Bihar News: शैक्षिक शोध में अवसर और चुनौतियां का समाधान सेमिनार हुआ आयोजित

ब्यूरो संवाददाता
मधेपुरा/ बिहार : विश्वविद्यालय शिक्षा शास्त्र विभाग में एक दिवसीय सेमिनार जिसका विषय “शैक्षिक शोध में अवसर और चुनौतियां का समाधान” का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उद्घाटन कर्ता सह मुख्य अतिथि के रूप में प्रोफेसर डॉक्टर जयराम राणा, पूर्व संकाय अध्यक्ष शिक्षाशास्त्र संकाय एवं रिसोर्स पर्सन के रूप में प्रोफेसर डॉक्टर सी.पी. सिंह, प्रोफेसर इंचार्ज, विश्वविद्यालय शिक्षाशास्त्र विभाग सह विभागाध्यक्ष विश्वविद्यालय इतिहास विभाग की गरमामई उपस्थिति रही। कार्यक्रम का शुभारंभ उद्घाटन कर्ता सह मुख्य अतिथि प्रोफेसर जयराम राणा एवं रिसोर्स पर्सन के रूप में उपस्थित विश्वविद्यालय शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रोफेसर इंचार्ज प्रो. डॉ. सी.पी. सिंह ने मां सरस्वती प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करते हुए दीप प्रज्वलित कर किया इनका सहयोग एम. एड. विभागाध्यक्ष डॉ. शिवेंद्र प्रताप सिंह एवं बी.एड. विभागाध्यक्ष डॉ. सुशील कुमार ने मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। कार्यक्रम के विषय प्रवेश के संबंध में एम. एड. विभागाध्यक्ष एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ. शिवेन्द्र प्रताप सिंह ने विद्यार्थियों को अवगत कराया की शिक्षा में शोध के अवसर और चुनौतियां एक अत्यंत ही गंभीर विषय है भारत सरकार के द्वारा शिक्षा में शोध की नवीनता और मौलिकता को बनाए रखने के लिए समय-समय पर दिशा निर्देश प्रदान किए गए। साथ ही विद्यार्थियों को अपने शोध की मौलिकता को बरकरार रखने के लिए अधिकतम 10 प्रतिशत प्लेगिरिज्म का प्रावधान भी दिया गया। परंतु कुछ शिक्षार्थियों और शोध निर्देशको की उदासीनता के कारण आज भी हम बहुत से शैक्षिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हैं। जिससे शोध की मौलिकता कटघरे में खड़ी हो जाती है। अतः इन सब से ऊपर उठकर हमें शिक्षा में शोध की गुणवत्ता को बनाए रखने में माहिती भूमिका निभानी होगी।
कार्यक्रम के उद्घाटन कर्ता सह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित प्रो. डॉ. जयराम राणा, पूर्व संकाय अध्यक्ष, शिक्षाशास्त्र संकाय, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा ने उद्घाटन सत्र में अपने वक्तव्य में बतलाया कि आज का बाजार आधारित शोध निंदनीय है। अतः हमें इस प्रकार के शोध से बाहर निकलकर मौलिक शोध पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आपने शोध के विभिन्न आयाम, शोध के विभिन्न क्षेत्र, शोध के विभिन्न अवसर तथा शोध प्रारूप के बारे में विद्यार्थियों को अवगत कराया और स्पष्ट किया कि यदि हम शोध की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए संदर्भ किताबों का अध्ययन करें, उच्च गुणवत्ता युक्त सेमिनार वर्कशॉप, सिंपोजियम, कॉन्फ्रेंस आदि में प्रतिभाग करें तो हम शैक्षिक अभिवृत्ति का विकास करते हुए शोध की बारीकियां को समझ सकेंगे, आपने बताया की वर्तमान समय में शोध की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए हमें उन्नतशील किताबें और डिजिटल तकनीकी का उपयोग करते हुए अध्ययन करने की आवश्यकता है तथा शैक्षिक नवाचारों को अपने जीवन में उतरने की भी आवश्यकता है यदि शोधार्थी अपने व्यवहार में शोध प्रवृत्ति को बढ़ावा देंगे तथा वैज्ञानिक सोच को विकसित करेंगे तो उन्हें शैक्षिक शोध की मौलिकता को पूरा करने में मदद मिलेगी। आपने बतलाया कि वर्तमान समय में शोध की एक मुख्य विसंगति भाषा है, शोध रिपोर्ट तैयार करते समय विद्यार्थियों को इस विसंगति से बचने की आवश्यकता है क्योंकि जब शोध रिपोर्ट हम तैयार करते हैं तो हमें व्याकरण की शुद्धता पर महत्वपूर्ण ध्यान देना चाहिए। हम लिंग और काल जैसे प्रमुख मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करें तभी हमारे शोध की उपयोगिता सार्थक होगी। कार्यक्रम के संदर्भ व्यक्ति के रूप में उपस्थित प्रो. डॉ. सी.पी. सिंह प्रोफेसर इंचार्ज शिक्षाशास्त्र विभाग एवं विभागाध्यक्ष विश्वविद्यालय इतिहास विभाग ने विद्यार्थियों को शोध के विभिन्न आयाम के साथ-साथ संबंधित साहित्य सर्वेक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बतलाया कि शोध में प्राथमिक स्रोत और द्वितीयक स्रोत की माहिती भूमिका होती है यदि विद्यार्थी प्राथमिक स्रोतों से आंकड़े प्राप्त करता है तो उसके शोध में ज्यादा मौलिकता की संभावना रहती है वहीं द्वितीय शोध से प्राप्त आंकड़ों में कई बार कुछ भ्रांतियां उत्पन्न हो जाती हैं अतः शोधार्थियों को प्राथमिक स्रोतों पर ज्यादा अध्ययन करना चाहिए। तथ्यों के वर्गीकरण के संबंध में आपने बताया कि प्राथमिक स्रोत और द्वितीयक स्रोत के साथ-साथ कठोर और कोमल तथ्य भी होते हैं कठोर तत्व से तात्पर्य वे तथ्य या आंकड़े जिन्हें बदला नहीं जा सकता जबकि कोमल तथ्य का अर्थ ऐसे आंकड़ों से है जिन पर अनेक चरणों का प्रभाव रहता है आपने बतलाया कि वर्तमान में तकनीकी का युग है और तकनीकी के बिना आधुनिक शोध अधूरे हैं पूर्व में हम आंकड़ों की गणना के लिए सामान्य विधियों का प्रयोग करके निष्कर्ष प्राप्त करते थे।
परंतु वर्तमान समय में हम नवीन सांख्यिकी विधियों जैसे टी परीक्षण, काई परीक्षण, इनोवा जैसे आधुनिक सांख्यिकी विधियों का प्रयोग करते हैं जो शोध की मौलिकता को बढ़ाने का कार्य करते हैं तथा सार्थकता स्तर 0.05 एवं 0.01 स्तर पर प्राप्त परिणामों की सार्थकता की जांच करते हुए हम निष्कर्ष प्राप्त करते हैं। अतः हम सभी को विद्यार्थियों को अंदर शैक्षिक शोध प्रवृत्ति को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए।कार्यक्रम की अगले वक्ता के रूप में बी.एड. विभागाध्यक्ष डॉ. सुशील कुमार ने विद्यार्थियों को शैक्षिक शोध की दशा और दिशा के संदर्भ में बतलाया की शैक्षिक शोध की दशा और दिशा मूल रूप से दो बातों पर निर्भर करती है सरकारी प्रयास और संस्थागत अभ्यास। सरकार तो नियम बनाती हैं कि शोध उच्च गुणवत्ता युक्त हों परंतु हम संस्थागत प्रयासों में आकर उनका अनुसरण नहीं करते। जिससे शोध के विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो जाते हैं। इसमें शिक्षकों की उदासीनता, विद्यार्थियों की उदासीनता शैक्षिक अवसरों की असमानता, आर्थिक विसंगतिया, सामाजिक विसंगतिया जैसे अनेक मुद्दे शामिल हैं। यदि इन सब पर गहराई से विचार किया जाए तो हम पाते हैं कि अगर संस्थागत अभ्यास में आने वाली चुनौतियां या कठिनाइयों को दूर कर लिया जाए तो शोध की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र के समापन पर प्रोफेसर डॉक्टर चंद्रधारी यादव ने उद्घाटन कर्ता सह मुख्य अतिथि व अन्य को धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में एम. एड. सत्र 2023-25 के विभिन्न छात्र-छात्राओं ने अपने पेपर प्रस्तुत किये। जबकि कार्यक्रम की समाप्ति पर डॉक्टर माधुरी कुमारी ने सभी अतिथियों , संदर्भ व्यक्ति व छात्र-छात्राओं को धन्यवाद व्यापित किया। कार्यक्रम में एम. एड. के छात्र अमित कुमार, विकास, अभिनव, अखिलेंद्र राणा, पंकज कुमार रोशन, अविनाश, माधुरी कुमारी, प्रियंका कुमारी, अमर कुमार, अनिता कुमारी, श्रुति सेजल, घनश्याम कुमार, रवि कुमार, प्रकाश कुमार, लाल जी प्रसाद , मौसम कुमारी व विभाग के शिक्षक डॉ राम सिंह यादव, डॉ. वीर बहादुर, डॉ. अंजु प्रभा, डॉ. रूपा कुमारी, डॉ. प्रिंस फिरोज अहमद, डॉ. शैलेश कुमार, रॉबिंस कुमार एवं श्री संतोष कुमार एवं विभागीय कर्मचारी मौजूद रहे।