क्या ओबीसी/एससी/एसटी का आरक्षण “खत्म” समझा जाए क्योकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे अब राज्य सरकारों की “दया” पर निर्भर कर दिया है ?
संजय कुमार व्यूरो चीफ इटावा : क्या ओबीसी/एससी/एसटी का आरक्षण “खत्म” समझा जाए क्योकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे अब राज्य सरकारों की “दया” पर निर्भर कर दिया है?
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आरक्षण के मामले मे सुप्रीम कोर्ट के 8 फरवरी को आए निर्णय के बाद यह तय समझा जाना चाहिए की अब “आरक्षण खत्म” कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट का आरक्षण के बारे मे यह कहना है की;
“राज्य सरकारे नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नही है। इसके अलावा प्रमोशन में आरक्षण कोई मूल अधिकार नही है। यह राज्य सरकारे तय करेगी की “नियुक्तियों” व “प्रमोशन मे आरक्षण” देने की आवश्यकता है या नही”।
राज्य सरकारे आरक्षण देने को पहले से ही तैयार नही है, तभी बैकलॉक की शीट हर साल के अंत में पैदा हो जाती है, अब इस निर्णय से यह स्तिथि क्लियर हो गयी है कि एससी/एसटी/ओबीसी को आरक्षण देना या न देना राज्य के अधिकार में है।वो चाहे तो दे और अगर नही देना चाहें तो न दे। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट “अनुच्छेद 32 के अंतर्गत” व हाईकोर्ट “अनुच्छेद 226 के अंतर्गत” कोई भी “परमादेश” पारित नही कर सकती है। इस निर्णय में दो बाते है-
1.सरकारी नौकरी में आरक्षण देना राज्य के विवेक पर है।
2.प्रमोशन में आरक्षण कोई मूल अधिकार नही है।
दूसरे बाला केवल एससी/एसटी से जुड़ा हुआ मामला है।श्री अखिलेश यादव जी के कारण ‘प्रमोशन में आरक्षण” बिल लोकसभा में पारित नही हो सका था। जिसकी वजह से ही न्यायलय इस मामले में ऐसे निर्णय देते रहते है।
लेकिन पहले वाला निर्णय एससी/एसटी/ओबीसी से जुड़ा हुआ मामला है, अब आर्थिक अधर पर सामान्य भी इसकी जद में है।राज्य सरकारे आरक्षण जिसे चाहे, जब चाहे देगी,कोई न्यायालय का कंट्रोल नही है।समाजवादी पार्टी ने “प्रमोशन में आरक्षण” का बिल फाडकर, अब न्यायालय ने “ओबीसी” के आरक्षण को भी राज्य सरकारों के विवेक पर निर्भर कर दिया है।
वैसे महत्वपूर्ण यह है की-
1.एससी/एसटी/ओबीसी के आरक्षण के खिलाफ जब कोर्ट यह निर्णय दे रहा था, तब उत्तराखंड की भाजपा सरकार व केंद्र की भाजपा सरकार के वकीलों ने “प्रमोशन में आरक्षण” का विरोध किया, व “एससी/एसटी/ओबीसी” के आरक्षण को राज्य के विवेक पर छुडवाने में कोई कसर नही छोड़ी।एक तरह से एससी/एसटी/ओबीसी के खिलाफ भाजपा के वकील सुनवाई कर रहे थे।
2.”प्रमोशन में आरक्षण” का बिल लोकसभा में पारित नही करने वाली कॉग्रेस अब घडियाली आंसू बहा रही है। माना की “अखिलेश यादव” ने बिल फडवा दिया था, तो क्या बिल की और कॉपी नही थी, फोटो स्टेट या प्रिंटर नही था?. वास्तव में कोंग्रेस की नियत नही थी, इस बिल को पास करवाने की।