कहानी : दो रोटी
दो रोटी (कहानी : ) सुनील पांडे की कलम से
जिंदगी की आपाधापी में एक मध्यम वर्ग का नौजवान जो यूपी के सुल्तानपुर जनपद से बिलॉन्ग करता है। रोजी-रोटी के जुगाड़ में यूपी से नोएडा आता है ,जहां एक फैक्ट्री में काम करने लगता है। पैसा कमाने की लत कहें या जरूरत जो भी हो वह दो शिफ्ट में 10 -10 घंटे जी तोड़ मेहनत करता है ,जिससे अधिक से अधिक पैसा आ सके। इसी बीच
उस लड़के की शादी हो जाती है।अब मां-बाप ,भाई के साथ -साथ पत्नी की भी जिम्मेदारी भी उसके कन्धे परआ जाती है ।शादी के बाद जल्दी-जल्दी दो बच्चे भी हो जाते हैं। तभी घर में मां-बाप कहते हैं अपनी बीवी बच्चों की जिम्मेदारी अब तुम संभालो। रोजी-रोटी के जुगाड़ में वो अपने बीवी बच्चों को लेकर नोएडा चला आता है और एक किराए का घर लेता है। अपना एक छोटा सा आशियाना बनाए रखने का सपना लिए दिन-रात अब पहले से ज्यादा जीतोड़ मेहनत करता है। अचानक कुछ बरसों बाद मेहनत रंग लाती है और नोएडा में एक छोटा सा आशियाना बनाता है जिसे आम बोलचाल की भाषा में हम घर कहते हैं ,और कुछ सालों बाद अपनी मेहनत और ईमानदारी से अपने कंपनी के अधिकारियों को प्रभावित कर ऊंची तनख्वाह पाने लगता है। एक दूसरी छोटी जमीन खरीद कर दूसरा घर बनाता है जिसकी छत अभी नहीं हो पाती, फिर जी जान से उस घर की छत डालने के जुगाड़ में लग जाता है। तभी यूपी के इस नौजवान की कहानी में एक ट्विस्ट आता है, कंपनी में काम करते समय अचानक एक दिन उसे करंट लग जाता है और उसके जीवन लीला समाप्त हो जाती है ।घर वालों को इस दुखद घटना की जानकारी होती है तो उनके सीने पर दुखों का पहाड़ टूट जाता है । घर वाले आननफानन में नोएडा भागते हैं। जब घर वालों के साथ उसका पिता नोएडा पहुंचता है और अपने बेटे की पैंट की जेब हाथ डालता है तो बेटे की जेब में उसे दो सूखी रोटी
पॉलिथीन में लपेटे हुए मिलती है ,जो शायद ड्यूटी खत्म होने के बाद खाने के लिए रखा रहा हो ।ये दो रोटी ही उसके जिंदगी के संघर्षों की कहानी बयां करती है। उसने जिंदगी में कितने संघर्ष सहे होंगे और अंत में संघर्ष करते करते इस दुनिया को अलविदा कह दिया । उसके पीछे उसके मां-बाप ,बीवी- बच्चे और एक भाई जिनका अब कोई सहारा नहीं है ,अब
बेसहारा हो गए हैं। दुःख की इस घड़ी में उनकी मदद कौन करेगा ? सिस्टम, सरकार, समाज के ठेकेदार या फैक्ट्री के मालिकान, यह प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है। यह कहानी नहीं सत्यकथा है नाम जाना चाहेंगे आप उस शख्स का जो इस कहानी का इकलौता पात्र है। चलो बता देते हैं सुल्तानपुर का गुड्डू जो अब इस दुनिया में नहीं है । गुड्डू जैसे जाने कितने शख्स ऐसे होंगे जो अपना आशियाना बनाने और अपने परिवार को पालने के लिए अपनी जान की बाजी लगा देते हैं। इन लोगों के बारे में ना कोई कहने वाला है ना सुनने वाला। आपको यह कहानी कैसी लगी मैं यह नहीं जाना चाहता ,मैं इस कहानी के पात्र गुड्डू जैसे तमाम लोगों की समस्याओं का हल चाहता हूँ ।
संपर्क सूत्र – 8957795321 प्रयागराज ,उत्तर प्रदेश