनों की गहराई में उतरना होगा और जनता की क्रांतिकारी पहलकदमी तथा कल्पना को नई गति देनी होगी, ताकि इस फासिस्ट योजना को नेस्तनाबूद किया जा सके और लोकतांत्रिक पुनरुत्थान के नए युग का सूत्रपात किया जा सके. बैठक में ठाकुर साह, सुरेन्द्र साह, बिनोद प्रसाद, अखिलेश प्रसाद, लाल बाबू पटेल, अनिल सिंह, बिनोद कुशवाहा, राजेन्द्र प्रसाद, शिवपरशन मुखिया, संजय कुशवाहा, मोजम्मिल हुसैन आदि थे.