तीर ए नज़रदेशपर्यटनसम्पादकीय

देश के विभिन्न हिस्सों में मजदूर श्रमिकों कों का पैदल ही अपने गांव को पलायन

सुनील पांडे  : वरिष्ठ पत्रकार

 

भारत के विभिन्न हिस्सों में मजदूर श्रमिकों को का पैदल ही अपने घर को रुख करना मानवता को शर्मंसार करता है। ऐसे लोग जिनके पास न रहने को घर है ,न खाने को रोटी है और ना ही कोई स्थाई रोजगार है । संकट की इस घडी़ में इन दैनिक वेतन

भोगी श्रमिकों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। परदेश में ना इनके पास कोई स्थाई पहचान पत्र है और न ही ऐसा कोई कागजात है जिससे सरकारी मदद इन तक पहुंच सके। अपने घर को पैदल जाने वाले लोगों में लगभग सभी उम्र के लोग शामिल हैं। विदेशी लोगों

को जो भारत में विभिन्न हिस्सों में फंसे हुए हैं वहां की सरकार के अनुरोध पर भारत सरकार उनको उनके देश के दूतावास में परिवहन व्यवस्था उपलब्ध कराकर पहुंचा रही है ,लेकिन भारतीय श्रमिक एवं दिहाडी़ मजदूर को इन सुविधा से लगभग वंचित रखा गया है। यह बात सोचने को मजबूर कर रही है। इसी

बीच कुछ प्रदेशों की सरकारें इन मजदूरों को इनके घर पहुंचाने की व्यवस्था भी कर रही हैं उनका काम काबिले तारीफ है। अपनी जान को जोखिम में डालकर इन श्रमिक मजदूरों का लगभग 200 से 300 किलोमीटर भूख प्यास को सहते हुए अपने घर को जाना तो अखरता ही है। यदि संकट की इस घड़ी में सरकार या प्रशासन इनकी मदद नहीं करेगा तो कौन करेगा ।प्रिंट मीडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के हवाले से मिली खबरों के अनुसार इनके साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है?शायद इसलिए कि यह भारत देश के निम्न तबके के गरीब नागरिक हैं, जिनकी जान माल की सुरक्षा का दायित्व सरकार का नहीं बनता ?हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है ,लेकिन लोकतंत्र में गरीब मजदूरों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार अथवा अन्याय क्यों हो रहा है ,इसलिए कि ये गरीब मजदूर हैं इनका काम केवल 5 साल बाद चुनाव के समय वोट डालना है। देश की अर्थव्यवस्था में इनका योगदान केवल इतना ही है की ये जीतोड़ मेहनत करते हैं और इन्हें मजदूरी के रूप में बस इतना ही मिलता है कि किसी तरह इनका व इनके परिवार का गुजर बसर हो सके। ये देश की तीसरी श्रेणी के लोग हैं जिनकी आवाज लोकतंत्र के इस मंदिर में कोई सुनने वाला नहीं है ,क्या सरकार को इनके जीवन के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं बनानी चाहिए? जिससे इस संकट एवं महामारी के समय इनको भी संक्रमण से बचाया जा सके और इनके स्वास्थ्य का भी ख्याल किया जा सके । यदि ये लोग पैदल चलते चलते मार्ग में कहीं से संक्रमित हो गए तो यह जहां जाएंगे वहां पर भी संक्रमण फैलने का खतरा बना रहेगा ।केन्द्र सरकार की 21 दिनों की लाकडाउन की स्कीम काबिले तारीफ है ,लेकिन इन मजबूर लोगों को इनके घर पर पहुंचाना भी केन्द्र एवं राज्य सरकारों का दायित्व तो बनता ही है। लाकडाउन एवं सोशल डिस्टेंस के नाम पर इनको इनकी हालत पर छोड़ देना क्या उचित होगा। आज हमारे देश में कोरोना महामारी से संक्रमण का जो नवीनतम आंकड़ा है उसमें संक्रमित लोगों की संख्या लगभग 775 तक पहुंच गई है ,जिनमें 73 लोगों को संक्रमण से ठीक भी किया जा चुका है और साथ ही 683 अभी भी संक्रमित हैं। अतः 19 लोगों की अबतक इस संक्रमण से जान भी जा चुकी है ।जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है यहां पर प्राप्त नवीनतम सरकारी आंकड़ों के अनुसार 45 संक्रमित हैं एवं 11 लोगों को संक्रमण से ठीक भी किया जा चुका है साथ ही 34 लोग अभी भी संक्रमित हैं। यह उत्तर प्रदेश सरकार एवं हम लोगों को लिए संतोषजनक स्थिति है कि अभी तक यूपी में एक भी व्यक्ति की कोरोना संक्रमण से मौत नहीं हुई है।

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