सुनील पांडे : वरिष्ठ पत्रकार
मां तो मां होती है उसकी नजर में उसका बेटा चाहे अधिकारी हो या अपराधी कोई फर्क नहीं पड़ता।यह उस दुःख भरी मां की कहानी है जो आज अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव 97वें वर्ष में चल रही है। जिसे यह भी नहीं पता कि उसका बेटा करता क्या है ? 18 बर्ष तक तो वह मां के साथ रहता है ,अचानक जब वह 19वें वर्ष में प्रवेश करता है तो मां से अलग रहने लगता है। शुरुआत में वह महीने में एक दो बार अपनी मां से मिलने आता था, लेकिन जैसे-जैसे वह जरायम (अपराध) की दुनिया में प्रवेश करता जाता है तो लगभग उसका आना-जाना कम हो जाता है। मां अपने बेटे की इस करतूत से अनजान रहती है, वह जानती है उसका बेटा कोई छोटा मोटा काम करता है, काम की वजह से वह उससे मिले नहीं आ पाता ।तभी साल 2004 में एक दिन अचानक उस मां को पता चलता है उसका बेटा शहर के एक नामी डॉक्टर का किडनैपर और अपराधी है जिसे वाराणसी की एसटीएफ ने एक मुठभेड़ में मार गिराया। बेचारी मां
को इस खबर से गहरा आघात लगता है। वह बेटे के साथ-साथ अपने भाग्य को कोसती है, शायद उसके नसीब में ऊपर वाले ने यही लिखा था। बहुत पूछने पर वह मां बताती है कभी मेरा भी एक भरा -पूरा परिवार था। मुझे वह दिन याद है जब मैं बिहार के भोजपुर से अपने पिता के साथ उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) जनपद में गंगा किनारे दारागंज मुहल्ले में एक छोटा सा मकान लेकर रहने लगी थी ।पिता भी काम करते थे और मैं भी अपनी शिक्षा पूरी कर एक स्कूल में पढ़ाने का कार्य करने लगी थी। इसी बीच गाजीपुर में एक समृद्ध परिवार में मेरा ब्याह हो जाता है। जीवन की गाड़ी लगभग ठीक ही चल रही थी तभी अचानक मेरे हंसते खेलते परिवार पर किसकी नजर लगी ,मेरे पिता ,पति और मेरे भाई एक-एक कर असमय मुझे छोड़कर इस दुनिया से चल बसे । फिर भी इसे नियत का खेल मानकर मैं अपने इकलौते बेटे के साथ रहने लगी। अभी भी नियत को शायद मेरे साथ और भी खेल खेलना था, जो बेटा 18 साल तक मेरे साथ रहता था अचानक वह 19वें साल में अलग रहनेे लगता है। इसी बीच दारागंज का मेरा मकान भी बिक जाता है मैं रसूलाबाद के पास काशीराम आवास योजना में बने घर में एक कमरा लेकर किसी तरह अपना गुजर बसर कर रही थी ।वहीं पर मुझे अपने बेटे के मारे जाने की सूचना मिलती है।मै पूरी तरह से टूट जाती हूं, लेकिन जीने की आस नहीं छोड़ती। तब से लेकर आज तक अनवरत15 साल के लम्बे दिन बीत गए, मैं रोज हरदिन गंगाजल लेकर जिला मुख्यालय प्रयागराज आती हूँ और यहाँ पर लोगों को गंगाजल का पान कराती हूं ,और अपने पापों का प्रायश्चित करती हूं ।मुझे किसी से कोई गिला- शिकवा नहीं है ।मेरा एक बेटा चला गया तो क्या हुआ मेरे यहां पर कई बेटे हैं उन सब से जो हो पाता है थोड़ी बहुत मेरी मदद कर देते हैं। गंगा मैया उन सबको खुश रखें ।मेरा क्या मैं तो अब पका हुआ आम हूं कब टपक जाऊं किसी को नहीं मालूम। ऐसी मां की मदद क्या सरकार या प्रशासन को नहीं करनी चाहिए। बेटा अपराधी था लेकिन मां तो निर्दोष है ।उसके कर्मों की सजा इस बूढ़ी मां को क्यों मिल रही है? मेरा आप सब समाजसेवियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों से विनम्र निवेदन है कि इस मां की जितनी हो सके मदद करें। इस मां का नाम आप जरूर जानना चाहते होंगे चलिए बता देते हैं पार्वती पांडे , जिसे लोग प्यार से पार्वती अम्मा कहकर बुलाते हैं। यह आपको प्रयागराज के जिला मुख्यालय में लगभग हर रोज अपने बेटों को गंगा जल का पान कराते हुए मिल जाएंगी ।
सभार -दैनिक जागरण समाचार पत्र (प्रयागराज संस्करण) से