मध्य प्रदेश में सियासी राजनीतिक घमासान अपने चरम पर
संपादकीय लेखन : सुनील पांडे वरिष्ठ पत्रकार :
मध्य प्रदेश में सियासी संकट मध्यप्रदेश राज्य में होली के दिन रंग में भंग डालते हुए कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया। उसी दिन से कयास लगाए जा रहे थे बहुत जल्द कमलनाथ की सरकार अल्पमत में आ जाएगी। जैसा अंदेशा था, लगभग वैसा ही हो रहा है । बहुमत का गणित तो यही संकेत दे रहा है। कमलनाथ ने चुनावी दांवपेच को अपनाते हुए बजट सत्र के प्रथम दिन 16 मार्च को फ्लोर टेस्ट से बचने के लिए राज्यपाल के अभिभाषण के बाद करोना वायरस की आड़ में सदन की बैठक 26 मार्च तक स्थगित कर दिया। जबकी मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्री लालजी टंडन ने अभिभाषण प्रस्ताव के बाद फ्लोर टेस्ट कराने का कमलनाथ सरकार को निर्देश दिया था। लेकिन राज्यपाल के आदेश की अवमानना करते हुए सरकार द्वारा इससे बचने का प्रयास किया गया । वहीं राज्यपाल ने मुख्यमंत्री
कमलनाथ के निर्णय पर नाराजगी जाहिर करते हुए 16 मार्च को तीसरा पत्र लिखा तथा चेतावनी देते हुए कहा कि 17 मार्च को यानी आज विधानसभा में फ्लोर टेस्ट कराकर बहुमत सिद्ध करे नहीं तो यह मान लिया जाएगा कि मध्यप्रदेश विधानसभा में सरकार को बहुमत प्राप्त नहीं है। 16 मार्च को भाजपा 106 विधायकों राजभवन में परेट करा कर कांग्रेस पर दबाव और और बढ़ा दिया है , वहीं दूसरी तरफ राज्यपाल के आदेश की अवहेलना को लेकर भाजपा सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी , जिसकी आज सुनवाई में हुई । सुप्रीम कोर्ट ने त्वरित सुनवाई करते हुए आज मध्य प्रदेश सरकार तथा विधानसभा अध्यक्ष सहित सभी पक्षकारों को ईमेल से नोटिस जारी किया है। यदि मध्य प्रदेश के सियासी राजनीति के आँकडो़ं की बात करें तो वर्तमान में कुल 228 विधानसभा सदस्य हैं ,104 बहुमत का आंकड़ा है और बीजेपी पास 107 सदस्य हैं ,कांग्रेस के 92 सदस्य हैं तथा साथ ही कांग्रेस के 22 बागी विधायक भी हैं । वहीं आज कांग्रेस के बागी विधायकों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा हम यहां अपनी मर्जी से आए हैं और हम पर कोई दबाव नहीं है ।18 मार्च को कल सुबह10:00 बजे सुप्रीम कोर्ट पुनः सुनवाई करेगा। आंकड़े का गणित तो यही संकेत दे रहा है मध्यप्रदेश में कमलनाथ
सरकार अल्पमत में आ गई है, बाकी कल के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हम सब को इंतजार करना होगा।