सुनील पांडे : संपादकीय लेखन
____________________
10 जनपद की सबसे करीबी मित्र कांग्रेस के चर्चित युवा नेता ज्योतिराज सिंधिया का कांग्रेस छोड़कर जाना कई अनुत्तरित प्रश्नों के बारे में हमें सोचने को मजबूर करता है ।इन्ही प्रश्नों में एक प्रश्न है मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत तक पहुंचाने में श्री सिंधिया के योगदान जिसे नकारा नहीं जा सकता । मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्यप्रदेश में वह करिश्मा कर दिखाया जिसकी बहुत ही कम लोगों को उम्मीद थी । मध्य प्रदेश में भाजपा के शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बनी सरकार को सत्ता में दोबारा वापसी से रोकना एक टेढ़ी खीर से कम नहीं था । अपने युवा सोच एवं कुशल नेतृत्व के बल पर मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में कांग्रेस के लिए 114 सीट हासिल करना सामान्य बात नहीं थी । मध्य प्रदेश कांग्रेस अपने युवा नेता श्री सिंधिया को मुख्यमंत्री रूप में देखना चाहती थी ,लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने कमलनाथ को मंत्री पद सौंप दिया। वहीं से मध्य प्रदेश कांग्रेस .के अंदर असंतुष्टता के बीज बो दिए गए थे । कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद शनैः शनैः श्री सिंधिया को किनारा करने की राजनीति शुरू हो गई। श्री सिंधिया ने कई बार अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी के शीर्ष नेतृत्व दस जनपथ पर इसका जिक्र भी किया लेकिन कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया। इतना ही नहीं समय-समय पर मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा सिंधिया को को अपमानित किया जाता रहा । श्री सिंधिया एक मंझे राजनेता की भांतिअपने ऊपर लगाए गए आरोपों पर चुप्पी साधे रखी । श्री सिंधिया के समर्थक विधायक बार-बार उन्हें बोलने के लिए कहते रहे लेकिन फिर भी वह चुप रहे। यदि 5 वर्ष तक मध्य प्रदेश कांग्रेस मैं श्री सिंधिया बने रहते तो जब अगला विधानसभा चुनाव होता यदि उसमें कांग्रेस की हार होती तो उसका सारा ठीकरा श्री सिंधिया पर फोड़ा जाता कमलनाथ सत्ता की मलाई चट करने के बाद भी बाल बाल बच जाते। ज्योतिरादित्य का कांग्रेस पार्टी छोड़ना एवं 22 विधायकों का त्यागपत्र देना अचानक एक दिन की बात नहीं हो सकती । इसके लिए समय एवं परिस्थिति ने एक पृष्ठभूमि तैयार की इस बात को भावावेश में नकारा नहीं जा सकता । यदि समय रहते कांग्रेसका शीर्ष नेतृत्व नहीं चेता तो कांग्रेस के कई बड़े नेता उसी राह पर जा सकते हैं जिस पर ज्योतिराज सिंधिया चल पड़े हैं।