संवाददाता रनवीर सिंह : संसार सुख के लिए भी ध्यान की आवश्यकता , संतश्री रेणुका बाई जी ।इस शरीर में अनेक प्रकार की वस्तुएं हैं। मानव एक बार भी अपने शरीर का ध्यान द्वारा शोधन करें तो सचमुच
उसको महान लाभ होगा। इस शरीर में न जाने क्या-क्या है ? मस्तिष्क में कितने चक्र हैं, कितने प्रकार के अमृत भरे रसों के कुंड हैं। कितने प्रकार के संगीत सम्मेलन है। कितने प्रकार के ज्ञान तंतुओ के पुंज हैं।
कितने प्रकार की सुगंध है। ऐसा होते हुए भी अभागा मानव भ्रमयुक्त होकर शुष्क बहिरंग जगत में ही रमता रहता है। ध्यान से संबंधित ये बातें राधाकृष्ण वाटिका जमालनगर में “मानव उत्थान सेवा समिति” द्वारा आयोजित दो दिवसीय महान सत्संग समारोह में श्री सतपाल जी महाराज की परम शिष्या संत रेणुका बाईजी ने कही। संत श्री प्रभावती बाईजी ने कहा ध्यान की दृष्टि न होने से बाह्य आडंबर ही नजर आता है। दृष्टि अंतर्मुखी बनेगी, तभी अन्त: प्रकाश फैलता है जिसका उजियारा सर्वत्र फैलता है। अंतर्मुखी होने के लिए ध्यान और साधना आवश्यक है। ध्यान द्वारा शारीरिक, रासायनिक परिवर्तन होता है। मन की सूक्ष्म रचना है और उस पर प्रतिदिन सूक्ष्म मेल जमते रहते हैं। शरीर के शोधन की तरह मन-मस्तिष्क का शोधन भी आवश्यक है! इसलिए ध्यान जरूरी है। संत श्री ने कहा ध्यान शांति प्रदान करने के साथ आत्मविश्वास में भी वृद्धि करता है और कठिन मार्ग सरल बनाता है।
इस मौके पर उपस्थित संतश्री हर्षानंद जी, हेमंती बाईजी व जीवीका बाईजी ने भी आत्म कल्याणकारी सत्संग विचार रखें।
भजन गायक सुरेश भाई, साथी ईश्वर सिंह, कृष्णा, अमरसिंह, नाहर सिंह, तालेवर सिंह, ध्यान सिंह, ठाकुर दास, विजय सिंह, सोनी राम आदि ने ज्ञान ,भक्ति, वैराग्य से ओतप्रोत मधुर भजनों की प्रस्तुति दी।