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Bihar news पुलिस जोन हटाने के पीछे मजबूरी या आमजनों को न्याय से वंचित करने की सरकार की मंशा

संवाददाता मोहन सिंह बेतिया
बिहार राज्य में पुलिस मुख्यालय और जिला पुलिस के बीच की दो कड़ी होती थी जोन व रेंज। उन कड़ियों के अंतर्गत जोन में पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) व रेंज में पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) होते थे। या यूं कहें तो जिला पुलिस के ऊपर निगरानी व समीक्षा के लिए पुलिस मुख्यालय के अलावे दो अतिरिक्त पद होती थी जिससे समय समय पर अपराध से लेकर पुलिस की गतिविधियों पर नजर बनी रहती थी। साथ ही साथ जब आम जनता थानों से अन्याय का शिकार होती थी तो सर्वप्रथम पुलिस अधीक्षक के पास अपनी फरियाद लेकर पहुंचती थी वहां यदि संतोषजनक न्याय नहीं मिलता तो पुलिस उप महानिरीक्षक के पास पहुंचती थी यदि यहां भी मायूसी हांथ लगती थी तो पूर्ण विश्वास के साथ पुलिस महानिरीक्षक के पास पहुंचती थी जहां अधिकतर मामलों में न्याय मिल ही जाता था । शायद ही कोई मामला होता था जो अपर पुलिस महानिदेशक व पुलिस महानिदेशक तक पहुंच पाता था। परन्तु लगभग ढाई वर्ष पूर्व बिहार के मुखिया नीतीश कुमार के द्वारा अपराध, विधि-व्यवस्था की समीक्षा की गई तो यह निर्देश दिया गया कि पुलिस मुख्यालय व पुलिस अधीक्षक के बीच की इन दो कड़ियों जोन व रेंज में से एक को समाप्त करने पर मुख्यालय अपनी प्रतिवेदन दें। वहीं उनके निर्देश के पश्चात मुख्यालय ने अपने प्रतिवेदन में जोन को समाप्त करने का प्रस्ताव भी दे दिया। प्रस्ताव के तहत पुलिस मुख्यालय व सरकार का यह मानना था कि जोन व रेंज के दोनों पदों के आईपीएस अधिकारियों की एक प्रकार की ही जिम्मेदारी होती है जिसे एक पद के द्वारा भी किया जा सकता है। और अंततः चार जोनों पटना, भागलपुर, कोसी(दरभंगा), तिरहुत (मुजफ्फरपुर) को समाप्त किया गया और पूर्व के 11 रेंज से 12 रेंज करते हुए एक बहुत बड़ी बदलाव बिहार सरकार के द्वारा कर दिया गया। जिन 12 रेंजों को बनाया गया उनमें 5 रेंज में पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) स्तर के अधिकारी को कमान सौंपी गई और शेष 7 रेंज में पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) स्तर के अधिकारी ही अब सारे कार्यों को देखेंगे। जिन 5 रेंज में आईजी स्तर के अधिकारियों को जिम्मा दिया गया वो राजधानी पटना, भागलपुर, गया, मुजफ्फरपुर व पूर्णिया हैं।

जिला पुलिस के काम की समीक्षा, अपराध नियंत्रण, विधि-व्यवस्था बनाए रखने की कार्यवाही एवं जोन व रेंज स्तर से सिपाही से लेकर पुलिस निरीक्षक तक की स्थानांतरण की समीक्षा व निगरानी जोन में बैठे आईजी व रेंज में बैठे डीआईजी के द्वारा की जाती थी। ऐसे में बीच की दो कड़ी होने से किसी एक कड़ी से चूक हो भी जाती तो दूसरी कड़ी से उस चूक को दूर किया जाता रहा है। परन्तु वर्तमान व्यवस्था में जोन खत्म होने से जनता में निराशा है क्योंकि रेंज में पदस्थापित अधिकारियों से न्याय तो मिलना अब दूर प्रतीत हो रहा है। वहीं रेंज के अंतर्गत पुलिस अधिकारियों में भी इन दो कड़ियों का भय खत्म है और इस कारण भयानक रूप से अनुशासनहीनता व भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ता जा रहा है। समीक्षा व कार्यवाही सिर्फ रेंज तक सिमटने के कारण पुलिस की कार्यवाही निरंकुश व मनमौजी हो चली है। ऐसी स्थिति में अब न्याय की आस करना तो अब बीरबल की खीचड़ी को चरितार्थ करता नजर आ रहा है वहीं सूत्रानुसार पुलिस के प्रशिक्षण से लेकर पदस्थापना में घोर अनियमितता देखने को मिल रहा है। सिपाही से लेकर अवर निरीक्षक तक एक ही जिले में दशकों से बने रह रहें हैं और रेंज की स्थानांतरण को कौन कहे मुख्यालय तक के निर्देशों व आदेशों की धज्जियाँ सिर्फ एक कड़ी के समाप्त हो जाने से खत्म हो चुकी है। सुत्रों की मानें तो अब पुलिस की कार्यवाही अपराध व अपराधी से इतर भ्रष्टाचार में ज्यादा देखने को मिल रही है जो समाज के लिए एक नासूर बनता जा रहा है तथा आने वाले दिनों में और भी भयावह परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

Bihar news पुलिस जोन हटाने के पीछे मजबूरी या आमजनों को न्याय से वंचित करने की सरकार की मंशा

ऐसे में बिहार सरकार व पुलिस मुख्यालय को अपने निर्णय पर एक बार फिर से समीक्षा करने की नितांत आवश्यकता है ताकि पुलिसिया कार्रवाई पर अंकुश लग सके और आम जनता को ससमय न्याय मिल सके। यदि समय रहते विभागीय शीर्ष अधिकारियों और सरकार द्वारा पूर्व के लिए निर्णय पर पुनर्विचार करते हुए ज़ोन को बहाल नहीं किया गया तो सुशासन बाबू के नलजल और शराब बंदी कानून की तरह यह भी ढाक के तीन पात ही साबित होगा।

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जनवाद टाइम्स