भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में नेताजी का योगदान

नेताजी की 125 वी जयंती ‘ पराक्रम दिवस ‘ पर विशेष आलेख
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में नेताजी का योगदान
श्वेतांक कृष्ण
भारत को स्वतंत्र कराने में अनेक महापुरुषों एवं राजनेताओं ने अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया था । इसी कड़ी में भारत के महान् सपूत नेता जी का भी नाम आता है। इनका पूरा नाम सुभाष चंद्र बोस था। इनका जन्म 23 जनवरी ,1897 में उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस तथा माता का नाम प्रभावती था। इनके पिता कटक शहर के मशहूर अधिवक्ता (वकील) थे। नेताजी प्रेसीडेंसी कालेज में बी०ए० करने के उपरांत आईसीएस (इंपिरियल सिविल सर्विस)की परीक्षा की तैयारी करने इंग्लैंड चले गए। 1920 में इन्हें आईसीएस के लिए चुन लिया गया।
भारत लौटने के पश्चात उनकी ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्ति हो गई। नेताजी ने ब्रिटिश सरकार की दासता की अपेक्षा मातृभूमि की सेवा को प्राथमिकता दी। उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व में चलाए जा रहे स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेना आरंभ कर दिया। इसी दौरान कांग्रेस ने गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ कर दिया था।
जिस समय असहयोग आंदोलन पूरे जोरों पर था चौरी-चौरा नामक स्थान पर उग्र भीड़ ने एक पुलिस चौकी में आग लगा दी, जिसके परिणामस्वरूप 25 पुलिस के सिपाही मारे गए। गांधी जी ने आंदोलन के हिंसक रूप ग्रहण करने के पश्चात उसे तुरंत वापस लेने की घोषणा कर दी। युवक नेताजी गांधी जी के उपरोक्त निर्णय से बड़े क्षुब्ध हुए। उनका गांधीजी तथा कांग्रेस के अहिंसात्मक आंदोलन से विश्वास उठ गया। वे कांग्रेस के उग्र तथा वामपंथी तत्वों के नेता थे। वे अंग्रेजों को शक्ति के बल पर हिंदुस्तान से बाहर निकलना चाहते थे।
नेताजी कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष के पद पर खड़े हुए। उनके विरुद्ध गांधी जी के प्रत्याशी डॉ० पट्टाभि सीतारमैया थे। नेताजी 203 के बहुमत से विजयी हुए। कांग्रेस कार्यकारिणी में गांधी जी का बहुमत था। कार्यकारिणी के सदस्यों ने नेताजी के नेतृत्व में कार्य करना अस्वीकार कर दिया। इसी दौरान उन्होंने कांग्रेस के अलग होकर ‘फारवर्ड ब्लाक’ नामक नया दल स्थापित किया।
सन 1939 में उन्होंने हालबेल स्टेच्यू को हटाने के लिए शांति आंदोलन किया। ब्रिटिश सरकार को नेताजी की गतिविधियों से चिंता हो गई थी। उन पर कड़ी निगरानी रखी जाने लगी। जब कलकत्ता में उनके घर के बाहर पहरा बैठा दिया गया तब उन्होंने गुप्त रूप से भारत से बाहर जाने की योजना पर विचार करना शुरू कर दिया। 16 जनवरी ,1941 की रात्रि को पठान के वेश में अपने घर से निकल गए तथा छिपे हुए कोलकाता से पेशावर पहुंच गए । पेशावर से वे काबुल होते हुए जर्मनी पहुंच गए। वहां उन्होने हिटलर से भेंट की। हिटलर उनके व्यक्तित्व एवं वाक्य पटुता से अत्यंत प्रभावित हुआ। हिटलर ने अंग्रेजों के विरुद्ध इन्हें सभी प्रकार की सहायता देने का आश्वासन दिया। इसी दौरान द्वितीय विश्व युद्ध आरंभ हो चुका था।
द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ होते ही नेताजी ने भारत की स्वाधीनता की योजना बनाना आरंभ कर दिया। युद्ध में जर्मनी तथा इटली द्वारा बंदी किए गए भारतीय सैनिकों को लेकर नेताजी ने ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया। इसका मुख्य कार्यालय जर्मनी में रखा गया।इसके पश्चात जापान के निमंत्रण पर नेताजी अनेक बाधाओं को पार करते हुए 20 जून ,1943 को टोक्यो पहुंचे ।जापान में आजाद हिंद फौज को मान्यता प्रदान कर दी तथा भारत को स्वाधीन कराने का उत्तरदायित्व नेताजी को सौंप दिया गया। नेताजी लगभग 50,000 सैनिक आजाद हिंद फौज में भर्ती किए।
2 जुलाई ,1943 को वे सिंगापुर पहुंचे। 21 अक्टूबर 1943 को नेताजी ने सुप्रसिद्ध घोषणा की कि उन्होंने सिंगापुर में भारत की अस्थाई सरकार स्थापित कर दी है।वह स्वयं ही सरकार के प्रधानमंत्री तथा मुख्य सेनापति बन गए तथा अपने पद की शपथ ग्रहण कि जो इस प्रकार थी-” मैं सुभाष चंद्र बोस ईश्वर की पवित्र सौगंध खाकर कहता हूं कि मैं भारत तथा उसके 38 करोड़ वासियों का स्वाधीनता के लिए अपनी अंतिम सांस तक युद्ध करता रहूंगा।”
तत्कालीन समय में विश्व की 9 शक्तियों ने जापान , जर्मनी , इटली , फिलीपीन , कोरिया , आयरलैंड तथा वर्मा आदि ने इस अस्थाई सरकार को मान्यता प्रदान की। 8 नवंबर को जापान में नेताजी की सरकार को अंडमान निकोबार द्वीप दिए। उन्होंने सिंगापुर में भी भारतीय सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा -“साथियों हमारा नारा होना चाहिए ‘दिल्ली चलो’ जो भी तुम्हें प्राप्त होगा, वह तुम्हारा होगा , परंतु इस समय मैं तुम्हें भूख, प्यास, कठिनाइयों और यहां तक कि मृत्यु के सिवा कुछ भी नहीं दे सकता। हमें अपना सर्वस्व बलिदान कर देना चाहिए।”
नेताजी के इन शब्दों से प्रेरित होकर फरवरी 1944 को आजाद हिंद फौज ने भारत पर आक्रमण किया तथा अनेक सीमान्त प्रदेशों को स्वतंत्र करा दिया ।22 दिसंबर को शहीद दिवस मनाया। नेताजी की आजाद हिंद फौज अपने लक्ष्य स्वाधीनता की तरफ आगे ही बढ़ रही थी एक घटना घटी भाग्य ने भारत का साथ नहीं दिया विश्व युद्ध में जापान को पीछे हटना पड़ा ।जिससे आजाद हिंद फौज का आगे बढ़ना रुक गया, वह स्वाधीनता प्राप्त करने का लक्ष्य प्राप्त न कर सकी । फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए नेता जी द्वारा स्थापित आजाद हिंद फौज स्वाधीनता के मार्ग में मील का पत्थर साबित हुई जिस पर आगे चलकर कालांतर में भारत को स्वाधीनता प्राप्त हुई ।
तत्कालीन परिस्थितियों को भाप कर नेता जी ने सिंगापुर से जापान की ओर पलायन किया। कहा जाता है उसी समय एक वायुयान दुर्घटना में 18 अगस्त, 1945 को उनका स्वर्गवास हो गया। उनके स्वर्गवास की घटना आज भी भारतीय इतिहास में एक रहस्य बनी हुई है। उस पर अभी तक पर्दा नहीं उठ सका है ।हम उम्मीद करते हैं भविष्य में शायद इस रहस्य पर पर्दा उठ सके कि क्या सचमुच नेताजी का उस वायुयान दुर्घटना में स्वर्गवास हुआ था।आज कृतज्ञ राष्ट्र नेता सुभाष चंद्र पोस्ट की 125वीं जयंती मना रहा है।
वर्ष 2021 को भारत सरकार ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इस महान सपूत की जन्म जयंती को ‘पराक्रम दिवस‘ के रूप में प्रत्येक वर्ष मनाने का निर्णय लिया। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में असाधारण योगदान देने वाले इस देशभक्त महान सपूत को हृदय से नमन।अंत में ‘जय हिंद ‘के उद्घोष के साथ विनम्र श्रद्धांजलि।