सरकार, प्रदूषण व सेटेलाइट का घालमेल : डॉ धर्मेंद्र कुमार

लेखन डॉ धर्मेंद्र कुमार
किसानों की हितैषी भारतीय जनता पार्टी सरकार ने किसानों की धान की फसल कटने के बाद उसके सामने बड़ा संकट खड़ा कर डरा दिया कि किसान की पराली से प्रदूषण होता है l कुछ किसानों ने तुगलकी फरमान की परवाह नहीं की और पराली जला दी l उन पर मुकदमे हुए, कॉलर पकड़ कर जेल भेजा गया, जुर्माना अदा करना पड़ा, सरकार ने दूसरे किसानों को डरा दिया कि हमारी सरकार सेटेलाइट से निगरानी कर रही हैl बेचारा किसान धान कटाई के बाद रवि की फसल बुवाई के लिए परेशान हो गया उसने रो -धोकर पराली का इंतजाम किया l
वहीं सरकार के क्रय केंद्र के चक्कर काट -काट कर थककर किसान ने 1100-1200 रुपया प्रति कुंटल में धान मंडी में बेच दिया l 95 फ़ीसदी बिचौलिए धान क्रय केंद्र पर अपना खरीदा धान बेचने में सफल हुए l यह धान क्रय केंद्र पर न तौल कर मंडी में तुला और सीधा सरकारी गोदाम में पहुंचा l पल्लेदारों, किसानों से फर्जी तरीके से सिर्फ इंतखाब लेकर बिचौलियों ने उनके खाते में पैसा ट्रांसफर करा लिया जो बाद में बिचौलियों तथा क्रय केंद्र सचिवों ने बंदरबांट कर लिया, किंतु सरकार की सेटेलाइट व प्रशासन इस खुली डकैती को पकड़ने में असफल साबित हुई वहीं किसान की पराली को हव्वा बना दिया गया l
दूसरी ओर सरकार द्वारा लाइसेंस शुदा बारूदी कारोबार जिसमें उत्पादित पटाखे, सुतली बम, रॉकेट शरद पूर्णिमा से लेकर दीपावली दीपावली के भोर 2 दिन तक आतिश बाजो ने आधी -आधी रात तक पूरी जिम्मेदारी के साथ, बिना किसी दंड की परवाह किए निर्बाध रूप से चलाई l देश की कोई गली धर्म इससे अछूता नहीं था l आतिशबाजी भीड़ भरे बाजारों में , गलियों, सड़कों, सार्वजनिक स्थलों पर खूब बिक्री की गई शासन प्रशासन ने इसके लिए कोई अलग स्थान तक निर्धारित नहीं किया और उसे चलाने का समय भी निर्धारित नहीं किया l इससे यह साबित होता है कि सरकार ने बारूद बिक्री करने उसके फूकने में पूर्ण सहयोग किया वहीं सरकारी सेटेलाइट इसको भी पकड़ने में अक्षम साबित हुई l सरकारी सच्चाई यह भी है कि किसी भी राज्य की सरकार ने या प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह नहीं कहा कि आतिशबाजी से प्रदूषण होता है , या हुआ है इनके चलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए जबकि किसान की पराली से सभी केंद्र व राज्य की सरकारों का दम घुट रहा था l इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार आतिशबाजी तथा बड़े व्यापारियों के साथ है और किसानों के हितैषी बने रहने का ढोंग करती है l अंततः सरकारी सेटेलाइट भी किसानों की दुश्मन साबित हुई है l हमें नहीं चाहिए ऐसी सरकारी सेटेलाइट- जो हमारे किसान भाइयों तथा व्यापारियों के बीच में भेदभाव पैदा करती हो l