अल्लाह की राह में खुद को समर्पित कर देने का प्रतीक है पाक महीना रमज़ान। न सिर्फ रहमतों और बरकतों का वकफा है, बल्कि समूची मानव जाति को प्रेम, भाईचारे और इंसानियत का संदेश भी देता है। मौजूदा हालात में रमजान का संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है। इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाने का वादा करता है। इस दौरान भूखे-प्यासे रहकर अल्लाह की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं। इस माह में दोजख (नरक) के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और जन्नत (स्वर्ग) के रास्ते खोल दिये जाते हैं।
खुद पर नियंत्रण सिखाता है रोज़ा
इमाम मुफ्ती फय्याज आलम ने बताया कि, रोजा अच्छी जिंदगी जीने का प्रशिक्षण है जिसमें इबादत कर खुदा की राह पर चलने वाले इंसान का जमीर रोजेदार को एक नेक इंसान के व्यक्तित्व के लिए हर जरूरी तरबियत देता है। मुफ्ती आलम ने कहा कि, जहां आज पूरी दुनिया का मकसद बढ़िया खाना-पीना और ज्यादा से ज्यादा ख्वाहिशों को पूरा करने में जी जान से जुटा हुआ है, जिसे हासिल करने में व्यक्ति को अच्छाई या बुराई की परवाह तक नहीं है। वहीं, हमें इनहीं चीजों पर नियंत्रण रखना सिखाता है। रोजा अपनी ख्वाहिशों पर नियंत्रण रखने की साधना है। रमजान का महीना हर रोजेदार को दुनिया में बसने वाले तमाम इंसानों के दुख-दर्द और भूख-प्यास को बेहतर ढंग से समझने का महीना भी है, ताकि रोजेदार को दुनिया में बसने वाले उन लोगों की तकलीफ का भी एहसास हो सके। जिनके पास गरीबी की वजह से खाने पीने को भी नहीं है, ये उनके दर्द को समझकर उनकी मदद कर सकें।
सभी तरह की बुराइयों से बचाता है रमज़ान
मौलाना ने बताया कि, जहां एक तरफ पूरी दुनिया में झूठ, फरेब, मक्कारी, अश्लीलता और यौनाचार के हालात दिन ब दिन बिगड़ते जा रहे हैं। ऐसे में मानव जाति को संयम और आत्मनियंत्रण का संदेश देने वाले रोजे का महत्व और भी बढ़ गया है। खासतौर पर रोजे के दौरान झूठ बोलने, चुगली करने, किसी पर बुरी निगाह डालने, किसी की निंदा करने और हर छोटी से छोटी बुराई से दूर रहना अनिवार्य है। ऐसे में एक रोजेदार संयम और आत्मनियंत्रण का बढ़िया संदेश देता है। उन्होंने कहा कि रोजे का असल मकसद सिर्फ भूख-प्यास पर नियंत्रण रखना ही नहीं होता, बल्कि रोजे की रूह दरअसल आत्म संयम, नियंत्रण, अल्लाह के प्रति अकीदत और सही राह पर चलने के संकल्प और उस पर मुस्तैदी से अमल करना होता है।
रमज़ान का मूल उद्देश्य
रमजान इसलिए भी अपने आप में काफी महत्व रखता है क्योंकि, आमतौर पर लोग साल के बाकी 11 महीनों तक दुनिया की झंझटों और जरूरतों को पूरा करने में फंसा रहता है, इसी लिए अल्लाह ने रमजान को एक आदर्श जीवनशैली जीने का महीना तय किया है। रमजान के दिनो में रोजा रखने का मूल मकसद सम्पन्न लोगों को भी भूख-प्यास का एहसास कराकर पूरी कौम को अल्लाह के करीब लाकर नेक राह पर डालना है। साथ ही यह महीना इंसान को अपने अंदर झांककर खुद का मूल्यांकन करने का भी है, ताकि हम उसमें सुधार कर सकें। रमजान का महीना इसलिए भी खास है क्योंकि अल्लाह ने इसी माह में हिदायत की सबसे बड़ी किताब यानी कुरान शरीफ को दुनिया में अतारा था।
तीन हिस्सों में बांटा गया है रमज़ान
रहमत, बरकत और मगफिरत के नजरिए से रमजान के महीने को तीन हिस्सों (अशरों) में बांटा है। इनमें पहले 10 दिन रेहमत का अशरा होता है, जिसमें अल्लाह से अपनी हर जरूरत मांगी जाती है, दूसरे 10 दिन बरकत का अशरा होता हैइन 10 दिनों में अल्लाह अपने रोजेदार बंदों को बरकतें देने का वादा करता है। इसके अलावा तीसरे और आखरी 10 दिन मगफिरत के होते हैं, इन दिनों में रोजेदार अपने अल्लाह से जीवन में किये बुरे कामों की माफी मांगता है। अल्लाह माफी मांगने वाले को माफ करते हैं।