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क्या आप भक्त या अंधभक्त तो नहीं?

क्या आप भक्त या अंधभक्त तो नहीं?

रजनीश शुक्ल

आज समाज एक विचित्र माहौल में घुटन महसूस कर रहा है। यहां आज हर इंसान या तो भक्त के तमगे से नवाजा जाता है या फिर अंधभक्त के।

रास्ते में, गलियों में, बाज़ार में, चौराहे पर या फिर पड़ोस में ही अब अपने निजी विचार रखने में भी डर लगता है। यदि आप अपने क्षेत्र, प्रांत या देश की शान में कुछ अच्छा बोल गए तो आप को भक्त या अंधभक्त समझा जाएगा भले ही आप पॉलिटिकल एंगल को स्पर्श किए बिना ही क्यों ना बोल रहे हों।

दूसरी तरफ यदि आप खिलाफ बोल रहे हैं तो अन्य पार्टी के समर्थक आप को भक्त, अंधभक्त, पप्पू, फलाना, ढिमका बुला कर खिल्ली उड़ाएंगे।

 

ना जाने ये कौन सा चस्मा लगा लिया है देश ने, हाल में की, उन्हें ये दो शब्द के अलावा कुछ दिखता ही नहीं – भक्त या अंधभक्त।

मगर किसी के बारे में बिना जाने समझे भी लोग उन्हें इन नामों से आज बुला रहें हैं। आपने विचार रखा और बस, फिर उसको किसी एक नाम की उपाधी मिल जाएगी। देखना है तो सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, ट्विटर वगैरा पर ही देख लीजिए। ऐसे लाखों उदाहरण मिल जाएंगे।

मगर आंखों पर पट्टी बांध कर चलना अच्छी बात नहीं। धृतराष्ट्र न बनो, गिर जाओगे। मैं मानता हूं की कुछ व्यक्ति हैं जो निजी स्वार्थ के हेतु ऐसा करते हैं। पर सिर्फ कुछ बुरे लोगों के वजह से सब बुरा बन जाए, ये कहां तक जायज है। आप ही बताइए?

 

कुछ बुराइयां है हर जगह। तो उसी को पकड़ कर घिसते रहें या फिर उससे आगे निकले और एक नई दिशा में कदम बढ़ाए। लोगों को भी बोलने दें, उनकी भी सुने और फिर जो सही है वो चुने और करें।

मैं बस ये जानता हूं कि एक सिक्के के २ पहलू हमेशा होते हैं। हम बस उस पर ज्यादा फोकस करते हैं जो नेगेटिव है। अगर पॉजिटिव साइड पर अपना फोकस बढ़ा देंगे, तो कतरा कतरा ही सही, पर बुराई दम तोड़ती दिखेगी। और समाज में फैलती इस बुराई का अंत अनिवार्य है। एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए।

अगर समाज में भक्षक है तो रक्षक भी है। और आप को रक्षक बनना है।

विचार रखने कि स्वतंत्रता सब को मिलनी चाहिए। फिर वो किसी भी विषय के पक्ष में हो या विपक्ष में। आप अगर हर किसी को बिना सोचे विचारे भक्त या अंधभक्त बुलाने लगेंगे तो आम जनता अपने विचार रखना बंद कर देगी। इस भय से की कहीं उन्हें भक्त या अंधभक्त तो नहीं कह दिया जाएगा। और समाज में विचारों का आकाल पड़ जाएगा। इन्सान समाज हित, प्रांत हित, देश हित भुला कर फिर वही बोलेगा जो बाकी सुनना चाहते हैं।

ये रोग है। जिसका इलाज जल्द से जल्द करना होगा। ताकि लोग फिर से बोल सकें, विचारों का आदन प्रदान कर सकें और देश हित में सही निर्णय लिए जा सकें। जो कि सब के हित में हो।

कलम रखने से पहले हाथ जोड़ कर विनम्र निवेदन करूंगा कि इन सब्दों का प्रयोग बंद किया जाए। धन्यवाद।

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जनवाद टाइम्स