जनपद प्रतापगढ़ में डीपीआरओ विभाग का कारनामा भाग–3
संवाददाता गुलाब चंद्र गौतम प्रतापगढ़ : वित्तीय वर्ष 2019-20 में 84-70 करोड़ धनराशि जनपद की 1241 ग्राम पंचायतों को राज्य वित्त आयोग से दी गई । इसमें से 63-46 करोड व्यय भी कर दिया है। मुख्य सचिव ने 2017-18 में आदेश किया कि इस निधि से एक भी पैसा मजदूरी पर व्यय न करें। मनरेगा से अभिसरण करके मजदूरी का भुगतान किया जाये। मजदूरी का श्रमांश मनरेगा से करने पर ग्राम पंचायतों को 15-20% राज्य वित्त की धनराशि की बचत होगी और ग्राम पंचायत मे अधिक कार्य कराना संभव हो पाता। इस प्रकार वर्तमान 84-70 करोड़ के स्थान पर लगभग 17 करोड़ अधिक धनराशि की उपलब्धता ग्राम पंचायत को होने से अधिक कार्य हो सकता है। मनरेगा से 6.8 करोड सामग्री अंश की अतिरिक्त धनराशि जनपद को मिल जाती।
राज्य वित्त और मनरेगा के अभिसरण से मनरेगा के माध्यम से 17+6.8 =23.8 अर्थात लगभग 24 करोड़ अतिरिक्त धनराशि जनपद को मिल जाती। दोनों योजनाओं के अलग-अलग रास्ते पर चलने से जनपद का 24 करोड़ का नुकसान हो रहा है। मुख्य सचिव का 2017 का आदेश अभी भी धूल चाट रहा है। यह पंचायतीराज विभाग के भ्रष्ट तंत्र जिसे ऊपर से संरक्षण मिला है, की देन है।
अब प्रश्न ये है कि मनरेगा और राज्य वित्त के अभिसरण से डर क्यों? पंचायतीराज विभाग फर्जी मस्टर रोल तैयार कर मजदूरी भुगतान कर रहा है। वही कार्य मनरेगा और राज्य वित्त से दुबारा-तिबारा करा रहा है। मनरेगा से अभिसरण होने पर ऐसा नहीं हो पाएगा। सारा खेल -ग्राम पंचायत से डीपीआरओ कार्यालय की मिलीभगत से होता आया है।डीपीआरओ कार्यालय में सैकड़ों जांचे लंबित हैं क्योंकि प्रधान द्वारा कोई भी अभिलेख जांच के लिए दिया ही नहीं जाता है। ग्राम पंचायतों में मनमानी कार्य होते हैं। अभिलेख कैसे देंगे?
केवल मानधाता ब्लाक में अभिसरण लागू है। पूर्व डीएम मार्कण्डेय सर के सामने ये कच्चा चिट्ठा खुला तो उन्होंने डीपीआरओ कार्यालय के सफाई अभियान का दायित्व पीडी को दे दिया।अब उनके इस निर्णय पर निहित स्वार्थ वाले लोग चिल पो मचाना शुरू कर दिए और पीडी को ही भ्रष्ट होने की उपाधि दे रहे है।
पीडी द्वारा डीपीआरओ का वित्तीय प्रभार ग्रहण करने पर यह कहा जाने लगा कि ये मलाईदार पद है और इस पर केवल डीपीआरओ और एक गिरोह का ही विशेषाधिकार है। यदि इसमें अन्य कोई हाथ डालेगा तो उस पर कालिख पोथी जाएगी, चाहे पीडी हों या जिलाधिकारी ही,जबकि डीपीआरओ के अतिरिक्त दायित्व को छोड़ने के लिए पीडी ने डीएम व सीडीओ से कई बार अनुरोध किये किन्तु उनके अनुरोध को अधिकारी द्वय स्वीकार नहीं कर रहे हैं।ऐसे में सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि डीपीआरओ व उनका विभाग अपने दायित्यों का ईमानदारी से निर्वहन करने में अक्षम है जिस कारण पीडी को जबरन दायित्व सौंपा गया।