मेरठ न्यूज: संकाय विकास कार्यक्रम आयोजित।

संवाददाता: मनीष गुप्ता
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के मान्यवर कांशीराम शोध पीठ एवम इंडियन इकोनॉमिक एसोसिएशन के सौजन्य से सामाजिक एवम मानविकी विज्ञान में शोध प्रविधि एवम समंक विश्लेषण तकनीक विषय पर आयोजित 14 दिवसीय संकाय विकास कार्यक्रम के चौथे दिन आज 03 मार्च को प्रथम सत्र के रिसोर्स कर्ता प्रो पीके चौबे सीनियर कंसलटेंट, स्कूल ऑफ सोशल साइंस, इग्नू, नई दिल्ली, ने विज्ञान और समाजशास्त्र के क्षेत्र में शोध प्रक्रिया की विविधता और विभिन्नता पर विस्तृत चर्चा की। विज्ञान के क्षेत्र में जहा आज नई तकनीक, नए टूल, नई सोच को अपनाया जा रहा है। समाजविज्ञान व विज्ञान में पूर्व स्थापित तथ्य ही अंतिम सत्य नही है। उन्हें नकार कर उन पर पुनः शोध की आवश्यकता है। उन्होंने हजारी प्रसाद द्विवेदी के उपन्यास “अनामदास का पोथा” का उदहारण देकर समझाया की दर्शनशास्त्र वस्तुओ को अलग नजरिए से देखता हूं। उन्होंने शोध को मूल्यमीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा रीति विधान के माध्यम से कार्यान्वित करने पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने हाई फ्रीक्वेंसी डेटा, बिग डेटा, डेटा माइनिंग, फोर कास्ट, बैक कास्ट, नाओ कास्ट, ईवे बिल, नेती एवम चरेवती आदि अवधारणाओं पर विस्तृत एवम महत्वपूर्ण चर्चा की। उन्होंने सभी प्रतिभागियों को संदेश दिया कि यह सोचा जाए की क्या हमने अपने विषय में कुछ योगदान दिया है? उन्होंने कहा कि वास्तविक शोध विषयो की सीमाओं पर होना चाहिए। द्वितीय सत्र में डिपार्टमेंट ऑफ ह्यूमेनिटीज व सोशल साइंस, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रुड़की के अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो एसपी सिंह ने अपने वक्तव्य में शोध के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालते हुए। शोध प्रक्रिया के विविध सोपानों को विस्तार से प्रस्तुत किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि शोध विषय के चयन में रुचि व प्रासंगिकता का विशेष रूप से ध्यान रखे। शोध प्रस्ताव में उसका उद्देश्य स्पष्ट हो। उसकी विशेषताओं पर स्पष्ट रूप से प्रकाश डालना आवश्यक है। शोध की परिकल्पना संक्षिप्त, सारगर्भित और उपलब्ध साहित्य पर आधारित हो। उन्होंने शोध प्रस्ताव, शीर्षक, परिकल्पना, रिव्यू ऑफ लिटरेचर, शोध के उद्देश्य, शोध रिव्यूअर के द्वारा लगाए गए आपेक्षो तथा शोध विषय निर्धारण हेतु चुनाव कमेटी द्वारा आने वाली संभावित समस्याओं, शोध की प्रासंगिकता और शोध के संभावित परिणामों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने प्रतिभागियों के सर्वे में आने वाली समस्याओं का भी निराकरण किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि अति विश्वास से संदेह कही बेहतर है। उनके अनुसार हमें अपने विचारो को अभिलेखों में बदलना चाहिए। उन्होंने शोध प्रस्ताव, पीएचडी प्रस्ताव के बारे में तथा इस हेतु आर्थिक सहायता के स्त्रोतों के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने लिकर्ट स्केल तथा अन्य शोध विधियों के माध्यम से अपने विचारो को स्पष्ट किया। एफडीपी के समन्वयक प्रो दिनेश कुमार ने सभी प्रतिभागियों को शोध के प्रति जागरूक रहने तथा नवीनतम विधियों के प्रति लगातार जानकारी बढ़ाने हेतु विशेष वक्तव्य देते हुए प्रतिभागियों के उत्तरदायित्व को समझाने का प्रयास किया। प्रथम व द्वितीय सत्र में डॉक्टर रूपेश त्यागी तथा रविन्द्र कुमार ने रिसोर्स कर्ता का स्वागत तथा आभार प्रस्तुत किया। डॉक्टर साधना तोमर, मनीष अग्रवाल, मंदाकिनी मीना व सचिन कुमार ने प्रथम व द्वितीय सत्र की रिपोर्ट राइटिंग की। कार्यक्रम डॉक्टर ममता सिंह का विशेष योगदान रहा।