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लॉकडाउन की पीड़ा : कहानी

 

सुनील पांडेय :  कार्यकारी संपादक

हीरा अपने गांव रामगंज का सबसे बलिष्ठ लड़का था। जैसे उसका नाम हीरा था वैसे काम करने में भी हीरा था। घर की स्थिति अच्छी ना होने के कारण हीरा केवल तीसरी क्लास तक पढ़ पाया था। चौथी क्लास की फीस उसके मां-बाप नहीं दे पाए जिसके चलते उसका नाम काट कर भगवतीदीन हेडमास्टर साहेब ने उसे स्कूल से भगा दिया। तब से ही वह गाँव में मेहनत मजदूरी करने लगा । हीरा के माता पिता काफी बूढे़ हो चुके थे वह अब मेहनत मजदूरी नहीं कर पाते थे। 16 साल के हीरा पर घर गृहस्ती का पूरा बोझ आ गया था। तब से वह इस बोझ को हंसकर सहन कर रहा था। गांव में वह सभी के यहां काम करता था मजाल है की उसके काम में कोई मीन- मेख निकाले। वह बड़ा ही मेहनती और जिम्मेदार लड़का था। उसे गांव के लोग जो भी काम देते थे वह हंसकर उन्हें समय से पूरा कर देता था। उसके काम की वजह से गांव वाले लोग उसे बहुत चाहतेथे । यदि किसी को वह 200 रुपए मजदूरी देते तो हीरा के काम से खुश होकर गांव वाले उसे 220 रुपए दे देते थे । वह कहता बाबू हमार तो 200 रुपइया ही हुआ आप काहे को हमें 20 रुपइया जियादा दे रहे हैं । तब गांव कहते हीरा तेरे काम में और औरों के काम में जमीन आसमान का अंतर है ,तू काम से जी नहीं चुराता और अपने काम को बड़ी मेहनत और ईमानदारी से करता है। इसी से तेरे काम से हम सब गांव वाले बडे़ खुश रहते हैं। तेरे बाबू अम्मा भी तेरी तरह ही मेहनती और ईमानदार हैं। उनके काम को देख कर गांव वाले बड़े अदब से उन्हें भगत काका कहा करते हैं। मजाल है कि गांव का कोई भी आदमी भगत काका से रे ते करके कभी बात किया हो। हीरा तू भी उन्हीं का बेटा है तेरे काम करने का रंग -ढंग हुबहू भगत काका जैसा है। भगत काका और उनकी पत्नी का हाल-चाल गांव वाले रोज हीरा से पूछते थे और कहते हीरा बेटा भगत काका को कभी कोई तकलीफ मत देना। यदि उन्हें रुपए पैसे की कोई जरूरत हो तो बेहिचक हम लोगों से कह देना। हम लोग भगत काका और काकी के लिए हर तरह की मदद करने को तैयार हैं। तू संकोच ना किया कर आखिर भगत काका भी तो हम लोगों के लिए अपनी जवानी से लेकर जब तक शरीर में ताकत थी जीतोड़ मेहनत किया। आज बूढ़े हो गए हैं तो हम सबको उनकी मदद करने में कोई कोताही नहीं करनी चाहिए। तू हम लोगों के छोटे भाई और बेटे जैसा है अगर तुझे कोई दिक्कत हो हम लोगों से बेझिझक कह दिया कर संकोच ना किया कर। तेरा हम लोग ध्यान नहीं देंगे तो दूसरे गांव वाले थोड़ी देगें।
धीरे धीरे समय बीतता गया अब हीरा की शादी हो चुकी थी वह भी बाल- बच्चों वाला हो गया था। उसकी लुगाई को हीरा का गांव में काम करना जरा भी अच्छा न लगता था। वह कहती तू इतना मेहनती और भोला है गांव वाले तुझेसे मीठा -मीठा बोल कर अपना काम निकाल लेते हैं, तू परदेस क्यों नहीं चला जाता। वहां जाएगा तो तुझे अच्छी मेहनत -मजदूरी भी मिलेगी ।अब हमारे बाल- बच्चे बड़े हो रहे हैं
और हमारा खरच भी बढ़ गया है। एक तरफ बाबू अम्मा दूसरी तरफ दो बच्चे सब का खरचा इस गांव में अब मेहनत मजदूरी करके पूरा होने वाला नहीं है। हीरा अपनी लुगाई की बात हंस कर टाल देता और कहता इस गांव में रहकर हमारे बाबू अम्मा ने हमें पाला- पोसा है ,गांव वाले हमें भी बहुत प्यार करते हैं और हमारी हर तरह से मदद करते हैं। अभी इतना तो हमें मेहनत मजदूरी करके इस गांव में मिल ही जाता है कि जिससे हमारा खर्चा पूरा हो सके , पर उसकी लुगाई को तो जैसे शहर भेजने का भूत ही सवार था। उसके मैंके मैं उसकी सारे सहेलियों के मरद शहर में काम करते थे। वह कहती मुझसे जब मेरी सहेलियां पूछती हैं,
तेरा मरद क्या काम -धंधा करता है। मैं उनसे जब यह बताती हूं वह गांव में रहकर कमाते -खाते हैं , तब वह कहती हैं तू भी अपने मरद को शहर भेज दे वहाँ से ढेर सारा रुपिया -पइसा कमा कर लाएगा और तेरे लिए साड़ी जेवर भी बनवा देगा। इस बार तो जैसे हीरा की लुगाई ने मन में ठान ही लिया था कि वह हीरा को शहर भेज कर ही दम लेगी। हीरा अपनी लुगाई की रोज-रोज के चिक- चिक सुनकर तंग आ चुका था और एक दिन परदेश जाने को तैयार हो गया। उसकी एक सहेली का मरद जो गुजरात के सूरत शहर में काम करता था वह हीरा को भी सूरत ले गया। वहां पर एक कपड़े की फैक्ट्री में हीरा का काम लगवा दिया। वहां हर महीने में उसे 10 हजार पगार और रहने के लिए एक कमरा भी मिला गया था। हीरा के काम को देखकर उसके फैक्ट्री का मैनेजर बहुत खुश हुआ और अगले महीने उसकी पगार 12 हजार कर दिया। हीरा पहली बार जब अपने घर डाकघर से 7 हजार रुपए मनीऑर्डर भेजा तो उसकी लुगाई को जैसे खुशी का ठिकाना ही ना रहा। दूसरी बार तो पूरे 9 हजार मनीऑर्डर किया इस बार उसकी लुगाई और भी खुश हुई। सारे गांव में खुशी के मारे ढिंढोरा पीट दिया की हीरा शहर में पूरे 12हजार कमाता है। तीसरे माह पूरे देश में एक ऐसी महामारी आ गई जिससे सूरत ही क्या पूरे देश की फैक्ट्री अचानक एक ही दिन में बंद हो गई । हीरा अपने पास केवल 3 हजार खर्च के लिए रखा था पूरा रुपिया घर मनीआर्डर से लगा दिया था। उसके पास जो पैसा बचा था अब वह भी खरच हो गया। अब तो सूरत जैसे शहर में उसका रहना भी दूभर हो गया, जेब में पैसे तो थे ही नहीं ऊपर से सारे देश में लाकडाउन का कहर।

एक दिन वह अपने फैक्ट्री के मैनेजर से हाथ जोड़कर बोला साहेब हमको 2 हजार रूपए एडवांस दइ दें हम घर जाना चाहते हैं। यहां तो अब सब कामकाज बंद है फैक्ट्री बंद ही चल रही है ना जाने कब खुलेगी। फैक्ट्री जब दुबारा खुलेगी तब हम आकर ई पैसा कटवा देंगे हमारा विश्वास करिए मैनेजर साहेब । उसका मैनेजर बोला हीरा हम तुम्हारी बात से सहमत हैं लेकिन मालिक ने मजदूरों को एक भी रुपए देने से मना किया है। हीरा हो सके तो मुझे माफ करना हम चाहते हुए भी तुम्हारी मदद नहीं कर पा रहे हैं । हीरा बोला जाने दीजिए मैनेजर साहेब जब मालिक नहीं देगा तो का आप अपने जेब से देंगे। इसी दौरान दो-चार दिन तक हीरा इधर- उधर से उधार बाढी़ लेकर जैसे तैसे कुछ खा पी लेता था अब वह पैसे भी खत्म हो गए । हीरा को अब सूरत में रहने का कोई मतलब नहीं दिखाई दे रहा था वह अपने गांव को पैदल ही निकल पड़ा। अभी वह सूरत शहर से सौ सवा सौ किलोमीटर दूर ही चला था अपने गांव के बारे में मन ही मन सोच रहा था की गांव में हम कितने खुश थे। लुगाई के कहने पर मेरी मति मारी गई थी मैं शहर आ गया। अब घर कैसे पहुंचेंगे सफर बहुत लंबा है जेब में फूटी कौड़ी नहीं है हम खायें क्या और पीएं क्या । इसी सोच में वह डूबा ही था तभी अचानक पीछे से आ रही एक ट्रक ने उसे टक्कर मार दी वहीं पर उस की जीवन लीला समाप्त हो गई।

 

पुलिस वाले ने जब उसके जेब को टटोला तो उसमें उसका आधार कार्ड मिला जिसमें उसके गांव का पता व मोबाइल नंबर दर्ज था। पुलिस ने उसके घर पर फोन किया और बताया कि हीरा एक दुर्घटना का शिकार हो गया और उसकी मौत मौत हो गई है। खबर सुनकर बूढ़े मां बाप लुगाई और बच्चों का बुरा हाल हो गया। घर में रोना पीटना और कोहराम मच गया। हीरा के बाबू अम्मा और गांव वाले हीरा की लुगाई को दोष दे रह थेेे काश हीरा दो पैसे जियादा कमाने के चक्कर में शहर ना गया होता तो उसकी जान ना जाती। हीरा की लुगाई अब पछता रही थी और अपने को मन ही मन कोस रही थी । जो होना था सो हो गया अब पछताने से क्या होगा हीरा तो चला गया। उसके परिवार पर अब दुखों का पहाड़ टूट गया था ।बेटे के गम में एक हफ्ते बाद हीरा के बूढ़े माता-पिता भी परलोक सिधार गए । बेटे का गम बहुत बड़ा होता है हर कोई इसे सहन नहीं कर पाता। हीरा की लुगाई अब अकेली हो गई थी उसके पास अब बचा था तो हीरा की यादें और उसकी दो निशानी कल्लू और मुनिया । हीरा की यह कहानी हीरा जैसे जाने कितने नौजवान कामगारों का दर्द बयां करती है जो अपना गांव छोड़कर चार पैसे कमाने के लालच में शहर चले जाते हैं और अंत में उनकी मौत का पैगाम ही उनके घर आता है।

जनवाद टाइम्स

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