भारत में आत्महत्या एक बड़ी समस्या : देश काल और परिवेश
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संपादकीय : लालचंद ब्यूरो चीफ अंबेडकर नगर जनवाद टाइम्स
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: वैसे सामान्य रूप से देखा जाए तो आत्महत्या कानूनी दृष्टिकोण से अपराध है। लेकिन यदि हम सामाजिक ताने-बाने के पहलू पर नजर डालें तो पाते हैं कि आत्महत्या आदमी दो कारणों से करता है। एक कारण यह है कि इंसान आवेश में आकर आत्महत्या जैसे आपराधिक कृत्य को अंजाम दे देता दूसरे पहलू पर हम नजर डालें तो पाते हैं कि आत्महत्या इंसान तभी करता है यज्ञ वह सामाजिक और आर्थिक तरीके से टूट जाता है और वह अपने आप को समाज में शून्य पाता है । कोई युवा जो पढ़ा लिखा है और वह समाज में अपना एक स्थान प्राप्त करना चाहता है , लेकिन किसी कारणवश वह अपने आप को वर्तमान सामाजिक परिवेश में ढाल नहीं पाता है तो ऐसा कदम आत्महत्या की ओर अग्रसर होने के लिए विवश हो जाता अर्थात जब किसी व्यक्ति को जिसके लिए वह योग्य है ढेर सारे प्रयास करने के बाद अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता है अर्थात उसे जो मिलना चाहिए वह नहीं मिलता है तो , अपराध का अपराधिक रास्ता बनाता है जो कि सामाजिक और कानून में दोनों दृष्टिकोण से गलत है। प्रख्यात ट्रांसलेशन समाजशास्त्री इमाइल दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित पुस्तक Le suicide (The suicide) सन् 1897 में प्रकाशित हुई ।जिसमें आत्महत्या के सिद्धांत के बारे में उल्लेख है। दुर्खीम के अनुसार, ‘‘आत्महत्या का सामाजिक पर्यावरण की विभिन्न दषाओं के बीच का सम्बन्ध उतना ही अधिक प्रत्यक्ष और स्पष्ट होता है जितना कि जैविकीय और भौतिक दषाएं आत्महत्या के साथ एक अनिश्चित और अस्पष्ट सम्बन्ध को स्पष्ट करती है।’’
हम आत्महत्या भारत में एक सामान्य घटना हो गई है। सुबह उठने पर समाचार पत्रों आत्महत्या जैसी घटनाओं को प्रमुखता से देखा जा सकता है। भारत में आत्महत्या समाज में जिम्मेदार और पढ़े लिखे वर्गों में ज्यादा देखी जा सकती है। फिल्म स्टार राजनेता प्रशासनिक अधिकारी जैसे पढ़े लिखे और आर्थिक रूप से मजबूत व्यक्त भी आत्महत्या जैसे कृत्य को अंजाम दे देता है। जबकि वह आर्थिक रूप से मजबूत होता है लेकिन कारण कुछ और होता है। समाज में मध्यम पर परिवार के लिए सामाजिक हार्दिक और मुख्य रूप से पारिवारिक परिवेश आत्महत्या के लिए मजबूर करता है। भारत में रोजगार की समस्या आत्महत्या का एक प्रमुख कारण है। इसी कड़ी में भटहट गोरखपुर में एक घटना सामने आई — मां-बाप का इकलौता बेटा घर में विवाद करके शनिवार की देर शाम छत के कुंडी से गले में गमछा बांधकर आत्महत्या कर लिया । मिली जानकारी के अनुसार
गुलरिहां थाना क्षेत्र के चक्खान मोहम्मद गांव निवासी राकेश सिंह (35) पुत्र ओमप्रकाश सिंह के सिंह के दो बच्चे श्रेया नाम की एक लड़की उम्र 10 वर्ष तथा गोलू नाम का एक लड़का उम्र 7 साल है । मृतक राकेश सिंह भटहट ब्लाक के गांव चक्खान मोहम्मद में रोजगार सेवक के पद पर कार्यरत थे । रोजगार सेवक संघ के जिला अध्यक्ष भी थे । अपने मां-बाप के इकलौते पुत्र थे । उनका निजी मकान गुलरिहां थाना क्षेत्र के चारगावा में भी था । अपने पूरे परिवार के साथ चारगावां मे ही रहते थे । शनिवार की देर शाम तकरीबन 7 बजे घर में विवाद करने के बाद कमरे के अंदर सिटकिनी बंद करके छत के कुण्डी से गमछा बांधकर लटक गए । मेडिकल कालेज इलाज के दौरान करीब 8 बजे रात को उनकी मौत हो गयी । मृतक की पत्नी सिंधू देवी के अनुसार पिछले एक वर्ष से अधिक समय से मानदेय नही मिल रहा था। परिवार में दो बच्चों की पढ़ाई लिखाई व घर का खर्च चलाने को लेकर परिवार में आए दिन विवाद हो रहा था । मृतक की मां विद्यामती आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं। अंतर्कलह से परेशान होकर मृतक चरगावां में स्थित आवास पर फांसी लगा लिया। आवेश में आकर इंसान जब अपने आप को अपने आसपास की परिस्थितियों से अलग पानी लगता है तो वह आत्महत्या की ओर आगे बढ़ने लगता। कानूनी और सामाजिक दोनों दृष्टिकोण से आत्महत्या पूर्णता गलत है। मानव जीवन संघर्ष है, और इंसान को हर परिस्थितियों से संघर्ष करने के लिए तत्पर रहना चाहिए क्योंकि आत्महत्या करने के बाद व्यक्ति सामाजिक ताने-बाने से मुक्त हो जाता है लेकिन उसके इस कृत से परिवार को सामाजिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है , वह आत्महत्या करने से पहले नहीं सोचता। समाज में इंसान के आत्महत्या करने से उसकी समस्याओं का अंत नहीं होता बल्कि समस्याएं और बढ़ जाती हैं। आत्महत्या करने के बाद पूरे परिवार को कानूनी दांवपेच से गुजरना पड़ता है। कभी-कभी समाज में देखने को मिलता है की बूढ़े मां बाप की इकलौती संतान ने आवेश में आकर पारिवारिक कलह के कारण आत्महत्या कर ली और पूरे परिवार को आजीवन सामाजिक झंझावात का सामना करना पड़ता है । मां बाप के बुढ़ापे सहारा टूट जाता है और उन्हें तनु के साथ साथ आजीवन आर्थिक तंगी हो से जूझना पड़ता है। जिस उम्र में इंसान को आराम की जरूरत होते हैं उस उम्र में पेट की आग को बुझाने के लिए मजदूरी करना पड़ता। शायद यह उसका अपना परिवार आत्महत्या जैसे कृत्य को अंजाम नहीं देता तो ऐसा कार्य बूढ़े मां बाप को नहीं करना पड़ता। आत्महत्या करने के बाद छोटे बच्चों और विशेषकर पत्नी को समाज में एक ऐसे परिवेश से गुजरना पड़ता है, जिसकी कल्पना करना कठिन है। आए दिन ताने सहना पड़ता है। कभी-कभी देखने तो देखने को यह मिलता है कि जिस उम्र में बच्चों को कलम पकड़ना चाहिए उस उम्र में बाप के इस कुकृत्य से बच्चों को झाड़ू और पोछा पकड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है। पत्नी को अपने सारी सामाजिक हदों को पार कर बड़े घरों में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता। समाज में बहुत सी ऐसी स्त्रियां जिन्होंने मनोबल के साथ अपने सामाजिक परिस्थितियों का सामना करते हुए समाज में मिसाल कायम किया है। मेरा मानना है कि परिस्थिति जैसी भी हो इंसान को जीवन में संघर्ष करना चाहिए और आत्महत्या जैसे सामाजिक और कानूनी रूप से गलत रास्ते को नहीं सुनना चाहिए, क्योंकि आत्महत्या एक सामाजिक बुराई है जो अन्य सामाजिक बुराइयों को जन्म देती है।