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मैं शान्ता नही हूँ(कहानी)

जया मोहन (प्रयागराज)

सुमन रसोई में सबके लिए नाश्ता बना रही थी तभी बिंदू की आवाज़ कानो में पड़ी मम्मी मम्मी जल्दी चलो रामायण आ रहा है।जाओ तुम लोग देखो मुझे काम करने दो। बिंदू लौट गई अरे बिंदू मम्मी नही आयी नही पापा पता नही क्यों वो रामायण देखने से कतराती है।वैसे तो पापा वो बहुत आस्तिक है खूब पूजा पाठ करती है पर रामायण की बात पर चुप लगा जाती है।वर्मा साहब ने कभी सुमन से इस बारे में पूछा नही पर समझ गए कुछ ऐसा है जो सुमन को चुभता है।रात जब बिंदू मम्मी के पास लेटी बोली।मम्मी सो गई क्या? नही।एक बात पूछूं।हाँ हाँ बोल। माँ आप रामायण क्यों नहीं देखती?क्यों उदास हो जाती है? कुछ नही ।तू सो जा।नही मम्मी मैं अब बच्ची नही जो तुम्हारा अव्यक्त दुख न महसूस कर सकूं।मैंने आज तक अपने नाना नानी को नही जाना।क्या मेरे ननिहाल में कोई नही था ? तू मुझे उस शहर गाँव का पता बता दे। मैं पताकरूगी।बात बदलते हुए सुमन ने कहा बिन्दू क्या रामायण में राम की बहन को भी दिखाया जाता है?क्या??? राम के कोई बहन भी थी।मुझे तो पता ही नही।मम्मी बताओ न ठुनकते हुए बिंदू बोली। हाँ बताती हूँ।राजा दशरथ व कौशल्या की पहली सन्तान बेटी थी। नाम था शान्ता।वह बड़ी योग्य,कुशल,पाक कला,युद्ध कला में निपुण थी पर थी तो बेटी ही उससे तो वंश बेल बढ़नी नही थी।एक बार अयोध्या में अकाल पड़ा।कहा गया ये शान्ता के कारण पड़ा है।मम्मी उसमें शान्ता क्या दोष था? राजा दशरथ ने उसे त्यागने का मन बना लिया था। उसी समय अंग देश के राजा रोम पद अपनी पत्नी वर्षिनी के साथ आए। वे निसंतान थे। राजा दशरथ ने उन्हें शान्ता दे दी।शान्ता बहुत रोई। रोमपद शान्ता के मौसा थे।वह उनके साथ अंग देश चली गयी। कौशल्या चाह 0कर भी बेटी को न रोक पायी इसी बात से वह नाराज व दुखी थी। मम्मी दशरथ ने तो उन्हें दुखी देख कर बेटी दी।दशरथ कौशिल्या से कहते पुरोहितों ने आकाल का कारण उसे बताया था इसलिए प्रजाहित में मैंने उसे भेज दिया फिर वो अपने मौसा मौसी के पास ही तो है।दशरथ को पुत्र की इक्छा थी।कौशल्या कहती वह गाय थी जिस जगह भेजा चली गयी पर उसकी दुखती आत्मा की हाय हमे कभी चैन नही देगी। मम्मी पर वह लोग उससे मिलने तो जाते होंगे। नहीं ना कभी गए ना उसे अयोध्या बुलाया। वह वहॉ अकेले में रोती तड़पती अपने माता पिता के पास जाना चाहती थी उनके दर्शन करना चाहती थी। अंग देश की राजकुमारी होने के बाद भी उसका मन अयोध्या के लिए रोता था।ये तो बहुत बुरा किया उसके साथ ।मम्मी उसे कभी अपने पास बुलाना चाहिए था कभी उसके पास जाना चाहिए था।क्यों चुप हो गयी मम्मी आगे बताओ न? सुमन का कण्ठ अवरुद्ध था।देख न लोग न सतयुग में पुत्री चाहते थे न कलयुग में।सतयुग में तो धर्म था पर वहाँ भी कन्या की कीमत नही।पत्नी तो चाहते पर पुत्री नही। शान्ता का कभी किसी ने नाम भी नही लिया मानो वो घोर अपराधिनी थी।सब भूल गये।कौशल्या माँ थी उसकी याद में रोती थी पर पारिवारिक बन्धन के कारण चुप थी दुखी थी।देख न तुलसीदास भी रामचरितमानस में उसका जिक्र नही किये कही सूर्यवंशियों पर इस कारण कलंक न लग जाये ।हाँ वाल्मीकि जी ने जरूर अपनी रामायण में शान्ता का वर्णन किया हैपर लोकप्रिय तो मानस है रामायण संस्कृत में है उसे पढ़ते बहुत कम है।शान्ता अकेले में रोती कहती प्रभु मेरा कसूर क्या है ? माता पिता को कभी अपनी बेटी की सुध न आयी।तुमने मुझे वंश बेल न बढ़ाने वाली कन्या क्यों बनाया? मम्मी तुम क्यों रो रही हो? बेटा सुन कर तुम्हे दुख नही हो रहा।बहुत हो रहा है मैं होती तो विद्रोह करती उन्हें श्राप दे देती।मैं तो भाग्यशाली हूँ जो मुझे बेहद प्यार करने वाले मम्मी पापा मिले।

I am not Shanta (story)
सुन आगे एक बार रोमपद शान्ता से वार्तालाप कर रहे थे।उसी समय एक दिन ब्राह्मण आया वह खेतो की जुताई के लिए मदद माँगने आया था।उसने कई बार अपनी बात कही पर बातों में मशगूल होने के कारण राजा सुन न सके।वह क्रोधित हो कर अंगदेश छोड़कर चला गया ।वह इंद्र का भक्त था।भक्त का अपमान देख इंद्र कुपित हुए ।उन्होंने वर्षा नही की फसलें सूखने लगी ।रोमपद घबराये इससे तो अकाल पड़ सकता है।वे श्रृंगी ऋषि के पास गये।उनसे उपाय पूछा।उन्होंने यज्ञ कराया।इंद्र देव प्रसन्न हुए।खूब बारिश हुई खेत खलिहान पानी से भर गये।राजा ने शान्ता का विवाह श्रृंगी ऋषि के साथ कर दिया। मम्मी ये श्रृंगी कैसा नाम है? मुझे उत्सुकता है इनके बारे में जानने की बताईये।सुनो ये ऋषि विभंडक व अप्सरा उर्वशी के पुत्र थे।जब ऋषि कठोर तप कर रहे थे सभी देवता भयभीत हो गए उन्होंने तप भंग करने के लिए उर्वशी को भेजा।विभंडक मोहित हो गए।उर्वशी से संसर्ग किया जिससे श्रृंगी हुए।इनके माथे पर सींग थी इसलिए शृंगी नाम था।मम्मी शान्ता ने ऐसे में इनसे विवाह कर लिया।बिंदू उससे पूछा किसने की वह क्या चाहती है?गाय समझ खूटे से बांध दिया। शान्ता ने इसे अपनी नियति मान स्वीकार कर लिया यही तो भारतीय नारी है जो चाहा अनचाहा वर के साथ पूर्ण निष्ठा से उसे देवता मान जीवन काट देती है।
राजा दशरथ पुत्र के लिए व्याकुल थे।किसी ने बताया श्रृंगी ऋषि के पास जाओ वो पुत्रयष्टि यज्ञ करा सकते है। राजा दशरथ नंगे पांव अपनी रानियों के साथ श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गए। वहाँ ऋषि से प्रार्थना कर पुत्रयष्टि यज्ञ के लिए कहने लगे। ऋषि ने स्वीकार कर लिया कहा मैं अपनी पत्नी के साथ यज्ञ कराने आपके यहाँ आऊंगा। दशरथ ने कहा कृपया आप अकेले ही आए पत्नी को साथ ना लाएं। मैं पत्नी के बिना कहीं नहीं जाता। राजा दशरथ सोच में पड़ गए कहीं फिर से अनिष्ट ना हो जाए। यज्ञ की लालसा में उन्होंने ऋषि की बात स्वीकार कर ली। श्रृंगी ऋषि अपनी पत्नी के साथ यज्ञ कराने पहुंचे तो आकाश से पुष्प वर्षा हुई। दिशाएं महक महक उठी । दशरथ ने प्रणाम करते हुए कहा देवी आप कौन हैं? आपके आगमन से बसंत रितु आ गई। ऋषि पत्नी ने कहा मैं आपकी पुत्री शांता हूँ। मम्मी तब तो दशरथ ने सबको बता दिया होगा। नहीं। क्यों? क्योंकि राजा दशरथ को डर था कि यदि इस बात का पता चल गया तो पुत्री छोड़ने के कारण समाज में उनकी निंदा होगी। क्या मम्मी सुमित्रा कैकेई को भी नही मालूम था?।हाँ दशरथ नेकौशल्या से कहा वह ऐसा कुछ भी ना करें जिससे समाज में उनकी निंदा हो कौशल्या का ह्रदय रो रहा था । अवसर देखकर वह शांता को महल के अंदर ले गई हृदय से लगाकर खूब रोई। जाते समय कौशल्या ने शांता की विदाई बेटी की तरह की खूब धन दौलत दी पर मौन होकर। शांता ने कहा माँ मुझे इस सामग्री की आवश्यकता नहीं है मुझे तो आपका पिताजी का प्यार चाहिए था जो मुझे नहीं मिला ।रात कौशल्या ने दशरथ से कहा कैसे पिता हैं आप? बेटी को देख कर भी आपका कलेजा नहीं फटा। हमें इसका दंड अवश्य भोगना पड़ेगा। सारा सुख होते हुए भी हमें आत्मिक शांति नहीं मिलेगी। यज्ञ से निकली खीर से दशरथ को तीनों रानियों से चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। जब शांता ने सुना बहुत खुश हुई पर वह अपनी खुशी यहाँ तक की अपने पति से भी न बांट पायी।क्या सोचेंगे मेरे पति की मेरे माता पिता ने मुझे त्याग दिया था?मेरे पिता का सम्मान नष्ट हो जाएगा।
तीज त्योहारों पर शान्ता भाइयों को याद करती।कल्पना में उनके चेहरे बनाती खुश होती।क्या मम्मी वह अपने भाईयों से कभी नही मिल पाई? नही।
राम वन जाते समय ऋषि के आश्रम में रुके।पर स्वाभिमानी शान्ता यह सोच कर नही मिली कि यदि भाइयों को पिता के वारे में पता चलेगा तो उनकी धारणा बदल सकती है।यदि उन्हें मेरे बारे में ज्ञात होता तो मुझे बुलाते।मैं स्वयं मिल कर पिता पुत्र के प्रेम कम नही करना चाहती।सच मम्मी बड़ी महान थी।इस मौन तापसी को लोग नही जानते।
मम्मी हमारे नाना नानी कहां है। दोनों के बीच एक मौन छा गया। मैं भी शान्ता हूँ । मेरे बाप ने बेटी जानकर मुझे माँ से छीन कर झाड़ियों में फेंक दिया था। जहाँ से दयालु विधवा स्त्री ने मुझे जीवनदान दिया। मेरे साथ माँ का झुमका आ गया था जिसे वह पहचानती थी ।उसने वह झुमका मेरी माँ को दिया।माँ ने रोते हुए उसे दूसरा झुमका देते हुए कहा आप मेरी एक विनती मान लो कभी किसी को मत बताना की मेरी बेटी ज़िन्दा है।नही तो उसे ये लोग मरवा देगे।वह दयालु महिला मुझे ले कर दूसरे शहर आ गईं। बहुत लाड़ प्यार से मुझे पाला ।अन्तिम समय आने पर मुझे मेरे माता पिता गाँव के बारे में बताया ।मैं स्वाभिमानी थी जानकर भी मैंने संपर्क नही किया मेरी पालनहार गो लोकवासी हुई। मैं एक स्कूल में पढ़ाती थी ।एक बार मैं बाजार गयी वहाँ एक मोटरसाइकिल से टकरा कर बेहोश हो गयी।होश आने पर देखा कि एक युवक मेरी सेवा कर रहा है।ठीक होने पर भी हमारा मिलना होता रहा। एक दिन मैंने कहा कि हमे विवाह कर लेना चाहिए लोग ऐसे मिलने पर जाने क्या सोचेंगे? इन्होंने कहा मैं चाहता हूँ सच सुन कर उत्तर देना ।तुम्हारी हाँ य न मुझे स्वीकार है।विवाह न हुआ तो हम अच्छे दोस्त रहेंगे।सुमन एक दुर्घटना मेरी कोई नस कट गई है जिससे में आजीवन पिता नही बन पाऊँगा।मैं इसे छुपा कर नये जींवन की झूठ की नींव नहीं रख सकता।मुझे उनकी साफगोई भा गयी।मैंने कहा बच्चे का क्या हम गोद ले लेगें? हमारा विवाह हो गया।एक बार हम उसी गाँव मे पापा के साथ गए।वहाँ मेरा घर ही सबसे सम्मानित व अच्छा था।वो इन्हें आमंत्रित करने आये। कहने लगे सर मेमसाहब को भी साथ लाइएगा।मेरा मन नही था पर ये कहने लगे चलो बड़े पुराने रईस है काफी मान दान है।बड़े आज्ञाकारी बेटे है इनके चलो न बिन्दू स्त्री के ह्रदय में मायका का स्थान अमिट होता है।मैं भी लोभ संवरण न कर सकी।एक बार तो देहरी आँगन जननी जनक के दर्शन कर आऊ। घर पहुंचते ही पता नहीं क्यों एक अजीब सा सुखद एहसास होने लगा?समझ नहीं पा रही थी शांता तो बड़े में गई मैं तो जन्मते ही हट गई फिर यह मोह
कैसा? शायद ममता का आंचल खींच रहा था।ये ठाकुर साहब हैं मैंने पैर छुए उन्होंने खुश होकर कहा सदा खुश रहो बेटी पूर्णिमा जी के पास गई तो शायद अनकहे ही उन्होंने अपनी पुत्री को पहचान लिया सीने से चिपका लिया। मैं भी ऐसी तृप्त हो रही थी मानो मरुस्थल में सुखद वर्षा हो रही हो । हां हो रही थी पानी की नहीं आंसू की। माँ फिर कहो बेटी बार-बार मुझे माँ कह कर पुकारो मेरे दर्द भरे दिल में तुम्हारी शब्द शीतलता पहुंचा रहे हैं। हम दोनों ने खूब बात की। तभी उनकी निगाह मेरे कान पर गई वह अपना झुमका पहचान गई। मेरी सुधा शायद यह नाम माँ ने मेरा सोच रखा था । क्या तुम सोनारीन की बेटी हो ? हाँ मैं उनकी नहीं आप की कोख जाई हूँ ।वह मेरी यशोदा माँ थी ।आप मेरी मां हो सुन कर माँ व्यथित हो उठी।उन्होंने बैठक से ठाकुर साहब को बुला कर बताया।पिता ने सीने से चिपका लिया।हमे माफ कर दे बेटी हम तेरे व तेरी माँ के गुनाहगार है।तेरी माँ कभी न एक रात चैन से सोई तेरी याद में।अगर हम अब तुझे स्वीकारेंगे तो लोग मुझे धिक्कारेगे।आप चिंता न करे मैं किसी से कुछ न बताऊँगी न कभी यहाँ आऊँगी।
चलते समय ढेरो उपहारों से मेरी विदाई हुई। अनजाने में भाई भाभी का प्रेम मिला।दुबारा में नही गयी।मैं उदास रहती थी इन्होंने सोचा शायद बच्चे की कमी खल रही है। हम अनाथालय गएI am not Shanta (story)

मेरे मन में था बेटी लूगी पर पता नही ये क्या चाहे?वहाँ पहुँच कर इन्होंने कहा सुमन मुझे तो बेटी चाहिए पर जो तुम चाहो।आपने मेरे मन की बात कही और तुम आगयी खुशियॉ ले कर हमारे जीवन मे।सो गई क्या बिन्दू? नही मम्मीमैं सोच रही हूँ ।क्या ?सुमन का दिल धड़क उठा कही गोद लेने की बात बता कर मैंने गलत तो नही किया।इसके कोमल मन को ठेस लगी हो।कहां खो गयी मम्मी।सुमन की तंद्रा टूटी।बिंदू गले लग कर बोली मम्मी मैं भाग्यशाली हूँ।मै शान्ता नही हूँ।मै तो माँ बाप न होने के कारण अनाथालय में थी । मुझे तो इतने प्यारे आप और पापा मिले।आप लोग पूजने योग्य है।जिन्हें बेटा बेटी समान है।

अब समझ आया कि बहन होते हुए भी रामचंद्र जी की कलाई राखी बिन सूनी क्यों थी?थैंक्यू मम्मी।वह मुझसे लिपट कर सो गई थी।बात करते करते भोर हो गयी थी।मैंने प्यार से उसके माथे को चूमा मेरी परी।चादर ओढ़ा कर मैं उठ गई दैनिक काम निबटाने को।

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