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नवीन संसद भाग 1 : पुरानी संसद की व्यथा कि मैं अपने जीवन के 100 वर्ष पूरे कर पाने में भी असमर्थ, आधुनिक पीढ़ी ने मुझे समय से पहले बुरा मान लिया : डॉ धर्मेंद्र कुमार

लेखक: डॉ धर्मेंद्र कुमार

पुराने संसद भवन से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण घटनाक्रम इस लेख में पाठकों के ज्ञान वर्धन हेतु उचित होंगे। आज जिस संसद भवन को लेकर देश में चर्चाएं गर्म है के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में आप सभी के लिए यह लेख कहीं न कहीं ऐतिहासिक दस्तावेज होगा , मेरी ऐसी आशा है।

New Sansad Part 1 : Old Parliament's agony that I was unable to complete 100 years of my life, modern generation considered me bad before time : Dr. Dharmendra Kumar

1881 में पैदा हुआ लार्ड इरविन 1910 से 1925 तक ब्रिटिश पार्लियामेंट का सदस्य रहा तत्कालीन औपनिवेशिक भारत में 1926 से 1931 तक वायसराय रहा। इरविन के कार्यकाल में महत्वपूर्ण घटनाक्रम घटित हुए जिसका ज़िक्र में इस लेख में कर रहा हूं । साइमन कमीशन का गठन लॉर्ड इरविन की संस्तुति पर 1927 में हुआ । 1929 में चरमपंथियों द्वारा असेंबली में बम फेंकने की घटना , 12 मार्च 1930 में गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ, जतिन दास की लाहौर में भूख हड़ताल से मृत्यु, 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की मांग का लक्ष्य निर्धारित करते हुए 26 जनवरी 1930 स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा , 6 अप्रैल 1930 को नमक सत्याग्रह प्रारंभ तथा 5 मार्च 1931 को सर तेज बहादुर सप्रू की मध्यस्थता से गांधी इरविन समझौता जिसे “दिल्ली पैक्ट” कहा जाता है साथ ही साइमन कमीशन के प्रतिवेदन पर एक तथा इरविन की सिफारिश पर 12 नवंबर 1930 को संवैधानिक सुधारों हेतु प्रथम गोलमेज सम्मेलन लंदन में आहूत हुआ इस काल की प्रमुख ऐतिहासिक घटनाएं हैं।

New Sansad Part 1 : Old Parliament's agony that I was unable to complete 100 years of my life, modern generation considered me bad before time : Dr. Dharmendra Kumar
Dr. Dharmendra Kumar

इसके बाद एक महत्वपूर्ण घटना जिसका जिक्र करना इस लेख में अति आवश्यक है किसे पता था कि लार्ड इरविन द्वारा 18 जनवरी 1927 को जिस संसद भवन का उद्घाटन किया गया वह ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता का केंद्र रहने के बाद आजाद भारत के लोकतंत्र का सर्वश्रेष्ठ मंदिर बन जाएगा। जिसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की संसद होने का गौरव प्राप्त हुआ। लॉर्ड इरविन के आगमन से पूर्व एडविन के लुटियन और हर्बर्ट बेकर ने 1912 ,13 में इस संसद भवन का डिजाइन तैयार किया था । इसका निर्माण कार्य 1921 में शुरू होकर 1927 अर्थात् 6 वर्ष तक चला । तात्कालिक संसद भवन निर्माण पर कुल लागत ₹83 लाख आई थी। इस भवन का गोलाकार होना “अशोक चक्र” का प्रतीकात्मक स्वरूप माना गया जो “निरंतरता ” का मिथक माना गया । 6 एकड़ भूखंड पर बनी यह भव्य इमारत स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना थी ,जिसमें 12 दरवाजे 144 खंभों की श्रृंखला तथा खंभों की ऊंचाई को समानता की दृष्टि से 27 फुट रखा गया । संसद भवन 566 मीटर व्यास में बना जिसमें लोकसभा में 590 तथा राज्यसभा में 280 माननीय सदस्यों को बैठने की सीट उपलब्ध थी। 1956 में संसद भवन में दो मंजिलें और जोड़ी गई। संसद भवन की अति महत्वपूर्ण धरोहर के रूप में लाइब्रेरी का डिजायन राज रावल ने किया। जिसमें 15 लाख महत्वपूर्ण पुस्तकें उपलब्ध हैं जो भारत के लिए गौरव का विषय रही।

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भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को प्रवृत्त हुआ। प्रथम निर्वाचित संसद अप्रैल 1952 में अस्तित्व में आई, दूसरी अप्रैल 1957, तीसरी अप्रैल 1962 , चौथी मार्च 1967, पांचवी मार्च 1971, छठवीं मार्च 1977, सातवीं जनवरी 1980, आठवीं दिसंबर 1984 , नौवीं दिसंबर 1989, दसवीं जून 1991, ग्यारहवीं मई 1996, बारहवीं मार्च 1998 , तेरहवीं अक्टूबर 1999, चौदहवीं मई 2004, पंद्रहवी अप्रैल 2009 , सोलहवीं मई 2014 , सत्रहवीं मई 2019 निर्वाचित संसदों ने लुटियांन तथा हरबर्ट बेकर तथा इरविन द्वारा उद्घाटित संसद में अपनी कई पीढ़ियां खुशी खुशी गुजार दी , जिसमें सिर्फ इतना परिवर्तन हुआ कि इरविन के उद्घाटन के समय संसद भवन को “हाउस ऑफ पार्लियामेंट “कहा गया तथा आजादी के बाद यह भवन सिर्फ संसद के नाम से ही विख्यात रहा । ब्रिटिश संसद संसदों की जननी है हम यदि कहें कि भारत में संसदीय परंपरा को उपहार स्वरूप ब्रिटेन ने हमें भारतीय संसद प्रदान की तो अतिशयोक्ति न होगी,जो विश्व की सबसे बड़े लोकतंत्र के केन्द्र बिंदु के रूप में विख्यात हुई । 17-18 जनवरी 2027 को संसद भवन अपने 100 वर्ष पूर्ण कर सहस्राब्दी मनाते हुए खुश होती कि 4 वर्ष पहले ही उसकी आधुनिक संतानों ने उसे बूढ़ी समझकर नकार दिया, यह दुखद है।

इस संसद की खासियत रही कि यह मजहबी स्वतंत्रता के साथ धर्म निरपेक्ष ,पंथनिरपेक्ष स्वरूप समाहित रहा यह संसद अंग्रेजी हुकूमत से लेकर आजाद भारत के तमाम उतार-चढ़ाव की गवाह है। जिसने संविधान की प्रस्तावना का आदर करते हुए संविधान के नैतिक मूल्यों तथा स्वतंत्रता काल में हुए तमाम वीर शहीदों की शहादत को अपने अंदर समाहित किया हुआ था ,किंतु यह विडंबना है के सहस्राब्दी पूर्ण होने में कुछ लोगों को चालाकी के साथ आपत्ति रही कि इस धर्मनिरपेक्षता को कैसे खंडित किया जाए और सत्ता का प्रतीक किसे बनाया जाए, सत्ता हस्तांतरित किसे की जाए, आदि आदि प्रश्नों को लेकर नवीन संसद का निर्माण हुआ। इस निर्माण कार्य पर करोड़ों रुपया भारतीय कोष से उड़ा दिया और यह कहकर खुश हैं कि नवीन संसद अत्याधुनिक भवन के रूप में जाना जाएगा। मैं समझता हूं कि इस तरह की बातें कहीं ना कहीं संसदीय परंपरा पर कुठाराघात है।

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