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रंभा (लघुकथा)

जयामोहन प्रयागराज

कल्लू अहीर दूध का व्यापार करता था। वैसे तो उसके पास बहुत सी गाय थी पर कल्लू अहीर अपनी सब गायों में रंभा को सबसे ज्यादा प्यार करता था।उसे खूब दाना चूनी चोकर खिलाता।रंभा ऊंची तगड़ी सुंदर गाय थी ।एकदम चिकनी मक्खी भी बैठे तो फिसल जाए दूध भी सबसे ज्यादा देती और उसका दूध भी स्वाद में सबसे अलग था। लोग उसके ही दूध की मांग करते ।

समय के साथ-साथ रंभा भी बूढ़ी हो गई। जो कल उस पर जान निछावर करता था उसने उस पर ध्यान देना बंद कर दिया ना तो उसे ठीक से खाना देता ना समय से पानी। एक दिन उसने रंभा को खूंटे से खोलकर बाहर कर दिया बेचारी कहा जाए। वह सोच रही थी कि मुझसे क्या गलती हो गई जो मालिक ने मुझे इस तरीके से निकाल दिया। कुछ धर्मी लोग उसे कभी-कभी रोटी दे देते। कुछ उसे डंडे से मार कर भगा देते। वह मूक जानवर अपनी इस स्थिति पर आंसू बहाता। शहर में कुछ लोगों ने गोकशी करी थी। बहुत बड़ा बवाल हुआ था। जिनके जानवर मरे थे सरकार से उन्हें भारी मुआवजा मिला था। कल्लू ने जब सुना तो वह भी भागा भागा शिनाख्त करने के लिए गया शायद मेरी रंभा हो रंभा थी मगर वह स्वयं भूख से मरी थी। उसे देखकर कल्लू जोर जोर से रो रहा था मैंने पूछा कल्लू चुप हो जाओ क्या बात है।

रंभा (लघुकथा)उसने बताया रंभा मर गई मुझे उसके जाने का गम नहीं है अरे भैया उसे मरना ही था तो गोकशी से मरती कम से कम मुझे मुआवजा तो दिला जाती मन एकदम से दुखी हो गया। कैसे हैं लोग जो इस तरह की भावनाओं की सोच रखता है ।

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जनवाद टाइम्स